Monday, January 21, 2013

इश्क वाला लव


पता है 
दूर ...यहाँ से बहुत दूर 
सही और गलत के पार ...
एक मैदान है ...
मैं वहाँ मिलूँगा तुझे ...

जानते हो 
तेरा छूना मुझे सुकून पहुंचाता है 
तुझसे मिलना मुझे रास आता है
पर ...
कोई और मुझे छुए तो मैं तड़प जाती हूँ 
कोई और मुझसे मिलना चाहे तो मैं डर जाती हूँ ...

बस यूँ समझ
की तू मेरी है और मैं तेरा हूँ 
मेरे अलावा तुझे और तेरे अलावा मुझे 
कोई चाहकर भी छू नहीं सकेगा - मिल नहीं सकेगा 
तब तक नहीं 
जब तक के वो तेरे दिल में 
रब्ब नि धड़कन बन धड़कने नहीं लगता ...

यूँ तो कहते है ना 
की हर इंसान में रब्ब बसता है
पर तुझमें ही मुझे मेरा रब्ब दीखता है
यारा मैं क्या करूँ ..

वो इसलिए मेरी जान 
की तेरा इश्क वाला लव 
रब्ब दी मेहर बन 
मेरे दिल में पल-पल धड़कता है 
जगाया है जिसे तूने ही 
मिर्ज़ा ग़ालिब के आग के दरिया में* 
उबारा है जिसे तूने ही
डूबा कर खुसरो के प्रेम के दरिया में** ...

*ये इश्क नहीं आसान 
बस इतना समझ लीजिये 
की एक आग का दरिया है 
और डूब कर जाना है 
इश्क वो आतिश है ग़ालिब 
जो लगाए ना लगे 
और बुझाये ना बूझे ...

**खुसरो दरिया प्रेम का 
जाकी उल्टी धार 
जो उबरा सो डूब गया
जो डूबा सो पार 

Man is bad case.... isn't it?

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