Tuesday, January 29, 2013

supremely intelligent but worldly foolish !!

कोई समझाए उन्हें की हम समझाएँ क्या ..??


आदरणीय गुरुचरण दास जी,

'दैनिक भास्कर' जैसे सामान्य जनमान्य के दूषित अहंकार को सर्वदा बाजारी ढंग अपना कर कुपोषित करने वाले अखबार में आप जैसे गुरु ज्ञानी जी का आलेख पढ़कर हम जैसे सहिष्णुता, धार्मिक-आर्थिक-राजनितिक रूप से पूर्णतः आज़ाद होने की पूजा में लगे हुए मुर्खाधिपतियों को ना सिर्फ आत्मिक सुकून पहुँचाया आपने अपितु एक उदारवादी मार्ग भी प्रशस्त किया।

हमारे चित्त को आनंद पहुंचाने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। हमारे साधुवाद, हमारे नमन को सहर्ष स्वीकार कर हमें आपका वरदहस्त सदैव यूँ ही बक्शने का वरदान दीजिये महाराज।

एक प्रश्न जो दिल को बैरागी एवं मन को चंचल कर रहा है वो ये है की ;
  1. आप राहुल गांधी जैसे बालक से तो सत्य कहने की वांछित अपेक्षा रखते हैं पर क्या आप स्वयं ये फर्ज दैनिक भास्करी आकाओं, संपादकों, कल्पेषित याग्निकों, नवनीतम गए-गुजरम के साथ निभा रहे हैं?
कुछ और उन प्रश्नों के चैतन्यमयी जवाब जो आज के 'दैनिक भास्कर' के मुखपृष्ट पर कुंठित रूप से विराजमान हैं। आशा है आपका चेतन/अवचेतन मन इन्हें पढना स्वीकार करेगा:
  1. क्या ऐसे विकृत मुजरिम को महज कुछ महीनो की सजा मिलना ठीक होगी? 
जवाबी-प्रश्न: किसने कहा या मान लिया की सिर्फ मुजरिम ही मानसिक रूप से विकृत होते हैं? 

निश्चित रूप से ऐसा एकपक्षीय फैसला करना एक वामपंथी, पूर्वधारनाग्रस्त, विकलांग समाज के लिए ही संभावित हो सकता है। नहीं?

    2. क्या कम सजा से वह आगे चलकर खतरनाक अपराधी नहीं बन जाएगा?

जवाबी-प्रश्न: कौन कह सकता है की एक मुजरिम हमेशा मुजरिम ही रहेगा या खतरनाक अपराधी ही बनेगा?

निश्चित रूप से ऐसा भविष्योन्मुखी फैसला वो ही काल्पनिक समाज कर सकता है जो भूतकाल में इसी समाज में जन्मे महर्षि वाल्मीकि, अंगुलिमाल, खड़गसिंह जिसे लोगो को पूर्णतः विस्मित कर चूका है। नहीं?

   3. अपराधी की उम्र के बजाय क्या अपराध की गंभीरता सजा के लिए आधार नहीं होना चाहिए?

जवाबी-प्रश्न: किसे है खबर की अली-मौला-परमात्मा-god-परमानंद-सद्चितानंद के दरबार में किस अपराध को कितनी गंभीरता से लिया जाता है और किस अपराधी को उसके किये अपराध की सजा देने का आधार-निराधार क्या है?

निश्चित रूप से ये अधिकार तो वैदिक रूप से पूर्णतः पारंगत-सज्जित-सुसज्जित पंडित दैनिक भास्कर को ही प्राप्त है। नहीं?

  4. क्या ऐसे अपराधी को आज नहीं तो कल उसका प्रायश्चित और पश्चताप पूर्ण रवैय्या देख कभी माफ़ किया जा सकता है?

जवाब: नहीं। कतई नहीं किया जा सकता। खासतौर से एक छल-कपटपूर्ण, हिंसात्मक बदला लेने के लिए सदैव तत्पर समाज तो कभी माफ़ नहीं कर सकता। कर सकता है क्या?

निश्चित रूप से ये मुर्खता तो महामहिम, जगतपिता या भारत देश का राष्ट्रपति ही कर सकता है। नहीं?
  5. कौन कर सकता है ऐसे अपराधी को माफ़?  

वो ही महादेव भक्त, महाज्ञानी, लंकाधिपति दशानन जिसने अपनी बहन शूर्पनखा की नाक काटने वाले लक्ष्मण जी को रामजी द्वारा, उन्ही रामजी के तीर द्वारा मरते वक़्त उसके पास ज्ञानार्जन के लिए भेजे जाने पर किंचित भी समय नहीं लिया अपना ज्ञान देने में। नहीं?

  6. ये शब्द किसी मर्यादा पर क्यों नहीं रूकते?

जवाबी-प्रश्न: क्या मर्यादा पुरुषोत्तम को आज भी हम एक धोबी की बात सुन गर्भवती सीता मैया को अपने महल से दूर भेजने के लिए, उनकी अग्नि-परीक्षा लेने के लिए कोसते नहीं फिरते?

निश्चित रूप से जो रोक मर्यादा पुरुषोत्तम ने एक सामान्य जन पर लगाने का प्रयास नहीं किया वैसी रोक तो महान सम्पादक माननीय नवनीत गुर्जर जी जैसा भगवान् या उनका कर कमलों द्वारा रचित समाज ही कर सकता है। नहीं?


"कह सके कौन की ये जल्वागिरी किसकी है
पर्दा रख-छोड़ा है कुछ यूँ उसने की उठाये ना बने"

'शबद-शबद सब करत हैं 
शबद के हाथ ना पाँव 
एक शबद औषध करत 
एक कीर है घाव' 

।। सात समंद की मथ करूँ
लेखन करूँ बनमाए
सबरी धरती कागद करूँ
गुरु गुण लिखा ना जाए ।।

    
Man is bad case.... isn't it?

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