Thursday, April 25, 2013

Rama setu राम सेतु

राम सेतु 


तुम ही कहो ना राम 
क्या बनाया था सेतु?
कहने लगे मुस्कुरा के श्री राम 
की इस प्रश्न का अब क्या है हेतु?
खासतौर से तब 
जब रामायणी आदर्श ही हो चुकें हैं पूर्णतः धूमकेतु ...

बताया शर्माते हुए हमने फिर "उन्हें"
की अब भी यहाँ के लोगों के लबों पर रहता है "आपका" ही नाम 
तो जोर से हँस के "वो" बोले 
की मुझे तो दिखाई देतें हैं हर पल किये हुए तुम्हारे काम ...

चीखे -चिल्लाये हम भी जोश से की राम सेवकों में है दम
कसम खुद़ा की काफिरों को उखाड़ फेकेंगे हम
रुआंसे होकर रामजी बोले की बस यही तो है मेरा ग़म
की दिल में मुझे बसाने वाले मंदिर वहीँ बनाने वाले हो गए कितने कम ...

कल्पना "राम राज्य" की और जीते हो पल-पल रावण को तुम 
तुमसे तो वो ही भले थे लम्बी थी जिनकी दुम 
बोलो ना मेरे राम 'रामजी' कहाँ हो गए गुम..??

रचो ना फिर कोई नया सा सेतु ओ मेरे हनुमान
मिला दे जो हमें रामजी से मिटा के हमारे अवगुण
आठों पहर बजे जहाँ
 राम नाम की धुन 
राम नाम की धुन 
राम नाम की धुन
Man is bad case....isnt it?

शिवालय है ताजमहल


शिवालय है ताजमहल 

चाहते हैं वो के ताजमहल को शिवालय मान लिया जाए
ठीक वैसे ही जैसे बम्बई-मुंबई और बेंगलोर-बेंगलुरु कहलाये 
मगर लुत्फ़ ये है हुजुर की नाम बदल कर भी तो 
वो अपनी सूरत-इ-हाल बदल ना पाए 
 
कहा हमने की बिलकुल मान लेंगे भाई 
क्यूंकि हमारे लिए तो ये सारी समृष्टि ही शिवमय है भाई 
बस आपकी मंशाओं की ज़रा सी चर्चा कर लें हम शिवजी से भाई ?
फिर आप जैसा कहेंगे वैसा ही होगा भाई ..

भाई को ये ज़िद की शिवजी का हक़ मारा ना जाए 
और मुझे ये शौक़ की शिवजी ही आकर ये हक़ जताएँ 
हम भी देख लेंगे इसी बहाने शिव-पार्वती के जलवे 
शर्त ये के इस वार्ता के प्रचार-प्रसार के सारे हक़ मुमताज बेगम को मिल जाएँ 

हामी भर दी जब शिवजी ने 
तो शुरू हुई ये Live मुलाक़ात 

मगर ये क्या ..??

शिव और मुमताज तो भरी महफ़िल में एक हो गए 
अवाम और इमाम की अक्ल पर तो जैसे ताले पड़ गए
सियासी धंधों पर पड़ी गज़ब की मार
लाली देखन वालों को जानो के लाले पड़ गए 
  
शिवजी ने देखा जब पार्वती जी को ही मुमताज बेगम के अदम रूप में 
तो मेरे भोले बादशाह तो अपनी प्यारी पार्वती की इस मनमोहक अदा पर 
जैसे एक क्षण में ही मूग्ध हो गए, चमत्कृत हो गए, विस्मित हो गए 
और 
जाते-जाते पहना गए वो शाहजहाँ को मुमताज के प्रेम का ताज
देख के ये अतुलनीय और विहंगम दृश्य 
हम जैसे 'दीवाने' इश्क के ताजोमय हो गए, तेजोमय हो गए  

कागा रे कागा 
मोरी इतनी अरज तोसे 
चुन-चुन खाईयो माँस
अरज या है
खाईयो तू ना नैन मोरे 
पिया के मिलन की आस 
कागा रे कागा 
नैना भी तू खईयो मोरे 
नैन भी तू खईयो मोरे 
बस एक बार मिलन की 
पूर्ण हो जाए आस

कौन है असल राजाधिराज ??


