Thursday, July 28, 2011

साईं की हूँक


अफ़सोस..
ये नहीं,
की तुम मुझे समझ न पाईं...
अफ़सोस..
ये भी नहीं,
की तुम मुझे जान ना पाईं...
अफ़सोस..
ये,
की मेरी जान भी मेरी हो ना पाई...
बेशक..
कसूर मेरा ही है...
अफ़सोस..
के आज फिर मैंने अपनी जान है गवाई...
बस कर भाई..
बस कर..
कब तक तू
दूसरों से ही इश्क फरमाएगा...?
कब तक तू
यूँ ही अपनी जग-हँसाई करवाएगा...?
कभी तो.,
दिल-ओ-जान से इश्क लड़ा
तू
अपनी जान-ए-जाँ के साथ...!!
कभी तो.,
एक हो जा
तू
अपनी जानशीं के साथ...!!
चल अकेला-चल अकेला
की आज फिर साईं ने हूँक है उठाई...
बड़े दिनों के बाद.,
आज फिर मुझे अपनी ही याद आई...

Thursday, July 21, 2011

बेतुकी पत्रकारिता का दौर

दो कौड़ी का है तुम्हारा ये विश्वास
शब्द में ही निहित है देखो विश्व की आस
टूट जाता एक ज़रा हवा के झोंके से
रह जाती है केवल दिलों में फांस

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बेतुकी पत्रकारिता का दौर



घटनाओं का एकतरफा चित्रण मानवीय त्रासदियों को और भी गहरा कर जाता है I मानव इससे अतुलनीय संताप में डूब जाता है I


लगता है जैसे व्यावसायिक और वैयक्तिक हित पूरी मानवता पर इस तरह छा गए है की सात्विकता के पास
सिवाए आश्चर्य के इस तमाशे को देखने के और कोई चारा ही नहीं बचा है I पत्रकार और पत्रकारिता फिर अव्वल दिखने की इस होड़ से कैसे अछूते रह सकते हैं I लेकिन सवाल ये उठता है की ये पत्रकार क्या वाकई पूर्ण सत्य से नावाकिफ हैं या इन्होने जान-बूझकर एक लोक-लुभावन मुखोटा ओढ़ रखा है I अगर देश के स्थापित पत्रकार भी अपनी महती महत्वाकांक्षाओं के चलते आज सत्य का अधूरा चेहरा प्रस्तूत करने को बाध्य हैं तो देशवासी पिछलग्गू पत्रकारों से क्या उम्मीद कर सकते हैं I

मुझे ये बताइये जनाब की फिर ये सम्माननीय पत्रकार उन राजनीतिज्ञों से किस तरह अलग हुए जो लोक-मानस को लुभाने के लिए वही कहते हैं जो देश की जनता सुनना चाहती है I ये किस तरह की लीडरशिप है जो नेतृत्व करने के बजाए अनुसरण करती है जन-मानस की अवांछित भावनाओं का उनके वोट या नोट हासिल करने के लिए I जनता को तो फिर भी एक बार माफ़ किया जा सकता है उनकी स्वार्थी सोच के लिए पर इन प्रबुद्ध पत्रकारों का क्या कीजिये जो अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए अर्ध-सत्य परोस रहें हैं I

अगर से ये माननीय पत्रकार एक पल के लिए भी ये मानने को राजी हो जाएँ की इनका सत्य का ज्ञान अधुरा है तो फिर तो निश्चित रूप से कुछ बातचीत हो सकती है पर क्या ये सर्वज्ञानी इस तथ्य को जानने के लिए उत्सुक होंगे की सत्य हद, अनहद और हद-अनहद के बीच स्थित होता है ?

चलिए हम आशा का सहारा ले आगे बढ़ते हैं ये सोचकर की शायद पुरे हिन्दुस्तान में कोई १० प्रतिशत तो ऐसे पत्रकार होंगे ही जो पत्रकारिता के सही माईने पर सोच-विचार कर उसे अपनी दैनिक जीवन में लगन से अपनाना चाहते हैं I

अब हाल ही में हुए मुंबई बम ब्लास्ट और उससे जुडी पत्रकारिता की ही बानगी ले लीजिये I

हर पत्रकार, चाहे वो किसी भी समाचार-पत्र या न्यूज़ चैनल से सरोकार रखे हुए हो, सभी ने एक ही नारा बुलंद किया की "सरकार निकम्मी है, नाकारा है, लाचार है" I किसी भी समझदार पत्रकार ने ये कहने की ज़हमत नहीं उठाई की हम सारे के सारे भारतीय सामूहिक रूप से देश के इस हाल के लिए जिम्मेदार हैं I किसी ने भी देश की अनाप-शनाप जनसँख्या और उससे जुड़े तंत्र के लाचार मूकदर्शक बने रहने की मज़बूरी का पक्ष दिखाना जैसे उचित नहीं समझा I

