Friday, March 31, 2023

बाजारू औरतें और दिलफेंक मर्द

इन्हीं बाजारू और दिलफेंक औरतों/मर्दों ने, जी हां इनके ही अंग प्रदर्शन ने, इनकी ही वैश्यावृति ने, इनके पोर्न क्लिप्स ने ज्यादातर भारतीय मर्दों/स्त्रीयों को आशावान और भारतीय विवाहित जीवन को धैर्यवान, मूल्यवान, संकल्पवान बनाए रखा है। बाकी का बचा हुआ सबकुछ ठीक-ठाक होने के दिखावे का काम हम अपने ही हाथों और कल्पना शक्ति के दम पर स्वयंभू हो अर्जित कर लेते है। स्खलित भी हो जाते हैं, संतुष्ट भी और कामोन्माद orgasmic भी।

भारतीय मर्द हो या नारी सब की एक ही कहानी है। संबंध विवाह पूर्व हों या हों विवाहोत्तर अधूरापन जैसे सबकी निशानी है।

ऐसा शायद इसलिए की बिना शर्त प्रेम (Unconditional Love) नाम की चीज का अस्तित्व ही नहीं है इस स्वार्थी जगत (Selfish/📱 Cellfish World) में। आभासी वास्तविकता और आभासी मिलन (Virtual Reality & Virtual Meetings) इस आधुनिक जगत की जैसे एक तकनीकी जरूरत बन चुकी है। चाहिए तो सबको सच्चा प्रेम ही होता है पर देने के नाम पर ला ला प्रवृत्ति आड़े आ जाती है। अक्सर तो हम प्रेम हम करते हैं - जबकि प्रेम हो जाता है। फिर इस व्यापारिक संबंध को, जिसे हम दिल के खुश रखने को प्रेम कहते हैं, करते भी हैं तो जिस्मानी, मानसिक, सामाजिक, वित्तीय या कोई और सुख पाने के लिए - सुख देने के लिए तो कदापि नहीं। देने की तो बात ही ना कीजिए साहब बस आने दीजिए। भगवान भी मिल जाए तो अच्छा है वरना धन चाहे काला हो या सफेद - क्या फर्क पड़ता है जी? जिसकी लाठी उसी की भैंस।

प्रेम आनंद देने की भावना से ओत-प्रोत हो तो परम आनंद, चरम आनंद, परमानंद या सच्चिदानंद की स्थिति में भी पहुंचा सकता है - ये तो जैसे हम भारतीय दिमाग के कीड़ों को समझ ही नहीं आता। या..शायद समझ में तो आता है पर ऐसी निस्वार्थ पहल करने वाला/वाली मूर्खता कौन करे? मैं तो दे भी दूॅं ऐसा निस्वार्थ प्रेम पर सामने वाले/वाली ने कबूल ना किया या मोल लौटाया नहीं तो?

प्रेम के जगत में सारा खेल भावना या नियत का है। किस भावना से प्रेम दिया या लिया, खाना पकाया या खाया ज्यादा महत्वपूर्ण है बजाए इसके की किसको दी या किसकी ली, कितनी बार ली या कितनी बार दी। कब और कहाॅं से ज्यादा मोल किस भावना और कैसी नियत के चलते प्रेम का आदान-प्रदान संभव हुआ का अर्थ है।
पाने के लिए दिया..??
या
दे कर ही पाया..??