अपने 'मन' पर जो कर सकता है 'राज'
वो ही कहलाने के काबिल है 
राजाधिराज
महाराज 
या 
मनराज 

तुम ही बताओ क्या हो तुम वो मनराज ?
बताओ ना 
खुल के बताओ 
जरा हम भी तो सुने 
की 
कौन हो तुम 
क्या हो तुम मनराज ?

जानते हो खुद को तुम ?
देखते हो कभी खुद को तुम ?
या देखते हो 
आईने में बस अपना चेहरा तुम ?
अपने gender, चेहरे, name, पारिवारिक surname 
उम्र, शिक्षण, city, address, looks, attitude, bike, ड्रेसिंग-व्रैसिंग 
के अलावा भी खुद तुम्हारी अपनी कोई पहचान है तुम्हे ?
या 
यूँ ही अपने ख्याली पुलावों में रहते हो तुम गुम ?

'मन' को लगता है की जो वो जानता है 
या 
जनवाती है जो उसे उसकी ही गुलाम पाँच इन्द्रियाँ (senses)
वो "ही" सत्य है 
और बस यही सोच बन जाता है उसका egoistic अहंकार गुण 

अपने काम-क्रोध, 
मोह-माया, 
भय-पराजय,
 लोभ-स्वार्थ, 
मान-अपमान, 
सही-गलत,
दिशा-दोष-भ्रांतियों के चलते
मन ये स्वीकार ही नहीं कर पाता 
की 
कोई 6th sense द्वारा पल-पल महसूस किया जाने वाला "भी" हो सकता है 
प्रेम का, करुणा का,
वीतराग का, सत्य का,
शुभ का, सवार्थ का,
respect का , honor का,
beyond reasoning compassion का 
निष्ठा का, सहिष्णुता का, सद्ज्ञान का 
justified भी, निर्विकल्प भी, निर्विकार भी, नीरबैर भी, निरंकार भी, निर्गुण भी
 और
एकोंकार भी 

scientific proofs is what your pseudo-intellectual mind trusts naa..??
So...
please do try to prove to yourself as to 
whether you were born out of f*****g LUST 
or
was it pure LOVE between your parents
which brought you to live a life on this planet Earth ?
Do answer me, if you are any different from those people 
who rape, hurt, abuse, accuse, blame & disrespect women
in one or the other way;
diplomatically
if not hypocritically
WHY..??
just because you do not possess what she does ?
just because deep down you are afraid of her divine power of love ?
Yeah...
Do not honor her if you do not have the heart to do so
but then there ain't any need to disrespect her, 
mutilate her, boss her too....
GROW UP POOR CHILD
GROW UP !!
God bless you
Amin
 

Man is bad case....isn't it?

Thursday, April 18, 2013

Bee storyteller v/s A Mindexposer

To

My dear Chetan Bhagat Sir and similar minded associates !!




Just read your Queen Bee Blaming/fault finding/Sarkaar accusing story/article in today's dainik bhaskar.

It not only explains pathetic 2 states of your shrewd & pseudo-intellectual mind but also exposes that deep inside your soulful heart which believes in per personRevolution 2020 is ruled by 5 point someone - called mind. Your 5 point senses overwhelm that poor someone in you which looses tragically almost always when it comes to actually implementing or living as per your own conscience or inner mute voice. Sad state it is. Sadistic nature it is.

I humbly suggest Oh my dear King of story teller kings, that you please bow down your eyes a little and read the short story of a suspicious king, his son, his son's wife ( you can call her queen bee  ) and one of his ordinary truth exposing minister published in today's dainik bhaskar just below your one-sided story.

Rest....i know you are intelligent enough to not only get the clue of who is who in the said story but also will know the crux of the said story therein.