आप ही बताइए क्या कोई भी माई का लाल छाती ठोंक कर इस १२१ करोड़ की आबादी वाले मुल्क की पल-पल, हर पल, हफ्ते के सात दिन या महीने के तीस दिन और साल के ३६५ दिन की समुचित सुरक्षा का जिम्मा अपने सर पर लेने का दावा कर सकता है? शायद ये पत्रकार बंधू ऐसा कर सकते हैं जो की इनके लेख पढ़ कर और इनकी सनसनी बातें tv पर देख-सुनकर महसूस होता है की हाँ....शायद ये पत्रकार ही अब हमारे देश के कर्णधार और माझी हो सकते हैं I तो मुझे लगता है की हमें तुरंत से पेश्तर देश की बागडोर इनके हाथों में सौंप देना चाहिए I शर्त सिर्फ इतनी सी हो की इनके देश के भगवान् होने के दौर में अगर एक भी बम ब्लास्ट हुआ तो इन्हें ना सिर्फ निकम्मा और नकारा करार दिया जाएगा वरन इनके हाथों से वो कलम भी छीन ली जाएगी जिसकी ताक़त के दम पर ये इस कदर इतराते फिरते हैं I

बहुत दूर जाने की जरुरत नहीं है हुजुर..., आप सब जानते हैं की आए दिन होने वाले घोटालों में मीडिया के दिग्गज किस तरह शुमार होते हैं I आप सब ये भी जानते हैं की खबर बनाने और बिगाड़ने की आड़ में ये पत्रकार किस तरह blackmailing के हथकंडे अपना कर पैसा और रुतबा हासिल करते हैं I अगर नहीं जानते हैं तो निकट भविष्य में कभी ना कभी जान ही जाएँगे I स्थानीय पत्रकारों की तो हालत और भी बुरी है I ये लोग तो छोटी सी छोटी खबर छापने की एवज में कुछ नहीं तो आपसे शीश झुका कर नमन के तो हक़दार खुद को मान ही बैठते हैं I हालत ये है की beaureau chief सब कुछ जानते हुए भी अनदेखी कर देता है I

तो फिर तर्क ये कहता है की ये पत्रकार होते कौन हैं समाज की तरफ से ठेकेदारी करने वाले अगर से ये अपना घर-दफ्तर ही ठीक से नहीं चला सकते? क्या हक है इन्हें किसी राहुल गाँधी, चिदंबरम या पृथ्वीराज चव्हाण की बयानबाजी पर सवाल उठाने का?

आप ख़ुफ़िया तंत्र को दोषी ठहराना चाहते हैं ये कह कर की वो ये बम ब्लास्ट किसकी कारगुजारी ये तक नहीं जानता? हुजुर क्या आप जानते हैं की आप के मकान से दस मकान दूर रहने वाले पडोसी के नौकर की बेटी के पति का नाम क्या है?

झवेरी बाज़ार, ओपेरा हाउस और दादर जैसी जगह पर जहाँ शाम ५ से ७ और सुबह ९ से ११ के बीच हर रोज इस कदर भीड़ पड़ती है जैसे कोई मेला लगा हो - छोटा-मोटा मेला नहीं कुम्भ का मेला I हर कोई घर पहुँचने की जल्दी में होता है I इतनी जल्दी में की आपको चलना नहीं पड़ता - आप धकियाए जाते हैं जनाब I ऐसी जगह पर ख़ुफ़िया तंत्र तो छोडिये जनाब हर तंत्र फ़ैल हो जाता है I शुक्र मनाइए के ऐसे बम ब्लास्ट ऐसे जगहों पर कमोबेश रोज नहीं होते - शायद इन आतंकवादियों में अब भी थोड़ा ज़मीर बाकी है I

गृह मंत्री का आप ये कहकर मखौल उडाना चाहते हैं की उन्हें आतंकवाद के बारे में कुछ पता नहीं I क्या आप आपके ऑफिस या घर में हो रही हर गतिविधि से वाकिफ रहते हैं? क्यूँ फिर आपके ऑफिस में गबन हो जाता है और क्यूँ आपके घर से एक कीमती घड़ी सहसा गायब हो जाती है? नहीं ऐसे सवाल कर आप गृह-मंत्री का नहीं अपना मजाक बना रहें हैं या हो सकता है की दर्शक-दिर्घा की वाह-वाही लूटने के लिए आपको ये बेवकूफी करना भी मंजूर है I

राहुल गाँधी को आप आंकड़ों में उलझाना चाहते हैं जबकी आप ये बखूबी समझते हैं की आपकी सचेत नज़रों और आपके cctv की वजह से आपके ऑफिस और घर में होने वाले ९९ प्रतिशत अपराध घटित होने से वंचित हो जाते हैं वर्ना तो मुम्बैय्या जबान में आपकी वाट लग जाए इ

प्रधानमन्त्री महोदय की सज्जनता को भी आप बख्शना नहीं चाहते हैं I एक सज्जन और सच्चा पुरुष सचमुच भोंचक्का ही रह जाता है अपने आस-पास फैले इस कदर झूठ और मक्कारी को देखकर, पर रहने दीजिये, आप उनके आश्चर्य को कभी ना समझ सकेंगे I आप खुद एक्सपर्ट जो ठहरे तमाम चालाकियों मे जिन्हें आप बड़ी कुशलता से व्यवाहरिकता का जामा पहना देते हैं I

आप, जो मेरी बातों को बकवास समझ-कह रहें हैं हुजुर, क्या आप खुद इस बकवास से परे हैं?

