Friday, January 25, 2013

An Open letter to Dainik Bhaskar editor- Mr Navneet Gurjar

Egoistic look
of an Egoistic mind

सन्दर्भ : महाश्वेता जी के शोभनीय, प्रेमपूर्ण, श्वेत, संवेदनशील एवं उपयुक्त कथन -"नक्सलवादियों को भी सपने देखने का हक" पर दैनिक भास्करी श्रीमान नवनीत गुर्जर जी का अशोभनीय, नफरत भरा, कालिग लगा, अहंकारी एवं अनुपयुक्त दूषित दृष्टिकोण।

खुद नवनीत दमनकारी नीतियों से 
अपनों के, परायों के, दूसरों के 
सपने छीने ये तामसिक गुर्जर तो कुछ नहीं 
देखि आपने एक चतुर मक्कार की मक्कारी 
की 
एक तरफ तो शीर्ष साहित्यकार को सही भी कहे 
और 
दूसरी तरफ लेकिन कहकर ग्खुद को गुलज़ार भी करे ये गुलजारी 
देखा आपने इस कुतर्की का तर्क गौर से 
की 
गुलज़ार साहब की मासूम पंक्तियों को 
अपने निजी हित के लिए 
महाश्वेताजी के सौम्य कथन के खिलाफ 
कैसा घिनोना उपयोग कर रहा ये नक्सल्कारि  
खुद साहित्य को निर्लज्जता से निरर्थक करे 
तो हक है ये उसका 
और
हम मांगे साड्डा हक तो हो जाते हैं भिकारी 
वाह रे रमेश!!
खूब तेरी ये मायानगरी 
जहाँ राज कर रहे ये विनाशकारी
बने बैठे हैं सरकारी चापलूस 
फिर 
आम जनता की महत्वाकांक्षी सोच का चाणक्य बन
स्वयं की अभीप्साओं को पूर्ण करने की 
खूब सीखी है (शायद तुझसे ही) ये कपटपूर्ण कलाकारी
जज बने बैठे हैं ये कल्पेषित भास्करी 
शायद जानते नहीं
की 
कल नहीं तो एक न एक दिन बा-हक़ पेश होनी ही है 
सुप्रीमो परमात्मा के समक्ष 
इनके वाक्-चातुर्य, 
इनके पाप-पुण्य के कर्मो की सिलसिलेवार पेशी 
जवाब तैयार कर लो अभी से 
की उस क़यामत के दिन नहीं ना चलेगी
एक भी तुम्हारी बिमारी या लाचारी 
ध्यानपूर्वक देखो-समझो-जानो-अमल करो 
 LIFE OK  Tv चैनल पर प्रतिदिन गूँज रही ॐकार की टंकार जगत कल्याणकारी
शायद तुम भी बक्श दिए जाओ इसमहामारी से 
जिस तरह रहमदिली से बक्शे जा रहे हैं 
हम जैसे अत्याचारी और गुनाहगारी भी 
जरुरत है तो बस उठाने की सहज एक कदम 
खुद की ही अंतरात्मा की आवाज सुनने के प्रति 
बाकी निन्न्यान्नु कदम तो उठाते हैं खुद ही 
वो परोपकारी 
आमीन, आमीन, आमीन 
सुम आमीन    

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