I will not be surprised though, if you and your associates ask Queen Bee to leave India and go back to Italy. Please do it ASAP if you really believe that this will solve the state that your India or every Indian mind is in. May be, it will be better for Queen Bee and her son too. At least they will be then peacefully able to watch Indian social & political drama from a distance without any mediocre media or advertisement disturbances in between 

Oh yes !! i too wanna see when 120 crore idiots are ruled by a Hindutvavaadi dictator King. Don't you think it will be a much bigger, much larger, much super-duper silver screen hit then all the blockbuster Bollywood/Hollywood movies put together have ever dreamed to be? 

Don't worry Sir, the box-office collection, about which your tribe is so impulsive about, will be enormous too.
Go baby Go !!
Go for it !!
What are you waiting for - 2014 ??



GOD BLESS YOU.
           
manish badkas has sent you a link to a blog: 

Can you spare some time for reading 'between the lines' of this blogpost? I know you are pretty busy in your busiest schedule ever but still can you honor my humble request Oh my Lord ! Oh my King !!??!!
Blog: MAN IS BAD KASE 
Post: मन की बातें / Art of Parenting 
Link: http://manisbadkase.blogspot.com/2013/04/art-of-parenting.html 

--
Powered by Blogger 
http://www.blogger.com/

Man is bad case.... isn't it?

Wednesday, April 17, 2013

मन की बातें / Art of Parenting

मन की बातें 


बस इतना ही कहना चाहूँगा आज की जीवन क़तई भी कोई द्वन्द नहीं है युद्ध नहीं है
जीवन आनंद है, उत्सव है
पर हाँ ...
हमारा मन उसे जरुर एक द्वन्द में, एक युद्ध में, एक संघर्ष में तब्दील कर देता है 
क्यूँकी  ..
हम अपने मन के गुलाम होकर जीने लगते हैं
 - पल पल हर पल
तो दोष मन का नहीं बल्कि हमारा है 
क्यूँकी 
मन ने तो अपना ईमान कभी नहीं छोड़ा
पर बात - बात पर डीग जाता ईमान हमारा है  
मन का कोई कसूर नहीं इसमें
सार कसूर हमारा है 
इसिलए तो कहता है ये 'दीवाना वारसी'
की मन इश तो हम बद कस ( MAN IS BAD KASE ;-)  
क्यूँकी ..
उसकी तो भूमिका ही है 
संसार को, जगत को, चीजों को, लोगों को, इत्यादि को ...
दो अथवा अनेक भागों में 
बाँट-बाँट कर देखने की, समझने की, जान लेने की 
अंतरात्मा की अनुभूति को तो जैसे ये मन 
मात्र एक खेदपूर्ण काल्पनिक जगत में 
बेतुका विचरण मानने लगता है   
इसे ही मनीषी कहते हैं द्वैत का दैत्य 
सारे संत-फकीर-पैग़म्बर मगर 
कहते हैं इसे आईने पर छाया हुआ महज एक गुबार
पाक-साफ कर ले जो नीयत को तो कहलाता उल्ल्हास   
सुझाते हैं पीर-मुर्शिद-औलिया-वली-अली 
और वो सभी फ़क़ीर जो पा चुके हैं बुद्धत्व 
इस नरकीय दैत्य से निजात पाने के लिये 
है केवल एक ही समाधान
वो है ध्यान - ध्यान - ध्यान
फिर ये बात अलग 
की कोई इस ध्यान अवस्था में कहता है 
सबका मालिक एक 
तो कोई कहता है 
एक ऊंकार सतनाम
कोई 
अप्पो दीपो भवः
तो कोई 
अहम् ब्रह्मास्मि
तो कोई और कहता है 
अनल हक़ अनल हक़ अनल हक़ 
पर घूम फिर कर बात वहीँ आ जाती है 
की;    
ना तो वहाँ कोई परमात्मा है 
ना है वहाँ कोई मंत्र-जाप, 
ना पूजा-पाठ होती है वहाँ 
ना अता की जाती है वहाँ पांच बार की नमाज़  
और ना ही होता है वहां कोई सोचने-समझने वाला जन-मानस, जीवन प्रबंधक या गुलाम 
होता है वहां महज एक निदान, सहज एक ध्यान
इबादत की जाती हैं वहां पल-पल हर पल 
सत्य की, प्रेम की और न्याय की  
यूँ कहने वाले उसे "ज़ेन" भी कहते हैं 
ज़िन्दगी का भी सिला कहते हैं कहने वाले
जीने वाले जिसे गुनाहों की सज़ा कहते हैं
सबकुछ कहना चाहते हुए भी 
कुछ भी नहीं कह पाते हैं गुलफाम :-)

