यहाँ...
प्यार तो है
पर
पैसा नहीं है...
वहाँ...
पैसा तो है
पर
प्यार नहीं है...
याने के
जो है...
जैसा है...
जितना है...
वो हमें
स्वीकार नहीं है...
ठीक भी है.,
की
अधूरेपन में आती कभी
संतुष्टि की डकार नहीं है...
जाने क्यूँ पूरा करता
हमें हमारा यार नहीं है...
सम्पूर्णता होती अद्वैत 'मनीष'
दो कर देखने से होता बेड़ा पार नहीं है...
दोनों को ही पाने की
तेरे दिल में जो लगी है अगन
तो ये भी देख की
तुझमें ही हो रहा हर द्वैत का मिलन...
या फिर
दुखी रह तू ये मान
की
प्यार तो है
पर
पैसा नहीं है...
करता रह तू ये उन्मान
की
पैसा तो है
पर
प्यार नहीं है...
जैसे.,
खुशबु तो है
पर
यार नहीं है...
क्रमशः ये भी जान लेकिन
की
शुक्र होता है रोज
होता रोज मगर शुक्रवार नहीं है...
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