तु उसे क्या जलायेगा
तुझे तो उसकी तपती राख से
मुहब्बत हो गई है.........
मीठी-मीठी बातें करता है फिर वो मेरे साथ
लोक लुभावन सपने रचता है वो मेरे साथ
जिसने "अभी" और "यहाँ" में खाया कभी कोई कौर नहीं
जिसका खुद का कोई छोर नहीं
खेलता रहता है जो 'भूत' और 'भविष्य' में
जरा ध्यानस्थ हो गौर कीजियेगा उसकी लफ्फाजी पर :
एक बूँद से सागर तक,
एक प्रश्न से उत्तर तक,
एक ज़मीं से आसमा तक,
एक प्रथम से शेष तक,
एक सुबह से शाम तक,
एक रात से सुबह तक,
सागर के एक छोर से,
आखरी छोर तक
एक जनम से,
सात जनम तक
एक जीवन से
मोक्ष तक
ना जी ना !!
आप अपने आप पर या अपनी अंतरात्मा पर चोट मत ले लेना
मानकर अपने मनमोहक मन का ये विचार
की
प्रिय अनामिका,
ये कटाक्ष मुझ पर नहीं तुम पर किया गया है
क्योंकि ये "आप" नहीं
फकत आपके दिमागी विचार है
जो आते हैं परिंदों की तरह वक़्त-बेवक्त
बिन बुलाये मेहमान की तरह
और फिर
वापस उड़कर चले जाते हैं किसी और के दिमाग में
दूर खड़े हो देखते रहिये आप बस इन्हें
जैसे मिलती है कोई परायी स्त्री
किसी पराये मर्द से अजनबियों की तरह
वर्ना तो
ये ज़ालिम "मैं" रूपी अहंकार
या मन रूपी द्वैत
अपनी चालाकी से
दुश्मन मनवा लेगा इस दीवाने वारसी को आपका
कलंक लगवा देगा वो एक पाक-साफ़ रिश्ते पर
धज्जियाँ उड़वा देगा वो एक अनाम बंधन को पाप का नाम देकर
बदनाम कर देगा वो एक मासूम परी को
आप ही लगाने लगेंगी अपने-आप पर ये इलज़ाम
की
क्यूँ मित्र बनी में इस तांत्रिक पापी की
क्यूँकर हुई मेरी मति इतनी भ्रष्ट
नहीं उठाने चाहती अब में कोई भी कष्ट
या देवी सर्वभूतेषु !!
कर दो इस 'दीवाने वारसी' को पूर्णतः नष्ट
ईमान ने आपको अगर रोक भी लिया
तो जोर देकर खींचेगा आपको आपका ही कुफ्र
प्रेममयी माँ ने गर आपको टोका
तो शायद रोक भी लें आप अपनाप को
मुझे नष्ट करने की प्रार्थना करने से
पर "मैं" ये आपका इतनी आसानी से मानेगा नहीं
जब तक हो ना जाऊं मैं आपके जीवन से नदारद
कसम मांगेंगी आप फिर मुझसे ही
आपको छोड़ देने की
आपको भूल जाने की
दुहाई देंगी आप मुझे मेरे ही कसमे-वादों की
खो जाएगा ये सब तब
जो आज है अभी और यहाँ
इसलिए
रहने दीजिये इसे ऐसा ही जैसा की है ये आज और अब
आत्मा जाने या ना जाने
मन माने या ना माने
जिस्म योगी हो या ना हो
अंश एक है अंशी से
आत्मा एकात्म है परमात्मा से
जिस्म दो हैं एक है जान
कहो कैसा लगा ये अंदाज़-ए-बयान ..??
बोलो ना
PLeeeeeeeez
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