आप जो सरकार को अपनी गद्दी बचाए रखने के लिए सहानुभूति और करूणा का पाठ पढ़ा रहें हैं, क्या आप खुद सरकार के दायित्वों और उसके कार्यपालन को सहानुभूति से देख पा रहें हैं हुजुर?

तंग ही होना है तो पहले अपने-आप से और अपने इस अहंकारी मन से होइए श्रीमान I ये मन जो हर वक़्त दूसरों पर दोष मढने में लगा रहता है I

प्रासंगिक कीजिये अपने दिल को I

होश में आइये महाशय - होश में I

देखिये और दिखाइए वो जो है - परिकल्पनाएं बहुत देख और दिखा चुके आप I

वक़्त आ गया है कटु यथार्थ से रू-ब-रू होने का I

आमीन



आपका पाठक

मनीष बढ़कस

manish badkas

Wednesday, July 20, 2011

एक सवाल

यूँ तो...

कहने को

मैं भी कह सकता हूँ

की

नाखुश हूँ मैं अपनी ज़िंदगानी से

पर

कह दूँ अगर

तो

नाशुक्रा ना कहलाऊंगा

अल्लाह की बख्शी हुई उन नेमतों का

जो बरसाई है

उस रहीम-ओ-करीम ने मुझ पर

मुझे अपनी जान दे कर...!!??


एक सवाल है फ़क़त

यूँ दिल पर ना लीजिये

जवाब देने में यूँ वक़्त ज़ाया ना कीजिये

क्या पता कब निकल जाए ये अदना सी जान

बस...

ज़िन्दगी की अपनी यूँ तौहीन ना कीजिये 

Tuesday, July 19, 2011

Rapping against hope...


Yeah...
many a times i feel depressed and dejected to see life treat me the way it does...

but then...

i hear a cat crying unstoppably for her lost kittens...
She comes to me...
She looks into my eyes...
as if...
 she is asking me for some help...
i offer her milk...
She is not all that interested in quenching her hunger...
 but...
 still slurps the milk...
vow...vow...vow
She looks at me again and jumps out of the window...

The next minute...
 i hear her cry in the neighbourhood...
She is again in search of her lost kittens...
Soon...
She will forget all about her lost kittens...
and...
will be pregnant with fresh expectations from life...

My mind...
my mind too is almost like her...
it never stops expecting fairness from life in the name of HOPE...
Hope...
i have heard them say often...too often
 that hope is the biggest human strength...
but i...
yeah i...
in my life have found hope to be the biggest deterrent to stay happy...
Hope...
it frustrates you more than it keeps you happy...
yeah...
it gives you the feeling that you are in a soiled nappy...

i hoped to be successful someday...
but then...
what it actually meant was that i am a failure today...
which i am not...
yeah...i am not
How can the master create a failure...
if i am a failure he is a failure...
Is He not known to create masterpieces...
Each unique...in its own way...
Then...
why do i have to sulk if i am not Jesus...

To me...
The only challenge before us humans is to stay natural...
but hope...
which is a euphemism for our expectations and desires today...
have all but ruined our uniqueness...
yeah...today it is natural to be un-natural...
Sometimes...
but only sometimes...
i wonder as to what kind of life it would be for me...
and for that cat in me...
if we learn to live life without any hope...
yeah...so called hope...
Will it be less cruel on us...
Or...
Will it destroy us completely...
Will it be friends with us...
Or...
Will it hurt us frenetically...

Isn't hoping for the best from the future...
 like...
accusing the seed...
for its current tiny, ugly and unfruitful state with no meat...
Now...
Can the seed ever thrive to magnificence...
if it doesn't enjoy its being in the now&here...
all...
because of this added pressure of hope put by the mind...
and the society...
to be big, beautiful and a fruit of some significance...

Can...
future be a bliss if present is not accepted in totality...
Can...
present be a bliss if we keep on hoping from it mortality...

Is...
bliss just an imaginary phenomenon...
Can it be ever realised by a noumenon...

If...
future is unseen...
it can be bright / it can be dark too...
yeah..yeah..yeah
they term hoping for the best from the future...
 a positive attitude too...
but...
if the roots of this hope are in the non-acceptance of the present...
then...
rest assured that it is the root cause too...
for all the pain and the suffering that we undergo in the now & here...
Yeah...Yeah...Yeah
Right now - Right here

Oh God...
please help me to get rid of my mind's slavery....
Oh God...
please free me from this hoping gallery...
instead...
bless me with eyes of wisdom to see & accept life - as it is...
Oh God...
please grant me hopelessness from the other - sick it is...

i trust the YOU in me.