Thursday, March 30, 2023

ज़िंदगी का सफर

“मैं अपनी स्वाधीनता न खोना चाहूँगा, तुम अपनी स्वतन्त्रता न खोना चाहोगी। 

- मुंशी प्रेमचंद

(चलो, रेल की पटरियों की तरह एक साथ चलकर ये संघर्षपूर्ण सफर तय करते हैं। मिलन भले ही ना हो पाए हमारा पर सफर तो मस्ती से भरपूर होगा। पहुॅंच जायेंगे टर्मिनल पर किसी दिन पर अंतिम साॅंस तक साथ तो बना रहेगा। इसी बहाने प्रेम स्वाधीन भी रहेगा और स्वतंत्र भी।)

 *स्वाधीनता और स्वतंत्रता में क्या अंतर है?* 

# स्वाधीनता व्यक्ति को उसके अधिकार, विश्वास, अपने आप को अभिव्यक्त करने और बंधनो से मुक्त होने तथा अपने अनुसार की जिंदगी को चुनने की शक्ति देता है जबकि स्वतंत्रता को राजनीतिक, सामाजिक और नागरिक स्वतंत्रता का आनंद लेने के लिए स्वतंत्र होने की स्थिति के रूप में परिभाषित किया गया है।

Saturday, March 18, 2023

👍TASTE THE THUNDER👍(on your own risk)


मुझे पता था वादाखिलाफी रंग लायेगी फिर एक बार 
Promises बदलेंगे अभी रंग हजार..

आधे मन से अधूरे तन से आधी अधूरी ढंग से मिली हो हर बार
तभी तो कसक अब भी बाकी है, और तूफानी है ये चक्कर..

कभी पूरी तरह खुल के मिलो तो दिन में तारे नज़र आयेंगे हजार
फिर ना रहेगा ये आधे अधूरे इश्क ओ जुनून का चक्कर
मुझे जो चैन ओ सुकून मिलेगा वो मेरा इनाम कबूतर

तुम पूछती हो की मेरी सुई अगर तुम पर ही अटकी हुई है और मुझे तुम ही तुम नजर आते हो हर तरफ, हर जगह, हर वक्त तो क्या तुम्हारा प्रेम भी मेरे प्रेम जैसा पावन-पवित्र या एक आयामी नहीं होना चाहिए..??
मैं तो केवल यही कहूंगा की प्रेम के रंग हजार हैं और वो बहुआयामी होते हुए भी अनेकता में एकता का दर्शन हो सकता है। यूं समझो की तुम तुम हो और मैं मैं हूं, बात तो तब बनती है जब तुम और मैं, मैं और तुम होते हुए भी "हम" हो जाएं और वो भी एक दूजे को बदले बिना।

मेरी बात अलग है ;
मैं प्रेम बांटता फिरता हूं दिल से दिल को
कोई दिमाग से ले लेता है तो कोई दिल से
इस मिल-बांट कर खाने-खिलाने, पीने-पिलाने में ही कहीं किसी पल में छुपा होता है मेरा वजूद, मेरा दर्शन, मेरा इनाम...

प्रेम की ना कोई हद है ना कोई सीमा
हदों में बांधते ही प्रेम बन जाता है बीमा 
बदले में अगर कुछ भी पाने की इच्छा हो तो प्यार बन जाता है एक गौरखधंधा, एक व्यापार
बिना कुछ पाने की इच्छा के अगर खुद को पूर्ण में पूर्णतः खो सको तो मिलता है सच्चा प्यार

पूछती हो तुम की हमारे और तुम्हारे प्यार में इतना फर्क क्यों है की मुझे तुम ना मिलो तो मेरी रूह कांप उठती है और तुम्हें मेरे मिलने, ना मिलने से कोई फर्क ही नहीं पड़ता..??

इतना ही कहूंगा की सरकती जाए है रुख से नकाब आहिस्ता, आहिस्ता...

