Dear Reader,
Man is bad case.... isn't it?
This is in reference to the article written by National Editor of Dainik Bhaskar newspaper Mr. Kalpesh Yagnik. His article "सरकार 16 साल के बच्चों के 'सम्बन्ध' वैध करने जा रही है; आप कुछ कहेंगे नहीं? was self-published under असंभव के विरुद्ध columnwhich the paper claims to be अनुशासन, अभ्यास, अनुभूति और अनुभव आधारित अलख। We will soon identify and analyse the claim as to how disciplined, practical, heartfelt and experience based brightening this article and its writer are.
I take this burdensome effort because i personally feel that it is because of such articles and writers that media has lost its responsible and honorable position of being a strong, unprejudiced, secular fourth pillar of society. I do not know how much difference my such thankless efforts are going to make and neither does the result make me worried enough to stop myself from doing what i can as a citizen of India.
Now, i shift to hindi language because the article is written in hindi which indeed is our national language.
The link or copy of Mr Kalpesh Yagnik's article is added herein for your kind perusal:
'16 क्या, सेक्स संबंध तो 14 वर्ष के बच्चों के मान्य होने चाहिए क्योंकि वे अब ‘सहमति’ और शोषण में अंतर बखूबी समझते हैं।'
- केंद्रीय कानून मंत्रालय का नोट 6 मार्च 2013 को।
'हर दूसरी भारतीय लड़की की कम उम्र में शादी की जा रही है। 470 बच्चियां यहां 18 से कम में ही व्याही जा रही हैं जिससे उनकी पढ़ाई, सेहत और भविष्य बिगड़ रहा है।'
- 08 मार्च 2013 को संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या फंड की रिपोर्ट
बच्चों को 14 साल की उम्र में ही सेक्स संबंध बना लेने चाहिए? 16 वर्ष तो निश्चित ही कर देना चाहिए। ‘चाहिए’, ऐसे सीधे- सीधे तो सरकार ने नहीं कहा है। किन्तु आशय यही है। होगा यही। और सरकार की ऐसी अचानक चिंता बच्चियों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर ही सामने आई है। दो दिन पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल में इस पर फैसला होना था। नहीं हो सका। क्योंकि तीन मंत्रालयों के विचार अलग-अलग थे।
गृह मंत्रालय का सोचना है कि लड़के-लड़की के बीच सहमति से सेक्स संबंध की उम्र घटाकर 16 वर्ष कर देनी चाहिए। इस पर कानून मंत्रालय का कहना था कि 14 वर्ष बेहतर है। और महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय इन सबके विरोध में था। वह इसे मौजूदा 18 वर्ष ही रखने पर आमादा है।
हमारे बच्चों पर लिया जा रहा है यह फैसला। हमें किसी ने पूछा ही नहीं। हमारे द्वारा चुन कर भेजे गए सांसदों को बताया ही नहीं। देश में कोई बहस होने ही नहीं दी गई। महिलाओं की गरिमा न गिरे, इस पर कठोर कानून बनाने के गंभीर वादे को समय पर लागू न कर पाई यह सरकार एक अध्यादेश लाई थी। बस उसी अध्यादेश को कानून बनाने की जल्दी में आनन-फानन में कुछ भी फैसले लिए जा रहे हैं। अपराधियों के विरुद्ध तो मौत की सज़ा देने से बुरी तरह डर गई यह सरकार हमारे बच्चों को कितनी छोटी से छोटी उम्र में यौन संबंध बनाने की छूट देनी चाहिए, इस पर होड़ मची हुई है केंद्रीय मंत्रियों में!
ऐसा क्यों? क्योंकि वे जानते हैं, कुछ नहीं होता। कुछ नहीं होगा। कोई नहीं पूछेगा। जब इतनी बड़ी युवा क्रांति के बाद किसी यौन अपराधी का कुछ नहीं बिगड़ा। इतनी चीत्कार के बाद भी महिला गरिमा गिराने की अलग-अलग ‘कैटेगरी’ रखी गईं। इतना नैतिक दबाव होने के बावजूद मृत्युदंड को केवल ‘जघन्यतम’ यानी ‘रेअरेस्ट ऑफ द रेअर’ अपराध में ही रखने की जि़द पर अड़ी रही यह सरकार। तो क्या डर इसे किसी आम भारतीय नागरिक का कि वह क्या सोचेगा? प्रश्न महिलाओं की गरिमा गिराने वाले नृशंस अपराधियों को थरथर कंपकंपा सके, ऐसा सख्त कानून लाने का था।
सारी बहस की दिशा पहले तो बदल दी स्वयं जस्टिस वर्मा आयोग ने। वह अपनी मूल बात से भटक कर न जाने किसकिस विषय में चला गया। प्रश्न उस जघन्यतम पाप करने वाले को लेकर उठा था। बालिग उम्र की सीमा से वह कुछ महीने कम था। दावा तो यही था। तो वह मज़े में ‘उम्र कम है’ कह कर छूट रहा था। ऐसा न हो, इस पर उपाय चाहा था। तो जस्टिस वर्मा आयोग न जाने विश्व के किन-किन वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, मनोविश्लेषकों के माध्यम से यह समझता रहा कि कच्ची उम्र के अपराधी बालिग होते ही अपने पुराने अपराधों से स्वयं असहमत हो जाते हैं। इसलिए उन्हें सज़ा नहीं मिलनी चाहिए!
