Saturday, March 30, 2013

twitting some timely recorded untimely tweets

दैनिक भास्करीय सुविचार 
२५ मार्च, २०१३ 

सीमाएं हमारी सोच में होती है।
अगर हुम अपनी कल्पना शक्ति का  उपयोग करते हैं,
तो हमारी संभावनाएं अपरिमित हो जाती हैं। 

tweet :

वो कल्पना शक्ति संभावनाओं को अपरिमित नहीं कर सकती 
जो पहले ही
असंभव की दूषित सोच से सिमित हो चुकी है; 
ग्रसित हो चुकी है। 
वो तो महज एक काल्पनिक धारणा बनकर रह गई है 
जिसकी हार 
आज नहीं तो कल 
पूर्णतः सुनिश्चित है। 

दैनिक भास्करी बात पते की;

जिसका निश्चय दृढ़ और अटल है वह दुनिया को अपने सांचे में ढाल सकता है।
- गेटे 

tweet:

गेटे जी का ढांचा २ गुणित ६ फिट की कब्र में दफ़न है। 
दृढ़ कल्पना और अटल अहंकार में अटक गई है उनकी दुनिया।
सांचे और ढाल का अब तक कुछ पता नहीं चला।

palm day पर चुक गए टोनी जोसफ :

लम्बे समय तक गांधी, नेहरु परिवार का शासन होने के कारण देश को आर्थिक मोर्चे पर भारी कीमत चुकानी पड़ी है।

tweet:

जनतंत्र में, लोकतंत्र में असल शासन किसका होता है टोनी जी ?
कुछ ना बदलेगा- जब तक जन जन का, गण गण का मन नहीं बदलेगा, तंत्र नहीं बदलेगा।


जन गण मन 
अधिनायक जय है 
भारत भाग्य विधाता
पंजाब सिंध गुजरात मराठा 
द्राविड उत्कल बंगा 
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा 
उच्छल जलधि तरंगा 
तव शुभ नामे जागे 
तव शुभ आशीष मांगे 
गाहे तव जय गाथा 
जन गण मंगल दायक जय है 
भारत भाग्य विधाता 
जय है जय है जय है 
जय जय जय जय है

शासन तो रामजी का भी रहा पर राम राज्य का क्या हुआ ?
कहते हैं की भरत भाई का चरण पादुका या आज के सन्दर्भ में यूँ कहिये की जूता मार या कड़क खडाऊ राज्य जो नियम विरूद्ध पाए जाने पर किसी को भी नहीं बक्श्ता था चाहे आप लक्ष्मण जी को जीवित रखने के लिए संजीवनी ले जाने वाले हनुमान जी ही क्यों ना हो ? अगर आपने कानून का उल्लंघन किया है, सीमाएं लाँधि हैं तो फिर चाहे आप कपी हों, सीता जी हों या कोई और हो, जवाबदेह तो आप हो ही गए। भले ही फिर महामहिम आपकी मंशा और मंसूबा जान आपको बक्श दे तो बक्श दें।

रामजी भी चाहते तो आप जैसे पीत पत्रकारिता जगत के पीत पत्रकारों की तरह हम जैसे धोबी की आवाज को, प्रश्न को, संदेह को बिना कोई तार्किक/अतार्किक जवाब दिए दबा सकते थे, दफना सकते थे, कुचल सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि वे जनतंत्र आधारित राम-राज्य के मर्यादा पुरुषोत्तम थे और है। वे हर एक आम-आदमी की आवाज़ को पूर्ण हक देने का धर्म निभा रहे थे। चाहे फिर उन्हें आप जैसे लोगों की इस ताड़ना का, लांछन का, निंदा का की वे अपने स्वयं के निजी/व्यक्तिगत पारिवारिक कर्तव्यों का पालन नहीं कर सके और वो भी उस भारतीय परिवार के हित हेतु जो सीता जी की अग्नी-परीक्षा लेकर भी संतोषित नहीं हुआ - आज तक। सीता जी ने तो आज तक नहीं कोस रामजी को या उनके निर्णयों को पर आज के तथाकथित नारिनुमा नर और नरनुमा नारियाँ 

जब दिल चाहे अपनी सिमित सोच के चलते कोसते रहते हैं विष्णू जी के अवतार को। 
शायद आप भी ज्यादातर धर्मावलम्बी भारतीयों की तरह भरत भाई के 'जूता मार राज्य' के ही तरफदार हैं। आपकी मर्जी, जिसे चाहे चुने आप आगामी चुनावों में। निर्मम तानाशाही शासन का तिलक अपने दम्भी माथे पर लगाए हुए एक तानाशाह गुजरात में तैयार हो ही चूका है आपको इस प्रायोगिक अनुभव से गुजारने के लिए। तमाम दैनिक भास्करियों की तरह आप भी अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु जरूर उपभोग कीजिये, उपयोग कीजिये अपने जनतांत्रिक हकों का। क्या पता फिर ये जूता मार राज्य आपको ये हक दे या ना दे?             
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Man is bad case.... isn't it?

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