पल-पल तरसते रहे उस पल के लिए हम 
वो पल आया भी तो बस एक पल लिए 
बस... अब यही सताता है बनकर ज़िन्दगी का ग़म 
सोचा था की उस हसीन पल को बाँध लेंगे हम 
जकड़कर उसे अपनी गुदाज बाहों में अपना बना लेंगे उसे हम
हमेशा - हमेशा के लिए  
उस एक पल में अपनी पूरी ज़िन्दगी जी लेंगे हम
अफ़सोस मगर के ये हो ना सका !! 
रुका बस एक पल के लिए वो हसीन पल हमारे पास 
और जाते - जाते ढा गया ग़ज़ब का खुनी सितम
हाए सितम !! हाए सितम !! हाए सितम !!    
       

ना मैं पिता हूँ 
और 
ना ही तू है माता 
असल में तो जो कुछ है 
वो है बस परम पिता परमात्मा
या कह लो उसे सद्चिदानंद आनंदमयी माँ
वो शिव भी है 
वो शक्ति भी है 
या यूं कहूँ की वो शिव-शक्ति है
अर्धनारेश्वर है वो अभेद 
नहीं उसमे कोई नर-नारी का भेद
हम तो बस एक माध्यम हैं 
जो रचे गए हैं इस संसार में 
निभाने को अपनी सज़ा-ए-क़ैद 
किये थे ज़ुल्म हमने कई जान-बूझकर 
हुए थे, होते हैं और होते जाते हैं  
कई गुनाह हमसे रोज़-दर-रोज़ 
कुछ ग़ालिबन, कुछ बातिमन तो कुछ ज़ाहीरन
उस दिन से 
जिस दिन से 
खा लिया हमने 
इल्म का वो खट्टा-मीठा सेब ...     
  

CHILDREN: 

"AND a woman who held a baby against her bosom said, Speak to us of Children. And he said:

Your children are not your children.
They are the sons and daughters of life's longing for itself.
They come through you but not from you.
And though they are with you they belong not to you."
                         
"You may give them your love but not your thoughts,
For they have their own thoughts.
You may house their bodies but not their souls,
For their souls dwell in the house of tomorrow, which you cannot visit, not even in your dreams.
You may strive to be like them, but seek not to make them like you,
For life goes not backwards, nor it stops on yesterday.
You are the bows from which your children as living arrows have been shot forth.
The archer sees the mark upon the path of the infinite,
And He bends you with His might so that His arrows may go swift and far.
Let your bending in The Archer's hand be for gladness;
For even as He loves the arrow that flies, so He loves the bow that is patiently stable."
                                                                                                                                                       -खलील जिब्रान 

Man is bad case....isn't it?

Monday, April 15, 2013

गुप्त नवरात्रि के पावन पर्व पर...secret message for sick lovers !!


इंसान इस दुनियाँ में नग्न आता है और नग्न जाता है
परन्तु इस बीच कपड़ो वाली दुनियाँ में
कितनी ही बार हमारा समाज
स्त्रीयों की आत्मा को किसी ना किसी बहाने
जाने कितनी ही बार नग्न करता है
जिसे ढाकने के लिये कफ़न भी झीना पड़ जाता है

-अनामिका ''अनु'' (my facebook friend)


My apologetic response:

गुप्त नवरात्रि के पावन पर्व पर
बीमार आशिक़ों के लिए  

विस्मित या आश्चर्यचकित करने वाली बात मगर ये 
की 
स्त्रियों की आत्मा को 
तमाम अशलीलता के, 
तमाम नग्न करने के अथक-अभद्र   
हिंसक-अहिंसक प्रयास दर रोज़ करने के बावजूद भी 
मुआ ये दोमुँहा समाज
आज तक किसी स्त्री की आत्मा को छू तक नहीं पाया 
दरअसल तो कभी नहीं !!
हाँ !!
 आहत जरुर किया है उसने स्त्री के दिल को, जिगर को
हाँ !!
आघात जरुर पहुंचाई है उसने स्त्री के ममतामयी प्रेम को 
हाँ !!
चोट जरुर पहुंचाई है उसने स्त्री के तन-मन-धन को 
मज़ा मगर ये 
की अब भी पूर्णतः दीवाना है ये समाज इसी स्त्री के रूप का यौवन का
त्रास मगर ये की आती नहीं इस समाज को इश्क की अदा
भूल गया है ये रस्म-ए-उल्फत भी और हक़-ए-आशिक़ी भी
गुलामी करना नहीं चाहता ये इश्क की 
इसलिए बनना चाह रहा है ये मालिक स्त्रीयों का सदियों से
अफ़सोस मगर ये 
की 
असल में लेकिन बन गया है ये एक दरिंदा 
पर फिर... 

ये भी उतना ही बड़ा सच है 
की 
रूह अब भी रोशन है स्त्रीत्व की 
दिल में सुलगती है आग अब भी उसमे इश्क की 
आसमान छूना चाहती है वो अब भी परिंदों की तरह 
हैं पूरी तरह जिंदा उस आनंदमयी जन्मदायी में
रूहानी हसरतें, जिस्मानी ख्वाब और मनचाही ख्वाहिशें अब भी 
इबादत कर, इबादत कर, इबादत कर 
की 
इबादत से वक़्त भी बदल जाता है और किस्मत भी 
फर्क सिर्फ इतना 
की 
किसी का वक़्त आज बदलता है 
तो किसी की किस्मत कल चमकती है 
मन ले उसे तू नाच-नाच कर 
करके थैय्याँ-थैय्याँ 
की 
तेरी ये अदा उसे आती है बहुत रास 
देखना फिर माँ कसम !!
शामें ना कर पाएँगी कभी तुझे उदास
हर सुबह ले आएगी तमन्नाओं में एक नई आस
रख विश्वास, रख विश्वास, रख विश्वास
या खुदा करम कर, रहम कर इस मासूम नन्ही सी परी पे
बक्श दे इसे तू वो रोशनाई, वो खुशबु, वो महक,
बना दे इसे तू वो सितारा, वो धड़कन, वो नाम
दे दे इस शक्तिस्वरुपिनी को वो सब नेमतें 
जो बांटना चाहती है ये हम सामाजिक निष्ठुर प्राणियों को सरेआम 
महज जगत कल्याण हेतु
हाँ !!
और कुछ नहीं फकत जगत कल्याण हेतु
वरना पता नहीं कब
महज दुष्ट आत्माओं के संहार हेतु, विनाश हेतु  
इस स्त्रैन शक्ति की श्रद्धा-सबुरी और धैर्य का बाँध टूट पड़े साईं 
ना जाने कब 
माँ कालिका, माँ दुर्गा का रूप ले ले ये तारा माई
जागो राम जागो !! 
            
 

Man is bad case....isn't it?
http://youtu.be/MBb_OrHGB38

Saturday, April 13, 2013

CLASS WAR - (ARE you DOWN TO EARTH or DO you BELONG TO EXECUTIVE CLASS??)


  1. " जो लूटाओगे वही लौटकर आएगा। फूल लूटाओगे तो फूल मिलेंगे और कांटे लुटाओगे तो कांटे।"
  2.  - मुनिश्री तरूण सागर