तुम तुम्हारे प्रेम को नारी स्वभाव कह सकती हो या राधा तुल्य प्रेम कह सकती हो। कह सकती हो की तुम्हारा प्रेम उच्च कोटि का है और मेरा प्रेम तुच्छ या निम्न कोटि का पर उच्च हो या निम्न प्रेम तो प्रेम ही होता है। वो कहते हैं ना की प्यार घड़ी भर का ही बहुत है, झूठा या सच्चा, मत सोचा कर, मर जायेगा। यहां सोचने वाला मरे या ना मरे पर इन दो जवान प्रेमियों के बीच का प्रेम जरूर मर सकता है।

Radha ya Meera को केवल कृष्ण चाहिए था पर कृष्ण की थी गोपिकाएं हजार। इसका मतलब ये नही की कृष्ण का कैरेक्टर ढीला है या loose है। इसका मतलब सिर्फ ये है की नारी प्रकृति या स्वभाव अधिकांश monogamous हो सकता है जबकि पुरुष की प्रकृति या स्वभाव अधिकांश polygamous होता है या हो सकता है।

हर कृष्ण को असल में राधा ही चाहिए होती है पर राधा का मिलना इतना आसान नहीं होता। नंबर गेम शुरू हो ही जाता है। अहंकार कहता है की तुम अगर मेरे नंबर one हो तो मैं भी तुम्हारी नंबर one हुईं ना - वरना तो गलत बात है क्योंकी हिसाब बराबर नहीं हुआ ना - don't you know, you dumbo that women and women's liberalisation seeks equity and equality both..?? प्यार यहां आकर नंबर गेम या व्यापार बन जाता है और राधा गायब हो जाती है।

तुम मिलो तो प्रभु इच्छा
तुम ना मिलो तो प्रभु लीला

मेरे या तुम्हारे चाहे अनुसार ही अगर सबकुछ होता या हो सकता तो फिर भगवान या भगवत्ता के होने की जरूरत ही क्या थी..??

यहां बराबरी का दर्जा चाहना गलत या सही नहीं बल्कि एक तर्कसंगत व्यापार होगा।
सोचो,
स्त्री अगर पुरुष होना चाहे तो क्या होगा..??
पुरुष अगर स्त्री बन जाए तो क्या होगा..??
फूल फूल है और कांटा कांटा,
पत्ता पत्ता अगर गुलाब होना चाहे तो क्या होगा..??
अपनी अपनी प्रकृति है, अपना अपना स्वभाव है, अपना अपना निमित्त है साहब,
हर फूल अगर गेंदा होना चाहे तो प्रकृति में प्राकृतिक सौंदर्य और सृष्टि में स्रष्टा कैसे कर और क्यों होगा..??

तुम कहोगी की जब तुम खुद को तन-मन-धन से पूर्णतः सौंपती हो किसी पुरुष को तो उसे भी तो तन मन धन से पूरी तरह तुम्हारा ही होकर रहना चाहिए ना..??
फिर एक तर्क तुम ये भी लाओगी की क्या हो अगर कोई स्त्री भी किसी पुरुष की तरह बहुगामी या बहुआयामी हो जाए..??
क्या कोई पुरुष इस आयाम को सहनशीलता से पचा पाएगा..?? क्या वो भी किसी स्त्री की ही तरह बेवफाई के नगमे नहीं गाएगा..??

इतना जान लो की तुम तुम इसलिए हो की तुम्हें तुम होना पसंद है। वो तुम्हारा स्वभाव है ना की कोई प्रतियोगिता जिसमें तुम अपने प्रतियोगी से जीतने के लिए वो ही व्यवहार करने लगी जो तुम्हें पसंद नहीं या जो तुम्हारा व्यक्तिगत स्वभाव नहीं। फिर भी अपनाना चाहो ये बहुपतित्व या बहुविवाह का बेमिसाल तरीका तो जरूर अपना कर देखना ये नायाब तरीका बेवफा कहलाने का। खुद बा खुद समझ आ जायेगा कबीर का ये दोहा की;

कस्तूरी कुंडल बसे
मृग ढूंढे बन माही
त्यूं ही पग पग राम बसे हैं
दुनिया देखत नाही

सौंपता तो पुरुष भी पूरी आत्मा से ही है पर खुद को पूरी तरह सौंप देने से पूरी तरह प्राप्त करने का हक मांगना तो वैसा ही होगा की;

मैने तेरे अहंकार की पीठ खुजायी, अब तू भी मेरी पीठ खुजा
या
मैने तुझे i love you कहा अब तू भी i love you too बोल
या
मैने तुझे १०० का नोट दिया तो तू भी मुझे १०० रुपए का प्यार दे..
ये व्यापार ना हुआ तो क्या हुआ..??