विदेशों में संवेदनाओं का महत्व शून्य है। वैल्यू, फैमिली वैल्यू सिस्टम तो है ही नहीं। वहां भावनाओं का सम्मान नहीं। ऐसी व्यवस्था में उपजे विचारों को हमारे भारतीय समाज पर थोपना कितना सही है? विशेषकर जबकि सारा राष्ट्र भावनाओं से उद्वेलित हो, क्रुद्ध हो, रो रहा हो?
तो कहां बात जघन्य अपराधियों की उम्र सीमा घटाने की चल रही थी, उसकी जगह बात बच्चों के बीच संबंधों की उम्र सीमा घटाने पर होने लगी। देखिए, क्यों कह रहे हैं मंत्रालय ऐसा।
गृह मंत्रालय लाया है ऐसा प्रस्ताव। उसका कहना है वह लड़कियों को बचाना चाहता है, इसलिए उम्र 16 करना चाहता है। किससे बचाना चाहता है? वह चिंतित है कि कुछ लड़के -लड़कियां अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध जीवन साथी चुन लेते हैं। विवाह के पूर्व उनमें संबंध स्थापित हो जाते/सकते हैं। ऐसे में माता-पिता उन पर यौन शोषण या दुष्कर्म के आरोप लगा देते/सकते हैं। अभी कानूनन ऐसा माना भी जाएगा, चूंकि सहमति के साथ संबंध की उम्र 18 ही है। फिर पुलिस परेशान करेगी। ज्या़दती करेगी। अत्याचार।
यानी, माता-पिता से बचाने के लिए घटाई जा रही है संबंधों की उम्र!
कानून मंत्रालय को लागू करने हैं ये कानून। वह एक कदम और आगे है। वह चाहता है यह उम्र 14 ही कर दी जाए। तर्क नई पीढ़ी बखूबी समझती है कि सहमति से संबंध क्या हैं और बलपूर्वक किया यौन अपराध क्या। यही नहीं, कई महिला संगठन भी उम्र घटाने की बात कर चुके हैं। उनका हवाला भी दिया जा रहा है। टीन एज सेक्स का अपराधीकरण इससे रोका जा सकेगा यह कहा जा रहा है।
उधर, महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय इसका विरोधी है। महिला सुरक्षा की जिम्मेदारी उसकी है। उनकी मंत्री कृष्णा तीरथ ने कहा है कि इससे कम उम्र की लड़कियों का शोषण बढ़ेगा। बच्चों को शिकार बनाने का निमंत्रण है ऐसा कदम। विशेषकर तब, जबकि शादी की उम्र तो 18 वर्ष ही वैध है।
सरकारें जो चाहे, तय कर देती हैं/रही हैं। किन्तु क्या वह, बगै़र किसी राष्ट्रीय बहस के, हमारे बच्चों के नितांत निजी और परिवार-समाज की संरचना से जुड़े इतने संवेदनशील मामले को इतने हलके तरह से तय कर सकती है? किसने दिया उसे यह अधिकार?
एक वर्ष भी नहीं हुआ। जब संबंधों की उम्र 18 मंजूर की गई थी। चाइल्ड मैरिज प्रोटेक्शन एक्ट,1929 में यह 18 है। प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्स,2012 में यह 18 है। यहां तक कि इस अध्यादेश तक में क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) आर्डिनेंस 2013 में भी 18 ही है। तो अब अचानक 16 या 14 क्यों कर देंगे? क्या हम पहले नासमझ थे?