  1. Reference:
    • Gurucharan das' rich ageNDA
    • Kalpesh Yagnik's mindblogging article
    • Pritish Nandy's ambitious loss
    • Pandit Vijayshankar Mehta's selfish usage of Lightening
    • Gandhiji's self-violence
    • Priyanka's coolpix back
    • Kareena's show off attitude
    • dainik bhaskar's sexual advertisements
  2. रोटी, कपडा और मकान बुनियादी जरुरत है ठीक सड़क, बिजली और पानी की तरह। जी हाँ इनकी कीमत चुकानी ही चाहिए पर धन ही एकमात्र उपाय नहीं कीमत देने के लिए। खासतौर से तब जब ये समाज आठ घंटे के परिश्रम का मूल्य मात्र ११० रूपये ही निर्धारित कर गरीब मजदूरों का शोषण करता हुआ स्वयं आराम से वातानकुलित कमरों में, दफ्तरों में जाना माना स्तंभकार, साहित्यकार या मालिक बना बैठा हो।
  3. आप कहते हैं की UPA सरकार का ध्यान वोट बैंक पर है और आपका ध्यान ? क्या वो महज कागजी बैंक बैलेंस पर नहीं है ?
  4. कभी दो चार सौ गरीब भिखारियों को, फकीरों को मुफ्त भोजन खिलाया है आपने ? नहीं खिलाया हो तो करवा कर देखिये। आप स्वयं जान जायेंगे की इनका असल माई-बाप बनना इतना आसान नहीं जितना आपका फितूर दिमाग समझता है। ये निर्भर हैं अगर तो सिर्फ परमात्मा रूपी सरकार की अनुकंपा पर, रहमदिली पर, मेहरबानी पर जो आप जैसे नामचीन रईसजादों को मजबूर कर देती है आपके खाद्य भण्डार बांटने के लिए, चाहे फिर भले ही आप जैसे पंडित या गुरु घंटाल ये परमार्थ का काम भी स्वार्थ-सिद्धि योग हेतु करते हैं।
  5. देश इतना बड़ा खर्च उठाने की हालत में नहीं है या आपका समुदाय नहीं है ? 
  6. देश की आर्थिक हालत खराब है मगर आपकी आर्थिक तंदुरस्ती का क्या ?
  7. कौन पहुंचाएगा ब्लैक मार्किट में ये अनाज - आपका समुदाय, हमारा पंथ या सरकार ?
  8. क्या अपने ही सामाजिक वर्ग की तरह ही झूठा, मक्कार, चालबाज़, अनैतिक अथवा धोकेबाज समझ रखा है आपने हम गरीबों को ?
  9. किसने बनाये वो फर्जी BPL कार्ड ?
  10. हम गरीबों के पास केवल हमारी सत्यता, हमारी नैतिकता, हमारी इज्ज़त ही होती है बचाने के लिए। आप जैसे लोगों का इस तरह की गरीबी से जिस दिन साक्षात्कार होगा ना तभी जान पायेंगे आप हमारी माली हालत। समझे जनाब?
  11. कहाँ गया आपके माता-पिता द्वारा बताया गया इमानदारी और कड़ी मेहनत का वो बातूनी महत्त्व ? क्या खो गया वो प्रीतिश नंदी जैसी महत्वकांक्षाओं में या विस्मृत कर लिया है आपने उसे अपनी जगत कल्याणकारी कार्य-संस्कृति की तरह ? बिना काम किये तो हमें जनम तक नहीं मिलता तो फिर आपकी ये दिलकश सोच कहाँ से आती है की आप लोग हमें बिना मेहनत किये एक कौर भी खाने देंगे? खासतौर से तब जब आप हमारा एक सन्देश - गलत हो या फिर सही , तक पढने-समझने का जोखिम नहीं उठाते? अधार्मिक होते हुए भी आप जैसे लोगों की हिम्मत देखिये की आप हमें धार्मिकता का न केवल सबक सीखाना चाहते हैं बल्कि धर्म की अपनी मनोवांछित धारणा भी हमपर थोप देना चाहते हैं।