एक सच्चे प्रेमी को ये वैदिक श्लोक समझना होगा:

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। 
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ 

।। ॐ शांति शांति शांति:।।

हिंदी में अर्थ: 

वह सच्चिदानंदघन परमात्मा सभी प्रकार से सदा परिपूर्ण है। यह जगत भी उस परब्रह्म से पूर्ण ही है, क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण पुरुषोत्तम से ही उत्पन्न हुआ है।

१०० का नोट देने के बाद भी (पूर्ण रूप से खुद को सौंप देने के बाद भी) गल्ले में फिर भी १०० का नोट ही रह जाए तो प्रेम है। प्रेम देने के बाद कम नहीं होता अपितु और बढ़ जाता है और ये तब होता है जब प्रेम हिसाब-किताब नहीं मांगता या व्यापारी नहीं होता।
प्रेम प्रेमियों की प्रकृति या स्वभाव में भिन्नता को सहज रूप से स्वीकार करता है। किसी तानाशाह की तरह अपने प्रेमी को अपनी तरह बन जाने के लिए बाध्य नहीं करता।

यूं ही नहीं मिला देता वो किसी को किसी से
कुछ ना कुछ प्रारब्ध जरूर होता है उसकी लिखी में
कभी कोई किसी को कुछ सीखा जाता है बातों बातों में
तो कभी कोई किसी से कुछ सीख लेता है बातों बातों में
मुलाकातें यादें बन जाती हैं कभी तो कभी यादें मुलाकात की वजह बन जाती है
यकीन मानो की जो होता है अच्छे के लिए ही होता है
हठी मन मेरा जाने क्यों मन की इच्छा पूर्ण ना होने पर रोता है

तुम्हें अगर तुम होना अच्छा लगता है तो सबकुछ सही है वरना सबकुछ गलत है।

सच जान लेने में, सच मान लेने में और सच जी लेने में बहुत अंतर होता है।
स्वीकारोक्ति अगर सच्चे दिल से हो तो दमा दम मस्त कलंदर
वरना दिमाग वाले तो अनमने ढंग से स्वीकार कर करते हैं blunder
👍Taste the Thunder👍 (ofcourse at your own risk 😄)
Enjoy it if you can & if you must 😜

Saturday, March 4, 2023

तब और अब




अनोखी तलब, अनूठी तलाश, अधूरी प्यास...
जिस्म की भूख, देह के सुख, मिलन की आस...
प्रेम की अग्नि, चाहत की ध्वनि, लीला-रास...
श्वासों में श्वास, होठों पर होंठ, चरम सुख पास...

अब आप इन्हें इश्क़-ओ-जुनून के फितूर कहिए, काम वासना के कीड़े कहिए या कहिए हार्मोन्स...ये मुझमें अब भी ठीक वैसे ही जिंदा हैं जैसे कभी पनपते थे।

जाग उठते हैं ये फितूर, ये कीटाणु, ये कीड़े अब भी ठीक उसी तरह जैसे कभी जवानी में भड़क उठते थे जज़्बात बन हुस्न की सोहबत में।

फर्क सिर्फ इतना की तब जिस्म जवान था, उतावला था और अब जिस्म बूढ़ा, दिल जवान और मतवाला हो चला है...
तब तुम्हारा होना जरूरी था ख्वाबों को हकीकत में बदलने के लिए और अब तुम्हारे बिना भी हकीकतें ख्वाब बन सुकून दे जाती हैं पल भर में पल भर के लिए।

Man is bad case....isn't it?