Wednesday, January 30, 2013

"Unsolicited Invitation/advice to all & sundry" आप सादर निमंत्रित है


आदरणीय मृणाल पांडे जी,

आपके आज के दैनिक भास्करीय, भ्रष्ट्राचार और समाज संभंधित अभिव्यक्ति को ध्यानपूर्वक पढ़कर ये सहज रूप से प्रतीत होता है की आपको अपने भीतर जन्मे आत्मिक प्रश्नों के मनवांछित जवाब नहीं मिल रहे हैं और शायद इसीलिए आपके आज के अनुभवी आलेख का शीर्षक "जयपुर क्यों बना नंदी ग्राम?" नामक सवाल है।

महसूस हो रहा है की आप जैसी वयस्क, सफल एवं नामचीन लेखिका भी आज के इस वैश्वीकरण युग में वैष्णवीकरण से अत्याधिक प्रभावित हो हम जैसे तुच्छ पाठकों के लेखों को ध्यानपूर्वक ना पढ़ना तो खैर मुनासिब है पर लगता है की आप तक तो शायद स्वयं विष्णु देव के कथन नहीं पहुँच पा रहे हैं। क्या पता आप स्वामी नारायण के  इस कथन के मर्म तक पहुँच पाएंगी या नहीं पर फिर भी कोशिश कीजियेगा। " हर परस्थिति में प्रसन्न रहने की कला अगर सीखनी हो तो महादेव से बेहतर कोई गुरु नहीं। " जी हाँ ! मैं लाइफ ok  tv चैनल पर आ रहे 'देवों के देव - महादेव' की ही बात कर रहा हूँ। ये unsolicited advice नहीं अपितू एक अदना से महादेव भक्त का निवेदन है। कृपया इसे इसी तारतम्य में स्वीकार कर अनुग्रहित कीजियेगा। मेरा ये पत्र भी आपका अस्वीकार नहीं अपितु आपके मन के नकारात्मक, एकपक्षीय, अहंकारी सोच को जागृत करने का एक अतिसंवेदनशील प्रयास ही है। इस आशा के साथ की आप स्वयं गृहस्थ होते हुए भी ध्यानस्थ हो अपनी कुण्डलिनी को जागृत करने का समुचित प्रयास करेंगी।

सार्थक जवाब या तर्कसंगत मार्गदर्शन तो आज तक आपने भी हमारे उन 9 प्रश्नों के नहीं दिए हैं पण्डे जी। शायद इसलिए की हम जैसे भावनात्मक उफान की घड़ियों में बेतुक ढंग से बहे जा रहे अवयस्क नौजवान आपके भारी-भरकम जवाब क्या ख़ाक समझ सकेंगे। ठीक है, यही सोच है आपकी अगर तो अल्लाह निगेहबान आपको मुबारक हो।

हकीकत आपको फुरसती टिपण्णी ही लगेंगी महोदया जब तक आप समाज की ना सिर्फ शाखाओं से, फलों से, फूलों से, तनों से अपितु धरती माँ की गोद में समायी जड़ों से भी भली-भाँती वाकिफ नहीं हो जातीं। जी हाँ ! इसी परिहासपूर्ण प्रवृत्ति में ये उपहासपूर्ण सत्य की झलक छिपी हुई है की भ्रष्टाचारी होकर ही ऐसे विकृत समाज में लक्ष्मीनारायण का वरदहस्त प्राप्त किया जा सकता है। दिल पर हाथ रखकर बोलिए की क्या और कोई वैदिक, सामजिक, ब्रह्म आचारी तरीका छोड़ा है आप सफलता के पुजारियों ने हमें सहजता से, सहिष्णुता से अपने पारम्पारिक पिछड़ेपन और गरीबी के तमगे से मुक्त होने के लिए? 

कड़वेपन से बोया गया कड़वा बीज कड़वी करुणा का पुट नहीं तो क्या आम रस लिए रहेगा मनमोहिनी जी?