सरकार हमसे सारी बातें पूछे, यह असंभव है। किन्तु पूछनी ही होंगी। विशेषकर ऐसे फैसले। भयावह हो सकते हैं ऐसे फैसले। छोटी उम्र की बच्चियां, शादी से पहले गर्भवती होने लगेंगी कानूनन। गर्भपात होने लगेंगे कानूनन। लड़कियों की तस्करी जैसे पाप बढ़ने लगेंगे। पकड़े जाने पर काफी कुछ सामने लाया जाएगा कानूनन। हमारे सामने स्पष्ट यह भी है कि जिन्हें संबंध बनाने हैं वे तो बना ही रहे हैं/ रहेंगे। रुकेंगे नहीं। किन्तु रुक तो कुछ भी नहीं रहा। जघन्य हत्याएं। नृशंस दुष्कर्म। और कोई भी भयावह अपराध। तो क्या सभी में उम्र घटा दें? सजा की उम्र भी घटा दें? धाराएं ही घटा दें? हम ही न घट जाएं!
CRITICAL ANALYSIS:
- केंद्रीय काननों मंत्रालय का ६ मार्च, 2013 का नोट एवं संयुक्त राष्ट्र जनसख्या फंड की ८ MARCH, 2013 की रिपोर्ट तो हक़ीक़तन जो हो रहा है उस सत्य पर आधारित है पर कल्पेश जी की रिपोर्ट का आधार क्या है ये तो शायद वे खुद भी नहीं जानते। क्या हम उनकी सनसनीखेज रिपोर्ट को महज एक काल्पनिक दिमाग की दिल जलाने वाली याग्निकता समझ कर IGNORE कर दें?
- सच है - जितने सर उससे भी ज्यादा मन और उतने ही अलग-अलग विचार पर एकमत कोई भी नहीं क्योंकि हम एकात्म से अहंकारवश सच को दिल-ओ-जान से कबूल कर उससे एक हो ही नहीं पाते।
- क्या सिर्फ हमारे ही बच्चे बच्चे हैं? क्या फैसला लेने वालों के बच्चे नहीं? क्या उनके बच्चे हमारे नहीं? क्या हमारे बच्चे उनके बच्चे नहीं?
- हम लोगों ने ही तो चुना था हमारे सांसदों को और उन सांसदों ने ही तो कबूल किया था उन्हें उनके मंत्रालय का समीक्षक, रक्षक या कार्यकारिणी अधिकारी। फिर उन्हें हम कोई हक न देकर पंगु बनाना चाहते हैं, अपनाप पर आश्रित बनाना चाहते हैं या ये बहसबाजी सिर्फ एक चाल है अपना वर्चस्व कायम करने हेतु?
- आपसे अगर दैनिक भास्कर परिवार ये उम्मीद रखे की हर फैसला लेने के पहले सारे रायचन्दों की राय लें, सलाह-मशविरा करें राष्ट्रीय सम्पादक महोदय तो आप कैसा महसूस करेंगे जनाब? क्या आपके मनोबल, आपके आत्मा-विश्वास, आपकी आस्था को ठेस नहीं पहुंचेगी? क्या आपकी चाल मंद गति के समाचारों जैसी नहीं हो जायेगी?
- किसी को भी मौत की सजा देना से डरना - चाहे वो अपराधी हो या हो बेगुनाह, एक करुणावान सरकार की पहचान है जो आप जैसे वेह्शी शायद ही कभी अनुभूत कर पाएँ ?
