आज:
आज ना रोको खुद को
आज
बस हो जाओ जो तुम हो . . .
आज कर लो अपनी सारी हसरतें पूरी . . .
नाप लो आज आकाश ..
चलो आज आकाश के पार अपनी उमंग की डोर थामे पतंग के साथ ...
भर दो रंगों से आज पूरा आकाश ...
चालो . . .
चलो आज अनंत की और
जहां मन के सारे बंधन
तुम तक ना पहुँच पाएँ ...
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा जहाँ
अपने पंखों पर . . .
अब छोड़ दो अपने को हवाओं के सहारे ...
बस बह जाओ बहती उन्मुक्त हवा में . . .
निर्भय . . .
निश्छल . . .
जैसे कोई कटी पतंग . . .
- शम्मी छाबड़ा
उड़ चला है ये वजूद किसी कटी हुई पतंग की तरह . . .
हाँ ... आज
उड़ चला हूँ में आज हवाओं के साथ
डोर काटी है मेरे मेह्बूबों ने मेरे 'मन इश बद केस' की
काटा है ...काटा है ...काटा है
काइपोचे !
फिर ख़ुशी से चीखी है, चिल्लायी है
मेरे सदगुरुओं की टोली . . .
नाच नाच के
फिर वो गाने लगी
हाँ हम टल्ली . . .
हाँ हम टल्ली . . .
रे तू है हमरा झल्ला . . .
और
हम है तेरी झल्ली . . .
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