24/01/2013
गुरूवार,23 जनवरी,2013
आज गुरुवार है
तो सोचा कुछ मीठा हो जाए
हलवाई मिठाई नहीं चखता-चखाता रहता
शराबी शराब नहीं पीता-पिलाता रहता
खुशियाँ रेवड़ियाँ नहीं जो बाटी-बटोरी जा सकें
सर्दियाँ सदियाँ नहीं जो खिसकाई-सरकाई जा सकें
गुरपरसाद खरीद सको जो खुद को पूर्णता भी बेचकर तुम
तो बेशक-बेहिचक चूका देना ये मोल
की
प्रेम अनमोल, प्रेम अनमोल, प्रेम अनमोल
हो जाओ सदगुरु पे वारी वारी वारी
गुरु बलहारी, गुरु बलहारी, गुरु बलहारी
या वारिस
करम वारिस, रहम वारिस , दाता वारिस
अल्लाह वारिस, हक
मैंने पुछा : तेरा पता ?
उसने कहा : हर दिल में हूँ
मैंने कहा : दीखता नहीं
उसने कहा : किस्मत तेरी !!
उसने पुछा : क्या खाएगा ?
मैंने कहा : तीर-ए-नज़र
उसने कहा : मर जाएगा
मैंने कहा : झगड़ा ही मिट जाएगा
ना था जब कुछ तो खुदा था, कुछ ना होता तो खुद होता
डुबोया मुझको होने ने, ना होता "मैं" तो क्या होता ?
हुआ जब ग़म से यूँ बेहिस, तो ग़म क्या सर के कटने का
ना होता गर जुदा तन से, तो ज़ानो पर धरा होता
हुई मुद्दत के ग़ालिब मर गया पर याद आता है
वो हर एक बात पर कहना, की यूँ होता तो क्या होता ?
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