Monday, July 18, 2011

Letter to the victims and survivors of recent Mumbai Blasts...

One message which is doing the rounds in the mobile and Internet circuit after the recent bomb blasts in Mumbai on 13th of July is about the security of Indians. It taunts the government of India by asking it not to nab or kill the bomb blasters but to provide Indians with Ajmal Kasaab kind of security.
The message coyly then asks the receiver of the message to forward it to all Indians.

My response to such - Government does nothing - kind of message goes like this :

If you want Ajmal Kasaab kind of security;

You will have to first lead the same kind of pathetic life that he led in Pakistan...
Then, you will have to reject the voice of your conscience to become what Kasaab ultimately became...
Then, you will have to kill for money and also for those beliefs which are not at all yours but are forced upon your throat by a merciless society...
Then, you will have to choose to live an un-spirited life as a slave of mortal fear...
Then, you will have to prepare yourself to bear all such savage brutalities and tortures from the hands of police which never get printed or shown in media...
Then, you will have to actually kill innocent people, children and ladies included, in cold blood...
Then, you will have to face the ire & hatred of 120 crore people day-in and day-out till you are alive...
Then, you will have to really feel guilty for letting your mind rule your heart...
You start to want instant death more than life or security that your so called well-wishing promised you with, not so far ago...
But your wish will not be granted so easily - not until your soul is pure.
That, to me, is real justice...
That is what i call real Hindustani law befitting real Hindu tradition of love and compassion.
The supporters of Islamic law of - EYE FOR AN EYE have definitely forwarded that hate message which most probably got created by Hindustani terrorists.
Since you have forwarded that message to me too, may i ask as to when did you change your religion....?????

The other side of the story is as follows :
 
The life insurance companies who thrive on mortal fear would certainly like to nab the opportunity by providing wholesome security to such fear. A high premium policy for all Indians against untimely death seems to be perfect answer to safeguard the financial interests of the decease's family.

The question is - What about the emotional interests of the family?
Well, one can argue that time heals all such emotional traumas and life moves on.

That brings me to the second question - What about the interests of the deceased himself?
True, posthumously the deceased does not have any interests but then why should he invest so heavily in insuring a life which he would not have?

Being a true Indian who puts his family's interests before his own, he would still go for the deal. One another reason that will make him go for the deal is his latent desire to be known as a good, responsible family man. His family, if not in his life, at least after his death will surely thank him for what he left for them and daily garland his A4 size picture hanged religiously in the drawing room.

Oh man....your desires make you such a fool.
You loose your life for no apparent fault of yours and the society pays you handsome tributaries post humously for being such a fool. The priests that perform your last rites blame your destiny or Karma for your untimely death and you think that am i, along with my fellow bomb blast sufferers, the only culprits in entire Mumbai? Are all other survivors some kind of saints? Or their Karma too are just waiting for their destinies to ripe?

Just as you are lost in such thoughts of total insignificance now, you are pleasantly surprised to note that a soothing voice is welcoming you at the door to heaven. The gate opens and you see blissful light everywhere. An Apsara holds your hand delicately and tells you not to worry anymore as it is time for your spirit to be one with the holy spirit.

That is exactly the point where you suddenly realise that you have been transported to heaven to save you the pains of living a hellish life in India ; that you are not at all a sinner but are a blessed one.

You can also see some of your fellow brethren who lost their lives on that bomb blast day but wait...
Where are the others?

The light tells you that they are on their journey back to hell on planet Earth. Their spirits are given one more chance to lead their lives in such a way that they earn their place in heaven.

You protest,"But i never once did feel that life in India or planet Earth is a hell. Challenging it is, but certainly not hell."

"That is exactly why you are here my dear child," tells you the holy spirit in its booming voice.

Friday, July 15, 2011

गुरु कौन.....??

गुरु कौन.....??



वो...


जो आपको किताबी ज्ञान दे जाए


या वो...


जो आपसे आपकी नफरत छीन ले...!!


वो...


जो आपके मन को बहलाए


या वो...


जो आपको अपने मन का स्वामी बनाए...!


वो...


जो आपको सफल होने के गुर-मंत्र दे जाए


या वो...


जो असफलता का भाव आपसे छीन ले...!!


वो...


जो आपके ज़ख्मो पर सहानुभूति का लेप लगाए


या वो...


जो आपको दुःख की अनुभूति से पार ले जाए...!!


वो...


जो आपको ज़माने क अनुसार जीना सिखलाये


या वो...


जो ज़माने से उसकी सत्ता छीन ले...!!


वो...


जो प्रकाश का मार्ग बतलाये


या वो...


जो अहंकार और अन्धकार की मिथ्यता दिखलाए...!!


वो...


