हम ही बना सकते हैं गणतंत्र को गुणतंत्र
Man is bad case.... isn't it?
पर पहले ये तो हो
की तंत्र से निजात पाकर हम गण तो बनें
अपने गुणों के हम स्वामी तो बनें
फिर तंत्र तो रच ही गया है हमारी सेवा करने के लिए
अब ये बात और की अब तक तो हम तंत्र के सेवक ही रहे
दोष ना देना किसी और को तुम
की हमारी मनोकामनाओं के ही मनवांछित फल हमें मिले
महत्वाकांक्षाओं के बीज जो बोये थे समाज ने हममें
पाला-पोसा उन्हें हमने ही
अपनी सुखमयी सफलता की खाद से
क्या आश्चर्य फिर
की अहंकारी फूल और अभिमानी फल
असीमित अभिलाषाओं के बाग़ में खिले ...
ये तो हुआ आपके दैनिक भास्करी उथले-उथले सवाल का गहरा-गहरा जवाब
अब हमारे कुछ सवालों का जवाब देने की निपुणता के रस से
आप भी हमें भाव-विभोर कीजिये श्रीमान कल्पेश याग्निक जी
माना के सवाल हमारे आपको लग सकते हैं बेतुके
पर क्या करें जनाब
की ज़िन्दगी की तंग गलियों में खेलें हैं हम
पढ़े-लिखे हैं हम कम
तिसपर अलफ़ाज़ हमारे दे जाते हैं ग़म
गालियाँ खा-खा कर ही आया हम में दम
अब निन्दात्मक होना ही लगाता है हमें मलहम ...
अब आपके "असंभव के विरुद्ध" - अनुशासन, अभ्यास, अनुभूति और अनुभव आधारित अलख की लौ का जरा सात्विक, राजसिक और तामसिक दृष्टि से मुआएना करते हैं हम श्रीमान कल्पेश याग्निक जी ...
पूछते हैं आप राष्ट्रपति के बजाये आम जनता से की "राष्ट्रपति स्वयं क्यों नहीं त्याग देते ऐसा फांसी की सजा से माफ़ी देने का निकृष्टतम अधिकार"
इसलिए जनाब की हुजुर आपकी तरह महज एक काल्पनिक जगत के दुष्ट याग्निक नहीं हैं। वे पिता भी हैं, पति भी, पत्नी भी, बच्चे भी, बूढ़े भी, बुजुर्ग भी, संत भी, पुजारी भी - अन्यथा ना लें अगर आप तो हाँ !! वे सबकुछ के सबकुछ हैं। पर आप महज एक पुरुषार्थी होने के नाते उनका ये "अद्वितीय अर्धनारीश्वर रूप" शायद समझ ना पायें। या अगर समझ भी लें तो जान ना पायें। या शायद जान भी लें पर अनुशासित हो उसके विकराल रूप से अभ्यस्त ना हो पायें। चलो, शायद भी हो जाए पर अनुभिती तो अनुभव से ही आएगी ना जनाब और उसके लिए आपको अपने पुराने अनुभवों से संगृहीत की गई मान्यताओं और धारणाओं से होना होगा दूर और वो शायद जनाब को कतई नहीं होगा मंजूर।
क्यों क्या ख्याल है आपका जनाब?
आपके बदलाव के लिय विचारोत्तेजक बहस जैसा तो नहीं पर एक कामोत्तेजक सवाल है हमारे पास। हो सके तो जरुर दीजियेगा जवाब की सवाल करने वाले को जवाब देने की कला में भी पारंगत होना चाहिए। नहीं डोज तो हम ये चीख-चीख कर गायेंगे की
"मेरे रंग में रंगने वाली
परी हो तुम या परियों की रानी
या हो मेरी प्रेम-कहानी
मेरे सवालों का जवाब दो ...दो ना ..."
- आप स्वयं ही दैनिक भास्कर के राष्ट्रीय सम्पादक पद से जुडी शक्ति-सत्ता-गद्दी त्याग कर समूचे विश्व के समक्ष एक अतुल्निय उद्धरण क्यूँ नहीं प्रस्तुत कर देते श्रीमान कल्पेश याग्निक जी?
- क्या आप नहीं चाहते की आपकी भी जयजयकार हो?
- क्या आप हमारे, आपके चाहने वालों के, आपके अनुयायियों के, सामाजिक प्राणियों के, दीनिक भास्कर के दिन कर्मचारियों के सन्दर्भ में "राम" नहीं बनना चाहते?
- क्या आप अपने अधिकारों का दैनिक दिनचर्या में निकृष्टतम उपयोग कर लोगों को उनके किये की सजा नहीं देते?
- क्या जब कभी कोई व्यक्ति दिल से अपने गुनाहों को कबूल कर पश्चताप से भरकर नेकी की, दिन-ओ-ईमान की राह पर चलने का प्रायश्चित करने का ना सिर्फ निवेदन कर ररहा हो बल्कि आपको वाकई ये महसूस हो रहा हो की ये व्यक्ति अपनी अनातारात्मा की आवाज सुन जरुर इस निवेदन का अपने दैनिक जीवन में अमल भी करने की इच्छा रखता है तो क्या आप महामहिम बनकर उसे माफ़ी देकर एक मौका और देने की कृपा नहीं करेंगे ?
- क्या आप चाहेहेंगे की आपके परिवार में से जब किसी से घालिबन, बातिमन या ज़ाहिरन कोई भूल-चूक हो जाए तो उसे महामहिम माफ़ कर एक मौका और ना बक्शें?
- क्या आप अपने पाठकों के बेबाक मशविरों को हम रायचंदियों की फुकट की राय मान हम जैसे बेकार लोगों की मुखर वाणी को bhaskarnet.com और अपने इ-मेल id से ब्लाक नहीं कर देते?
- किस बात की सजा देते हैं आप हमें और वो भी बिना किसी show cause, charge sheet, domestic inquiry दिए/किये बगैर?
- क्या यही आपकी "बड़प्पन" की परिभाषा है?
आप ही फैसला करो भाइयों और बहनों :
की मैं झूठ बोल्याँ ?
की मैं कुफर तोल्याँ ?
की मैं ज़हर घोल्याँ ? Man is bad case.... isn't it?
bhut sundr sawaal...
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