मनाया तो था तुम्हें पर वैसे नहीं जैसे तुम मानती हो
शायद तुम्हें याद नहीं..
नखरे भी उठाए थे हमने तुम्हारे पर कभी गिनाए नहीं
शायद तुम्हें याद नहीं..
हाथ थामा और हक़ जताया तो तुम उसे व्यभिचार समझीं
शायद तुम्हें याद नहीं..
सुलझाने वाला खुद ही तुम्हारी रेशमी बातों में उलझ गया
शायद तुम्हें याद नहीं..
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