Monday, November 14, 2011

असुरक्षा की भावना


नास्तिकता सदैव असुरक्षा की भावना से ग्रसित हो 
मर-मर कर अपना जीवन काटती है...
बेहतर हो की हम आस्तिकता से जी-जी कर अपना जीवन बिताएँ
अभी...

जी-जी कर छोड़ दे जो साथ ज़िन्दगी का
हो सकती उसकी कभी मौत नहीं
मर-मर कर छूटे जो हाथ ज़िन्दगी का
ज़िन्दगी उसकी कभी जिंदा थी ही नहीं

बर्बाद तो होना ही है एक दिन
फिर ये डर कैसा..?
क्यूँ न बर्बादी का जश्न मन फना हो जाएँ हम
क्या पता ये बर्बादी फिर आबाद हो न कभी

हर पल अवाक हुआ हूँ मैं ये देख
के ये नाकुछ सबकुछ हुआ तो हुआ कैसे..?
जाने क्या ढूंढता हूँ मैं..?
कहीं ये सबकुछ के नाकुछ हो जाने की तैय्यारी तो नहीं

क्या मिलेगा वो जो कभी खोया ही नहीं
क्या सोयेगा वो जो कभी जागा ही नहीं
खेल-तमाशे हैं ये सारे मन के
क्या मिटेगा वो जो कभी था ही नहीं

बस, के अब मैं अपनी ख्वाहिशों का गुलाम ना बनूँगा
करम करूँगा मोहब्बत से और खुलूस से
पे उनके हासिल पर ना कभी दम भरूँगा
रहूँगा ऐसे जैसे कभी था ही नहीं

सकल ध्यानी को नक्षत्रों से, तारों से, सितारों से
क्या लेना-देना हो सकता है अभी..?
वो सद्चितानंद
चाहे गुरु शुक्र हो या हो शनि रवि

वाह...क्या मजा है यूँ तेरे दिल का टुकड़ा होने में
नहीं जानता था क्या लुत्फ़ है छिपा यूँ खुद को खोने में
हमारी इस दीवानगी पर अल्लाह करे किसी की नज़र ना लगे
तदबीर हमारी तकदीर ना होने पाए कभी

है जैसा वैसा रहे
अंदाज़ ना बदले वो अपना कभी

जीवन असुरक्षित है...और सदा रहेगा
जन्म, स्कूल, कॉलेज, शादी, बच्चे...उफ़..

मृत्यु में घनी सुरक्षा है...और सदा रहेगी
नो लाइफ - नो टेंशन...आह..

..और फिर भी लोग टूटे पड़े हैं लाइफ इंश्योर करने में
ये पालिसी, वो इन्वेस्टमेंट
वो प्लान, ये एडजस्टमेंट...ओह्ह..

मर-मर कर जीने की ये कोई नई कला है शायद..
सीखा रहे टीवी पर आ-आ कर सचिन, अमिताभ और धनि

वो ये देगा, वो वो देगा
इंसान हर शक्ल में बस भिखारी ही रेगा
माँगेगा भी तो टिन-पत्थर ही
खुदा माँग खुदाई से खुद के लिए मुसीबत भला कोई लेगा कभी

काश...के हम सूरज से सीख पाते
सब के लिए एक बराबर रोशन होना
काश...के हम देख पाते अपने-परायों की सीमाओं के परे
जान लेते की ज़िन्दगी में कोई काश था ही नहीं कभी

या तो लौ लग गयी या अँधेरा है अभी
या तो होश आ गया या बेहोशी है अभी
आधा-अधुरा यहाँ कुछ भी नहीं ए दोस्त
हकीकत नज़र आ गयी या सपना है अभी

सपने आँखें नहीं मन देखता है
अपने बोझ वो दूजों पर फेंकता है
मानव लेकिन रजामंद है मन की गुलामी में
इसीलिए तो 'मनीष' मैन को बैड केस कहता है अभी...

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