जो लाखों-करोड़ों की भीड़ है जुटाए


या वो...


जो आपसे आपकी महंती महत्वाकांक्षाएं छीन ले...!!


वो...


जो प्रेम और श्रद्धा पर लम्बे-चौड़े प्रवचन कर जाए


या वो...


जो आपको हर पल जीने की कला में घसीट ले जाए...!!


वो...


जो आपको अपना अनुयायी बनाये


या वो...


जो आपसे आपकी परतंत्रता छीन ले...!!


वो...


जो आपके और-और से आपको और भर जाए


या वो...


जो आपको आपके खालीपन से मुक्त होने का मंत्र सुझाए...!!


वो...


जो आपको ICON बनने का सपना दे जाए


या वो...


जो आपके I से CON पन छीन ले...!!


वो...


जो आपको समृद्ध और यशस्वी होने के आशीर्वाद दे जाए


या वो...


जो आपको असली दीनता और अपयश के गुण-धर्म दिखलाए...!!


वो...


जो आपको सम्माननीय होने की जोड़-तोड़ सिखलाये


या वो...


जो आपसे आपका मान और जुगाडू प्रवृत्ति छीन ले...!!


वो...


जो आपको स्वर्गीय होने के उपाय बताये


या वो...


जो आपको [अभी और यहीं ] नरक से छुटकारा दिलाये...!!


वो...


जो आपको क्रिया-कांडों में अखबारों सा उलझाए


या वो...


जो आपसे कर्म की आकांक्षा छीन ले...!!


वो...


जिसे देखते ही आपके सोये हुए अरमान जग जाएँ


या वो...


जिसे देखते ही आपकी तन्द्रा टूट जाए...!!


वो...


जिसका स्पर्श मात्र आपको निरोगी कर जाए


या वो...


जिसकी दृष्टी मात्र ही आपके रोग छीन ले...!!


वो...


बताओ साधो बताओ


अब तुम ही कुछ बताओ


की मो से तो...

सब धरती कागद करूँ


लेखन करूँ बनराए


सात समुंद की मसि करूँ


गुरु गुण लिखा ना जाए !!


[ कागद = कागज़, बनराए = जंगल, समुंद = समुद्र, मसि = स्याही ]



Wishing you life enriched with Gurus on this guru-purnima day...


i mean true gurus and not guru-ghantaals haan...!!


God day


God bless


Love


Peace


ॐ शान्ति शान्ति शान्ति :

Thursday, July 14, 2011

एक सच्चा हिन्दुस्तानी


अपने जीवन के प्रति धन्यवाद से भरा हो जिसका मन
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

योग हो जिसके तन-मन-धन में सघन
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

स्वयं-हित से पहले हो राष्ट्र-हित की जिसमें दिली लगन
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

बच्चे पैदा करने तक ही सिमित ना हो जिसका सृजन
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

हर कौम-संस्कार-ज्ञान को आत्मसात कर करे जो ग्रहण
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

श्रद्धा और सबुरी से भरा हो जिसका हर कदम
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

सुबह उठ सबसे पहले अपने इष्ट का स्मरण करे जो
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

बाद उसके उठ माता-पिता और बुजुर्गो को नमन करे जो
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

नित्य करमों से फारिग हो स्नान-ध्यान-पूजन करे जो
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

निकल पड़े फिर जो घर से करने को समाज का सृजन
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

अपने काम को जो माने पूजन
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

दफ्तर-दूकान-प्रतिष्ठान में सेवा ही हो जिसका करम
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

पद-मान-सम्मान के नशे से रखे जो फासला अधम
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

सिमित संसाधनों से ही जो बना सके जीवन को चमन
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

चादर की लम्बाई अनुसार ही फैलाए जो अपने चरण
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

रूह के माध्यम से इन्द्रियों को कर ले जो अपने शरण
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

नारी का दोहन करने में जो कतई ना हो सक्षम
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

सदाचारी होने का जो पाले ना हो भरम
वो होता है सच्चा हिन्दुस्तानी

इन अठारह धार्मिक संस्कारों में से
एक-दो का भी पालन करते दिख जाए जो कोई भी सज्जन
तो गुरु अपना जान के तुरंत कर लेना नमन
गुरु-पूर्णिमा भी मन जाएगी
सच्चा हिन्दुस्तानी भी मिल जायेगा
और
प्रभु के भी सहसा हो जाएँगे दर्शन

वर्ना तो...,

ढूंढ़ते ही रह जाओगे इस भरे-पुरे मुल्क में
एक अदद हिन्दुस्तानी

पर फिर...,

क्यूँ करें हम ये फिजूल की तलाश
क्यूँ ना हम खुद ही हो जाएँ
एक सच्चे हिन्दुस्तानी...!!

Tuesday, July 12, 2011

The search...