जी हाँ ...इस सोच, इस दोयम दर्जे की मानसिकता का कोई धर्म नहीं, जात-पात नहीं, वर्ण नहीं, लिंग नहीं। हाँ ... ये देशव्यापी है और ये ख्याल हमारी नकारात्मकता का सूचक नहीं अपितु दर्द है एक घायल दिल का। जानते हैं की सम्पूर्ण तंत्र को बुलडोज करने की कोई आवशयकता कमस्कम अभी तो नहीं है पर ये भी सत्य है की इस तंत्र के अधिकतम अंग बेइमान हैं और भरोसे के लायक नहीं। हम अराजक या तानाशाह तरीका कतई अख्तियार नहीं करना चाहते पर साथ ही साथ हम ये भी जता देना चाहते हैं दुराचारी समाज के ठेकेदारों को, कार्यकर्ताओं को, पेशेवर दलालों को, वाक् चातुर्य पंडितों को, फतवा देने वाले मुल्लाओं को की हम डरपोक, कायर या नपुंसक भी नहीं की उनके दुराचारी प्रवृत्ति से जन्मे समाज की विकृतियों को ताउम्र सहता ही चले जायेंगे।

आप अगर इस आन्दोलन को सड़ते-गलते हुए वाकई नहीं देख सकतीं है तो खुले आम आइये आप भी इस आन्दोलन का हिस्सा बनिए। आप सादर निमंत्रित है हमें समानांतर मुहीम के सहज मार्ग पर अपनी रोशनी के नूर से प्रशस्त करने के लिए। हम आपका स्वागत करते हैं और विनंती करते हैं की आप आएँ और ना केवल हमारी भाषा को नाटकीय के बजाय सहज समावेशी व संयत, ज्यादा व्यापक, ज्यादा तर्कसंगत बनाने में बाकाएदा नेतृत्व करें। बदले में हम कोई पारिश्रमिक नहीं दे पायेंगे हम गरीब आपको। मिलेगा तो सिर्फ और सिर्फ धिक्कार ही धिक्कार आपको अपने ही पूर्वाग्रह से ग्रसित पूर्व असंख्य सहयोगियों से और आशीर्वाद गिने-चुने कर्मयोगियों से। हाँ, इतना जरुर होगा की नवाजेंगे आपको फिर ख्वाजा गरीब नवाज़।

बोलिए, सिर्फ बातूनी ही रहेंगी आप या ये संघर्षपूर्ण जीवन का निमंत्रण सहर्ष स्वीकार है?

जहाँ अक्ल की सोच ख़त्म होती है 
वहीँ से इश्क शुरू होता है

अक्ल के मदरसे से उठ 
इश्क के मयक़दे में आ 
जाम-ए -फना-ओ-बेखुदी 
अब जो पिया जो हो सो हो 

इश्क में तेरे कोहेगम 
सर पे लिया जो हो सो हो 

Tuesday, January 29, 2013

supremely intelligent but worldly foolish !!

कोई समझाए उन्हें की हम समझाएँ क्या ..??


आदरणीय गुरुचरण दास जी,

'दैनिक भास्कर' जैसे सामान्य जनमान्य के दूषित अहंकार को सर्वदा बाजारी ढंग अपना कर कुपोषित करने वाले अखबार में आप जैसे गुरु ज्ञानी जी का आलेख पढ़कर हम जैसे सहिष्णुता, धार्मिक-आर्थिक-राजनितिक रूप से पूर्णतः आज़ाद होने की पूजा में लगे हुए मुर्खाधिपतियों को ना सिर्फ आत्मिक सुकून पहुँचाया आपने अपितु एक उदारवादी मार्ग भी प्रशस्त किया।

हमारे चित्त को आनंद पहुंचाने के लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। हमारे साधुवाद, हमारे नमन को सहर्ष स्वीकार कर हमें आपका वरदहस्त सदैव यूँ ही बक्शने का वरदान दीजिये महाराज।