  12. निजी क्षेत्र की कंपनियों में हम मजदूरों की तरह, जिनकी आप लोगों की तरह कोई पहचान नहीं होती, कभी एक-दो महीने भी काम करके देखा है आपने? किया होता या करें अगर तो तुरंत-फुरंत जान जायेंगे आप ज़मीनी हकीकत। जब अलिखित करार पर इतन संचय कर लिया आपके उधमियों ने सोचिये की अगर सरकार सब कुछ आपके मुहं मियाँ मिट्ठू वर्ग पर सबकुछ छोड़ देती टी आप ना जाने कितने देशों की बैंक्स के स्टॉक का भला कर जात आपका उद्यमी वर्ग।
  13. नया नहीं बहुत पुराना , बहुत सनातन है ये वर्ग जनाब, जो भ्रष्टाचारमुक्त राष्ट्र ही नहीं अपितु प्रत्येक राष्ट्रीय जन गण मन से भ्रष्टाचारमुक्त होने की मांग नहीं अपील कर रहा है, दुहाई दे रहा है। हर बार इसकी आवक को दबा दिया गया है पर इस बार नहीं। इस बार ना बच सकेंगे ये कल्पेषित याग्निक। असंभव के विरूद्ध होगा उनका बचाव इस बार चाहे फिर वे कितने ही कर ले उचित-अनुचित उपाय। वास्तविकता से कौन कितना परे है ये तो देश-काल-परिस्थिति ही सही वक़्त आने पर ज़ाहिर करेगी पर अभी के लिए बस इतना जान लीजिये की:
  • गांधीजी अब भी स्वयं को थप्पड़ मार रहे हैं आपकी सत्यता का परित्याग देख।
  • प्रियंका चोपड़ा जी पीठ दिखा रही हैं या कैमरा दे रही है हमें अपनी अर्धनग्न तस्वीर खखेंचकर फेविकोल से अपने दिल से चिपकाने के लिए करीना कपूर की तरह, ये हम समझ नहीं पा रहे हैं अभी।
  • करीना कपूर पटौदी जी ने सरे-आम पीठ दिखाने को अपना धंधा मान लिया है वहां तक तो ठीक पर फिर हमारे घूरने-घेरने पर ऐतराज क्यूँ ? जब उनके लिए केवल सैफ अली खान साहब को अपनी मादक पीठ दिखाकर संतुष्ट हो जाना काफी नहीं है तो हम असंतुष्ट पापियों से क्यूँ केवल अपनी बीवी की पीठ देखकर संतुष्ट रहने की अनैसर्गिक इच्छा रखती हैं वो ? जैसे हम बर्दाश्त कर लेते हैं उनका बला का हुस्न, ये जानते हुए भी की वो हमारी होना तो बहुत दूर-कभी शायद हमसे मिलना भी ना चाहेंगी रात के वक़्त होकर के अर्धनग्न- ठीक वैसे ही उन्हें भी सीख लेना चाहिए हमारी बदनीयत, बदनजर, बदसलूक, बेबाक बयानों को हम आशिकों की निगाहों का कसूर मानकर या दुस्वप्न जानकार 
  • फिर ठीक इन अर्धनग्न हसीनाओं, बालाओं, महत्वकांक्षी बलाओं की तरह ही 'दैनिक भास्कर' भी हमें सरेआम उकसाता है जनिन्द्रियों को बड़ा करने के, सेक्स की समस्याओं से निजात पाने के, सेक्सी बातचीत करने के, शीलाजीत गोल्ड खाकर उत्तम सम्भोग करने के विज्ञापन छाप-छापकर। आपको क्या पता की कितनी मुश्किल से संभाल पाते हैं हम अपनी वासनामयी मन की आकांक्षाओं को ये सब देखकर    
  • अनेक हत्याएं कर आतंकी ठीक वैसे ही बच जाते हैं, भाग जाते हैं कल्प्कल्पेश जी जैसे आप बच निकलते, भाग निकलते हैं हर बार अपनी अपांग मानसिक सोच को विचारोउत्तेजक टिपण्णी का कॉलम बताकर  