मो को कहाँ ढूंढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास रे...
ना मैं मस्जिद
ना मैं देवल
ना मैं काबे-कैलास रे...
ना मैं भेदी
ना मैं बकरी
ना मैं छुरी-गंडास रे...
ना मैं खाल
ना मैं पाश
ना मैं हड्डी-माँस रे...
ना मैं धर्मी
ना मैं अधर्मी
ना मैं जती
ना मैं कामी हो...
ना मैं कहता
ना मैं सुनता
ना मैं सेवक
ना मैं स्वामी हो...
ना मैं बंधा
ना मैं मुक्ता
ना मैं बिरथ
ना मैं रंगी हो...
ना काहू से न्यारा हुआ
ना काहू के संगी हो...
ना हम नरक लोक को जाते
ना हम स्वर्ग सिधारे हो...
सब ही हमारा करम किया
हम करमन से न्यारे हो...
ना मैं कोनो किर्या-करम में
ना मैं जोग-बैराग हो...
खोजी होए तो तुरत मिली हूँ
पल भर की तलास में...
मैं तो रहूँ शहर के बाहर
मेरी पूरी मवास में...
कहे कबीर सुन भाई साधो
सब साँसों की साँस में...
मो को कहाँ ढूंढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास रे...


Have
faith in your inner self
Oh my dear...

It is there that i reside
Oh my dear...
Once you see and feel me within you
You see me everywhere...
In different shapes, sizes and forms i come
yet i am nowhere...
You also come to know where i am not
Broadly speaking;
i am in everything natural
but i am not in anything un-natural...
Natural is that which comes from me
and my nature...
Un-natural is that which comes from your mind
Oh my dear...
Scientists have been able to find heart
- naturally so...
But they haven't been able to find mind
- naturally so
Because;
Mind is just a collection of thoughts
Some from the past
and some about the future...
But;
in present they are not
Present is full of being
and being, my dear...
is not a thought.
So;
i am in love
i am in hate
but in murder i am not...
i am in sex
i am in lust
but in rape i am not...
i am in light
i am in darkness
but in despair i am not...
i am in life
i am in death
but in suicide i am not...
i am in words
i am in silence
but mum i am not...
i am in consciousness
i am in un-consciousness
but in self-denial i am not...
So;
Trust your inner-self
Oh my dear...
it is there that i always was, is and will be......................

Saturday, July 9, 2011

ये जन्नत और ये जहन्नुम



काश...

के

ये जन्नत

और

ये जहन्नुम

मौत के बाद ही

नसीब होते हमें...,

देखा है हमने

वाईज़ों को

रोज़ मगर

जन्नतों पे मरते हुए

और

सजदे में

नमाज़ियों को

जहन्नुम के खौफ़ से...!!

वल्लाह..!!

कोई बतलाये उन्हें

के

हासिल है ये खुदाई जन्नत

अभी और यहीं ही

और

मिलता नहीं है जहन्नुम

कल और परसों में...

फिर

ये भी कर लीजिये इकरार

की

खुदा और खुदापरस्त

होते कभी

दहशतगर्द नहीं....!!

Thursday, July 7, 2011

नज़रें



हवाओं को खोते हमने देखा नहीं

वक़्त को ठहरते हमने देखा नहीं

मौसमों को मरते भी कभी देखा नहीं

हाँ मगर...,

इंसानों को रोते-झींकते-अटकते जरुर देखा है

शायद..,

हमारी नज़रें ही बेअदब और गुस्ताख हैं

ये वो देख लेती हैं जो नाकाबिले गौर है

और मरहूम रह जातीं हैं

वो देखने से जो करिश्मा-ए-बा-कमाल है...

ना जी ना...

इस ग़लतफहमी में उम्र ना गुजार दीजियेगा

की कोई खुदा आएगा कहीं से

बक्शने को तुम्हें ये नूर-ए-नज़र

अरे मियाँ...,

ये नियामत तो इंसान को हासिल है ही

बस,

पाक-ओ-साफ़ रखनी होती है ये कुदरत की बशर...

उतार फेंकिये ये अक्ल के चश्मे

डूब जाइये इश्क के समंदर में

ख़त्म कर लीजिये अपनी पहचान

फिर देखिये

दिखाई देगा तुम्हें वो

जो है तुम्हारे अन्दर में...

तब तक..,

हो रहिये बिस्मिल

हो जाइए कामिल

करिए तह-ए-दिल से इस्तकबाल ज़िन्दगी का

चाहे आसानी हो या हो मुश्किल...

हर सूरत है उसी की सूरत

हर मूरत है उसी की मूरत

और...,

हर सीरत में होता है वही

चाहे ये फितरत हो या वो फितरत...

