Tuesday, January 28, 2025

ज़िंदगी, आशा और उम्मीद


"सुना है कहीं की हर एक की ज़िंदगी में एक ऐसा वक्त आता है जब उसे फैसला लेना होता है कि पन्ना पलटना है या किताब बंद करनी है"

किताब पढ़ते वक्त पन्ने पलटना होते हैं
पन्ने पलटते वक्त अश'आर अधूरे से होते हैं
किताब बंद करते वक्त एक पन्ना मोड़ देता हूँ 
बंद किताब खुलते ही जिंदा जो हो जाती है

आशा करता हूँ कि उम्मीद पूरी होगी

आशा और उम्मीद में अंतर यह है कि आशा सिर्फ़ इच्छा है, जबकि उम्मीदें मांग करती हैं. उम्मीदें अक्सर किसी तर्क पर आधारित होती हैं, जबकि आशा के लिए किसी तर्क की ज़रूरत नहीं होती।

ज़िंदगी एक अज्ञेय, एक अबूझ किताब सी लगती है, ए दोस्त,
पन्ने पलटते पलटते अध्याय बदल जाते हैं...

एक अध्याय खत्म होते ही दूसरा अध्याय शुरू हो जाता है...

एक कहानी या किताब पूरी होते ही कई अनुत्तरित सवाल छोड़ जाती है...

बस, उन्हीं सवालों के जवाब खोजने हेतु एक नई किताब फिर खुल जाती है...

ज़िंदगी एक ऐसी अदभुत और अविश्वसनीय किताब जो कभी ख़त्म नहीं होती...

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