- हम कौन होते हैं किसी को यौन सम्बन्ध बनाने की छूट देने वाले या उम्र तय करने वाले? खासतौर से तब जब हम पूर्णतः नावाकिफ है पूर्ण तथ्य से। जाने कैसे, कब, कहाँ और जाने किस बंद कमरे में, स्कूल में, खाली मकान में, खेत में, पिकनिक पर, डांडिया रात में, डिस्को क्लब में, बर्थडे पार्टी में, JOINT STUDY के वक़्त और पता नहीं कहाँ-कहाँ ये संभावित सम्भोगीय घट सकती है। कहाँ-कहाँ और कैसे रोकेंगे उस शक्ति को अभिव्यक्त होने से जिस शक्ति की वजह से ही आप, हम और हम सब पैदा हुए हैं? नहीं, उस प्राकृतिक इच्छा को, उस भूख को, उस प्यास को, उस तलब को - फिर चाहे हम उसे वासना कह लें, अभिचार कह लें या कह लें उसे प्यार - पर सत्य ये है की हम उसे रोक नहीं सकते, CONTROL नहीं कर सकते। तब तक तो कतई नहीं जब तक हम उससे डरे हुए हैं और उस शक्ति से आँख में आँख मिलकर बात नहीं करना चाहते, देखना नहीं चाहते, समझना नहीं चाहते। उस कमसिन उम्र में तो बिलकुल भी नहीं। उन कमसीन नादान जवान लोगों से तो ये उम्मीद करना भी नादानी ही है। खासतौर से तब जब हम सब खुद इतने बड़े होने के बाद भी उस शक्ति के वश में हैं।
- डर को जीतने देना चाहते है अगर आप तो जरुर जीताईये श्रीमान नरेन्द्र मोदी जैसे कट्टरवादी हिन्दू को अपना बहुमूल्य फ़ासिस्ट वोट देकर और देखिये हिटलर युग की एक नई शुरुआत।
- प्रेम की शक्ति से अवगत हो जाइए आप। बहुत ही सुकूनतर है ये शक्ति भय की चीत्कार से। इतनी ताक़त है इस शक्ति में की पूरा की पूरा संसार ही बदल डालती है ये एक ही क्षण में और वो भी बिना किसी को आपका गुलाम बनाए बगैर। आपकी और सामने वाले की स्वतंत्रता को भी ये कायम रखती है आपको निर्भयी निर्भया बनाकर।कबूल कर पायेंगे आप ये अंदरूनी तथ्य या भटकाव ही समझेंगे आप इसे सदा की तरह।
- विदेशी लोग शायद इसीलिए हम भारतीयों से ज्यादा आध्यात्मिक समझ रखने वाले हैं क्योंकि उन्होंने मुहँ की बातों को संवेदना समझने की भूल नहीं की। वे लग गए इन संवेदनाओं के पीछे की मूलभूत प्यास को अनुभूत करने में और देखिये आज वे कहाँ है और हम कहाँ। जगत गुरु मानते हैं हम खुद को और लगे रहते हैं या तो सम्भोग करने में या धरती माँ की जनसँख्या बढाने में या फिर इन्द्रियों के सुख की बेपनाह तलाश में।
- जी हाँ ...मंत्रालय जिस आधार पर जो प्रस्ताव दे रहा है वही हो रहा है सबह-शाम, दिन-प्रतिदिन। विश्वास ना हो तो सारे भारतीय अखबार नहीं तो कमसकम अपने ही अखबार में प्रकाशित समाचारों को ध्यानस्थ हो माता-पिता, शिक्षकों, पुलिस वालों, कानून वालों द्वारा सताए गए बालक-बालिकाओं की संवेदनाओं को अनुभव करने की कोशिश कीजियेगा।
- जी हाँ ...टेक्नोलॉजी ने, तकनीक ने, इन्टरनेट ने, गूगल ने, मीडिया ने, टीवी ने, फिल्मों ने, मोबाइल ने हमें बहुत कुछ दिया है। जो विज्ञान ने हम तक पहुंचाया है उसमे से कुछ तो हमारी बहुत सहायता करता है आनंदित होने में और कुछ बहुत ही व्याकुल कर घायल कर जाता है हमारे समाज को। टीन ऐज सेक्स और उसके अपराधीकरण की प्रवृत्ति भी इन्ही उपकरणों से और भी विस्तृत हुई है, साकार हुई है।
- जी हाँ ...ये भी पूर्णतः सत्य है चाहे हम कितने ही कानून ले आयें, सख्त हो जाएँ, कड़ी सज़ाएँ दे अपराधियों पर अपराधी शोषण करने का एक नया मार्ग ढूंढ ही निकालेंगे। ठीक उसी तरह जिस तरह सदियों से वो या यूँ कहें की हम करते आ रहे है। आश्चर्यचकित मत होइए ...हम भी तो टैक्स बचाने के, व्यवसाय करने के, रिश्वत देने-लेने के, नकली खरीदने-बेचने के, मिलावट करने के, चोर बाजारी करने के, सड़क-बिजली-पानी-संपत्ति के शुल्क देने से बचने के नए-नए तरीके ढूंढ-ढूंढकर दिन-प्रतिदीन प्रकास गति से विकसित होते जा रहे हैं।
- जी हाँ ...हमें ही घटना होगा - तादाद में, उत्पात में, उत्पाद में - ख़त्म कर लेना होगा हमको हमारा "मैं", हमारा अहंकार, हमारा अन्धकार - ध्यानस्थ होना होगा हमें हमारे ही मन का, चिंतन का, मनन का दृष्टा बन। तब ही हो सकेगा रोशन एक नया सवेरा - जी हाँ ...ये सवेरा दैनिक भास्करी नहीं शाशवत भास्करी होगा
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