Tuesday, July 5, 2011

शह और मात

आप समझ ना सकें शायद...
ये  बेबूझ सी एक बात !!
फिर भी कहे देता हूँ
ये सोचकर की
ना जाने कब
निकल आएँ wisdom वाले दांत :

अच्छी बीवी
केवल
अच्छे पति
को ही नसीब होती है

और हाँ...
इसका उलट भी एकदम दुरुस्त है...
तो गुरु !!
देर किस बात की है...
चल
हो जा शुरू...
ओह हो !!
दूसरों के सुधरने की
कब तक जोहोगे तुम बाट
तुम तो जागो !!
फिर देखो
कितनी खूबसूरत है ये रात...
वर्ना तो
सारी ज़िन्दगी यूँ ही
मलते रह जाओगे तुम अपने हाथ...
हर सुबह होगी तुम्हारी शह
और
हर रात होगी तुम्हारी मात !!

Saturday, July 2, 2011

Must read ; whether you are married or not


The Dance Called Love


I have never said that love is destroyed by marriage. How can marriage destroy love? Yes, it is destroyed in marriage but it is destroyed by you, not by marriage. It is destroyed by the partners. How can marriage destroy love? It is you who destroy it because you don’t know what love is. You simply pretend to know, you simply hope that you know; you dream that you know, but you don’t know what love is. Love has to be learnt; it is the greatest art there is.

If people are dancing and somebody asks you, “Come and dance,” you say, “I don’t know how to.” You don’t just jump up and start dancing and have everybody think that you are a great dancer. You will just prove yourself to be a buffoon. You will not prove yourself to be a dancer. It has to be learnt — the grace of it, the movement of it. You have to train the body for it.

You don’t just go and start painting just because the canvas is available and the brush is there and the color is there. You don’t start painting. You don’t say, “All the requirements are here, so I can paint.” You can paint but you will not be a painter that way.

You meet a woman — the canvas is there. You immediately become a lover; you start painting. And she starts painting on you. Of course you both prove to be foolish — painted fools — and sooner or later you understand what is happening. But you never thought that love is an art. You are not born with the art; it is nothing to do with your birth. You have to learn it. It is the most subtle art.

You are born only with a capacity. Of course, you are born with a body; you can be a dancer because you have the body. You can move your body and you can be a dancer but dancing has to be learnt. Much effort is needed to learn dancing. And dancing is not so difficult because you alone are involved in it.

Love is much more difficult. It is dancing with somebody else. The other is also needed to know what dancing is. To fit with somebody is a great art. To create a harmony between two people...two people mean two different worlds. When two worlds come close, clash is bound to be there if you don’t know how to harmonize. Love is harmony. And happiness, health, harmony, all happen out of love. Learn to love. Don’t be in a hurry for marriage, learn to love. First become a great lover.

And what is the requirement? The requirement is that a great lover is always ready to give love and is not bothered whether it is returned or not. It is always returned; it is in the very nature of things. It is just as if you go to the mountains and you sing a song, and the valleys respond. Have you seen an echo point in the mountains, in the hills? You shout and the valleys shout, or you sing and the valleys sing. Each heart is a valley. If you pour love into it, it will respond.

The first lesson of love is not to ask for love, but just to give. Become a giver.

People are doing just the opposite. Even when they give, they give only with the idea that love should come back. It is a bargain. They don’t share, they don’t share freely. They share with a condition. They go on watching out of the corner of their eye whether it is coming back or not. Very poor people...they don’t know the natural functioning of love. You simply pour, it will come.

And if it is not coming, nothing to be worried about because a lover knows that to love is to be happy. If it comes, good; then the happiness is multiplied. But even if it never comes back, in the very act of loving you become so happy, so ecstatic, who bothers whether it comes or not?

Love has its own intrinsic happiness. It happens when you love. There is no need to wait for the result. Just start loving. By and by you will see much more love is coming back to you. One loves and comes to know what love is only by loving. As one learns swimming by swimming, by loving one loves.

People are very miserly. They are waiting for some great beloved to happen, then they will love. They remain closed, they remain withdrawn. They just wait. From somewhere some Cleopatra will come and then they will open their heart, but by that time they have completely forgotten how to open it.

Don’t miss any opportunity of love. Even passing in a street, you can be loving. Even to the beggar you can be loving. There is no need that you have to give him something; you can smile at least. It costs nothing but your very smile opens your heart, makes your heart more alive. Hold somebody’s hand — a friend or a stranger. Don’t wait that you will only love when the right person happens. Then the right person will never happen. Go on loving. The more you love, the more is the possibility for the right person to happen, because your heart starts flowering. And a flowering heart attracts many bees, many lovers.

You have been trained in a very wrong way. First, everybody lives under a wrong impression that everybody is already a lover. Just being born, you think you are a lover. It’s not so easy. Yes, there is a potentiality, but the potentiality has to be trained, disciplined. A seed exists, but it has to come to flower.

You can go on carrying your seed; no bee will be coming. Have you ever seen bees coming to the seeds? Don’t they know that seeds can become flowers? But they come when they become flowers. Become a flower, don’t remain a seed.

Two people, separately unhappy, create more unhappiness for each other when they come together. That’s mathematical. You were unhappy, your wife was unhappy and you both are hoping that being together you both will become happy? This is...this is such ordinary arithmetic, as two plus two makes four. It is that simple. It is not part of any higher mathematics; it is very ordinary, you can count it on your fingers. You both will become unhappy.

