तुमने तो शायद सबकुछ पाकर प्रीत है पाई
मैंने तो मगर पि पाकर ही सबकुछ पा लिया माई
सबकुछ पाकर सबकुछ बख्शने वाले की प्रीत का राज़ खुला तुमपर
हमने मगर इतनी पि पिया की नज़रों से की अब होत है जग-हँसाई
शायद इसीलिए कह गईं मीरा बाई
की;
जो मैं ऐसा जानती
प्रीत किये दुःख होए
नगर ढिंढोरा पीटती
प्रीत करियो न कोए
क्योंकि ऐसा जान लेने के बाद भी मीरा बाई ने कभी ये नगर ढिंढोरा पिटवाया नहीं तो मुझ जैसे दीवाने/दीवानियों के लिए अब भी प्रेम-भक्ति मार्ग अब भी प्रशस्त है। शायद ये राज़ स्वयं अनुभूत करने हेतु की आखिर ऐसा कौनसा दुःख है प्रीत में जो मीरा बाई जैसे प्रेम-दीवानी को ये कहने को विवश तो कर गया की "प्रीत करियो ना कोए" पर साकार रूप में कभी उस प्रेममयी से नगर ढिंढोरा नहीं पिटवा पाया?
अभी और यहाँ:
जो अभी है यहाँ
वही यहाँ है अभी
यही अभी है वहाँ
और वही अभी है जहाँ
इबादत अली है, मोहब्बत वली है
अली वली पे कुर्बान है वहाँ
मत पूछ के अली कौन है, क्या है, कैसा है
के बातें फकत नज़रों से होती है वहाँ
जानना चाहता है अगर की वली क्या करेगा
क्या वही जो नबी कहेगा?
तो जान ले फकत इतना की वही होगा जो खुद करेगा वहाँ
के नबी ने देखा है आलम सरकार-ए-दो-आलम का
सरकार ही सरकार-ए-आलम भी और सरकार-ए-दो-आलम है वहाँ
बस इतना जान लेना तुम
की;
अली ही वली है, नबी है और वही है खुदा भी वहाँ
हाँ, ठीक वैसे ही जैसे
अभी - यहाँ है वहाँ
और यहाँ - अभी है वहाँ
शायद इसी अनुभूति के चलते कहत है कबीर वहाँ
की;
जात ना पूछो साधू की
पूछ लीजिये ध्यान
मोल करो तलवार का
पड़ी रहन दो म्यान
साहिब मेरा एक है
दूजो ना कोए
जो साहिब दूजा कहे
वो दूजो कुल का होए
जब मैं था, हरी नाही
अब हरी है, मैं नाही
रूमी भी मदद करते हैं हम नादानों की ये कहकर
की;
पता है ...
यहाँ से दूर ..बहुत दूर
सही और गलत के पार
एक मैदान है
मैं वहाँ मिलूँगा तुझे !!
अभी और यहाँ में
पल-पल, पल-क्षीण ध्यानस्थ दृष्टा बनकर रहना सीख
खुदाया, एक पल फिर ऐसा जरुर आएगा
जब " मैं " और " तुम " का तत्व भी खो जाएगा वहाँ
" वो " ही " वो " फिर होगा वहाँ
नवाज़ा जाएगा उस दिन तुझे भी
तेरी पाक-साफ़ नीयत को
नेकी की राह पर दीन-ओ-ईमान के साथ चलता देख
आमीन
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