Man is bad case....isn't it?

Thursday, April 11, 2013

"मैं" भाव -sense of "I AM"


ये "मैं" भाव भी बड़ा अजीब होता है 

पहले तो खुद के मनवांछित उत्तर मांगता है 

फिर भी जब पेट नहीं भरता उसका 

तो खुद को स्वीकार लेने का हक मांगता है

जैसे इतना जुलम भी काफी नहीं उस जुल्मी के लिए 

इसलिए 

मुझे अपना लेने का एहसान भी जताता है

और पुरुस्कृत भी करना चाहता है 

मुझे अपने मन के मोह-माया के जाल में

कीड़े की तरह फंसा लेना चाहता है वो मुझे 

मकड़ी के जाल में

नाम देता है वो इसे अंतरात्मा के मिलन का 

के जबके भली भाँती जानता है वो

की  
 जो जल के ख़ाक हो चुके
तु उसे क्या जलायेगा
तुझे तो उसकी तपती राख से 
मुहब्बत हो गई है.........

मीठी-मीठी बातें करता है फिर वो मेरे साथ 

लोक लुभावन सपने रचता है वो मेरे साथ 

जिसने "अभी" और "यहाँ" में खाया कभी कोई कौर नहीं  

जिसका खुद का कोई छोर नहीं

खेलता रहता है जो 'भूत' और 'भविष्य' में

जरा ध्यानस्थ हो गौर कीजियेगा उसकी लफ्फाजी पर :
 
एक बूँद से सागर तक,
एक प्रश्न से उत्तर तक,
एक ज़मीं से आसमा तक,
एक प्रथम से शेष तक,
एक सुबह से शाम तक,
एक रात से सुबह तक,
सागर के एक छोर से,
आखरी छोर तक
एक जनम से, 
सात जनम तक
एक जीवन से
मोक्ष तक

ना जी ना !!

आप अपने आप पर या अपनी अंतरात्मा पर चोट मत ले लेना 

मानकर अपने मनमोहक मन का ये विचार 

की 
प्रिय अनामिका,

ये कटाक्ष मुझ पर नहीं तुम पर किया गया है

क्योंकि ये "आप" नहीं 

फकत आपके दिमागी विचार है

जो आते हैं परिंदों की तरह वक़्त-बेवक्त 

बिन बुलाये मेहमान की तरह 

और फिर 
वापस उड़कर चले जाते हैं किसी और के दिमाग में 

दूर खड़े हो देखते रहिये आप बस इन्हें 

जैसे मिलती है कोई परायी स्त्री 

किसी पराये मर्द से अजनबियों की तरह 

वर्ना तो 

ये ज़ालिम "मैं" रूपी अहंकार

या मन रूपी द्वैत 

अपनी चालाकी से  

दुश्मन मनवा लेगा इस दीवाने वारसी को आपका 

कलंक लगवा देगा वो एक पाक-साफ़ रिश्ते पर

धज्जियाँ उड़वा देगा वो एक अनाम बंधन को पाप का नाम देकर 

बदनाम कर देगा वो एक मासूम परी को

आप ही लगाने लगेंगी अपने-आप पर ये इलज़ाम 

की

क्यूँ मित्र बनी में इस तांत्रिक पापी की 

क्यूँकर हुई मेरी मति इतनी भ्रष्ट

नहीं उठाने चाहती अब में कोई भी कष्ट 

या देवी सर्वभूतेषु !!

कर दो इस 'दीवाने वारसी' को पूर्णतः नष्ट

ईमान ने आपको अगर रोक भी लिया  

तो जोर देकर खींचेगा आपको आपका ही कुफ्र 

प्रेममयी माँ ने गर आपको टोका 

तो शायद रोक भी लें आप अपनाप को 

मुझे नष्ट करने की प्रार्थना करने से 

पर "मैं" ये आपका इतनी आसानी से मानेगा नहीं 

जब तक हो ना जाऊं मैं आपके जीवन से नदारद

कसम मांगेंगी आप फिर मुझसे ही 

आपको छोड़ देने की 

आपको भूल जाने की 

दुहाई देंगी आप मुझे मेरे ही कसमे-वादों की

खो जाएगा ये सब तब 

जो आज है अभी और यहाँ 

इसलिए 

रहने दीजिये इसे ऐसा ही जैसा की है ये आज और अब 


आत्मा जाने या ना जाने 

मन माने या ना माने 

जिस्म योगी हो या ना हो 

अंश एक है अंशी से 

आत्मा एकात्म है परमात्मा से 

जिस्म दो हैं एक है जान 

कहो कैसा लगा ये अंदाज़-ए-बयान ..??

बोलो ना 
PLeeeeeeeez



Man is bad case....isn't it?