Courting is one thing. Don’t depend on courting. In fact before you get married, get rid of courting. My suggestion is that marriage should happen after the honeymoon, never before it. Only if everything goes right, only then should marriage happen.

The honeymoon after marriage is very dangerous. As far as I know, ninety-nine percent of marriages are finished by the time the honeymoon is finished. But then you are caught, then you have no way to escape. Then the whole society, the law, the court — everybody is against you if you leave the wife, or the wife leaves you. Then the whole morality, the religion, the priest, everybody is against you. In fact society should create all barriers possible for marriage and no barrier for divorce. Society should not allow people to marry so easily. The court should create barriers — live with the woman for two years at least, then the court can allow you to get married.

Right now they are doing just the reverse. If you want to get married, nobody asks whether you are ready or whether it is just a whim, just because you like the nose of the woman. What foolishness! One cannot live by just a long nose. After two days the nose will be forgotten. Who looks at one’s own wife’s nose? The wife never looks beautiful, the husband never looks beautiful. Once you are acquainted, beauty disappears.

Two people should be allowed to live together long enough to become acquainted, familiar with each other. And even if they want to get married, they should not be allowed. Then divorces will disappear from the world. The divorces exist because marriages are wrong and forced. The divorces exist because marriages are done in a romantic mood.

A romantic mood is good if you are a poet...and poets are not known to be good husbands or good wives. In fact poets are almost always bachelors. They fool around but they never get caught, and hence their romance remains alive. They go on writing poetry, beautiful poetry. One should not get married to a woman or to a man in a poetic mood. Let the prose mood come, then settle. Because the day-to-day life is more like prose than like poetry. One should become mature enough.

Maturity means that one is no more a romantic fool. One understands life, one understands the responsibility of life, one understands the problems of being together with a person. One accepts all those difficulties and yet decides to live with the person. One is not hoping that there is only going to be heaven, all roses. One is not hoping nonsense; one knows reality is tough. It is rough. There are roses, but far and few in between; there are many thorns.

When you have become alert to all of these problems and still you decide that it is worthwhile to risk and be with a person rather than to be alone, then get married. Then marriages will never kill love, because this love is realistic. Marriage can kill only romantic love. And romantic love is what people call puppy love. One should not depend on it. One should not think about it as nourishment. It may be just like ice-cream. You can eat it sometimes, but don’t depend on it. Life has to be more realistic, more prose.

Marriage itself never destroys anything. Marriage simply brings out whatsoever is hidden in you; it brings it out. If love is hidden behind you, inside you, marriage brings it out. If love was just a pretension, just a bait, then sooner or later it has to disappear. And then your reality, your ugly personality comes up. Marriage simply is an opportunity, so whatsoever you had to bring out will come out.

I am not saying that love is destroyed by marriage. Love is destroyed by people who don’t know how to love. Love is destroyed because in the first place love is not. You have been living in a dream. Reality destroys that dream. Otherwise love is something eternal, part of eternity. If you grow, if you know the art, and you accept the realities of love-life, then it goes on growing every day. Marriage becomes a tremendous opportunity to grow into love.

Nothing can destroy love. If it is there, it goes on growing. But my feeling is, it is not there in the first place. You misunderstood yourself; something else was there. Maybe sex was there, sex appeal was there. Then it is going to be destroyed, because once you have loved a woman, then the sex appeal disappears, because the sex appeal is only with the unknown. Once you have tasted the body of the woman or the man, then the sex appeal disappears. If your love was only sex appeal then it is bound to disappear. So never misunderstand love for something else. If love is really love....

What do I mean when I say “really love”? I mean that just being in the presence of the other you feel suddenly happy, just being together you feel ecstatic, just the very presence of the other fulfills something deep in your heart... something starts singing in your heart, you fall into harmony. Just the very presence of the other helps you to be together; you become more individual, more centered, more grounded. Then it is love.

Love is not a passion, love is not an emotion. Love is a very deep understanding that somebody somehow completes you. Somebody makes you a full circle. The presence of the other enhances your presence. Love gives freedom to be yourself; it is not possessiveness.


So, watch. Never think of sex as love, otherwise you will be deceived. Be alert, and when you start feeling with someone that just the presence, the pure presence — nothing else, nothing else is needed; you don’t ask anything — just the presence, just that the other is, is enough to make you happy...something starts flowering within you, a thousand and one lotuses bloom...then you are in love, and then you can pass through all the difficulties that reality creates. Many anguishes, many anxieties — you will be able to pass all of them, and your love will be flowering more and more, because all those situations will become challenges. And your love, by overcoming them, will become more and more strong.

Love is eternity. If it is there, then it goes on growing and growing. Love knows the beginning but does not know the end.



Osho, The Discipline of Transcendence, Vol. 1, Talk #2