एक प्रश्न जो दिल को बैरागी एवं मन को चंचल कर रहा है वो ये है की ;
  1. आप राहुल गांधी जैसे बालक से तो सत्य कहने की वांछित अपेक्षा रखते हैं पर क्या आप स्वयं ये फर्ज दैनिक भास्करी आकाओं, संपादकों, कल्पेषित याग्निकों, नवनीतम गए-गुजरम के साथ निभा रहे हैं?
कुछ और उन प्रश्नों के चैतन्यमयी जवाब जो आज के 'दैनिक भास्कर' के मुखपृष्ट पर कुंठित रूप से विराजमान हैं। आशा है आपका चेतन/अवचेतन मन इन्हें पढना स्वीकार करेगा:
  1. क्या ऐसे विकृत मुजरिम को महज कुछ महीनो की सजा मिलना ठीक होगी? 
जवाबी-प्रश्न: किसने कहा या मान लिया की सिर्फ मुजरिम ही मानसिक रूप से विकृत होते हैं? 

निश्चित रूप से ऐसा एकपक्षीय फैसला करना एक वामपंथी, पूर्वधारनाग्रस्त, विकलांग समाज के लिए ही संभावित हो सकता है। नहीं?

    2. क्या कम सजा से वह आगे चलकर खतरनाक अपराधी नहीं बन जाएगा?

जवाबी-प्रश्न: कौन कह सकता है की एक मुजरिम हमेशा मुजरिम ही रहेगा या खतरनाक अपराधी ही बनेगा?

निश्चित रूप से ऐसा भविष्योन्मुखी फैसला वो ही काल्पनिक समाज कर सकता है जो भूतकाल में इसी समाज में जन्मे महर्षि वाल्मीकि, अंगुलिमाल, खड़गसिंह जिसे लोगो को पूर्णतः विस्मित कर चूका है। नहीं?

   3. अपराधी की उम्र के बजाय क्या अपराध की गंभीरता सजा के लिए आधार नहीं होना चाहिए?

जवाबी-प्रश्न: किसे है खबर की अली-मौला-परमात्मा-god-परमानंद-सद्चितानंद के दरबार में किस अपराध को कितनी गंभीरता से लिया जाता है और किस अपराधी को उसके किये अपराध की सजा देने का आधार-निराधार क्या है?

निश्चित रूप से ये अधिकार तो वैदिक रूप से पूर्णतः पारंगत-सज्जित-सुसज्जित पंडित दैनिक भास्कर को ही प्राप्त है। नहीं?

  4. क्या ऐसे अपराधी को आज नहीं तो कल उसका प्रायश्चित और पश्चताप पूर्ण रवैय्या देख कभी माफ़ किया जा सकता है?

जवाब: नहीं। कतई नहीं किया जा सकता। खासतौर से एक छल-कपटपूर्ण, हिंसात्मक बदला लेने के लिए सदैव तत्पर समाज तो कभी माफ़ नहीं कर सकता। कर सकता है क्या?

निश्चित रूप से ये मुर्खता तो महामहिम, जगतपिता या भारत देश का राष्ट्रपति ही कर सकता है। नहीं?
  5. कौन कर सकता है ऐसे अपराधी को माफ़?  

वो ही महादेव भक्त, महाज्ञानी, लंकाधिपति दशानन जिसने अपनी बहन शूर्पनखा की नाक काटने वाले लक्ष्मण जी को रामजी द्वारा, उन्ही रामजी के तीर द्वारा मरते वक़्त उसके पास ज्ञानार्जन के लिए भेजे जाने पर किंचित भी समय नहीं लिया अपना ज्ञान देने में। नहीं?

  6. ये शब्द किसी मर्यादा पर क्यों नहीं रूकते?

जवाबी-प्रश्न: क्या मर्यादा पुरुषोत्तम को आज भी हम एक धोबी की बात सुन गर्भवती सीता मैया को अपने महल से दूर भेजने के लिए, उनकी अग्नि-परीक्षा लेने के लिए कोसते नहीं फिरते?

निश्चित रूप से जो रोक मर्यादा पुरुषोत्तम ने एक सामान्य जन पर लगाने का प्रयास नहीं किया वैसी रोक तो महान सम्पादक माननीय नवनीत गुर्जर जी जैसा भगवान् या उनका कर कमलों द्वारा रचित समाज ही कर सकता है। नहीं?


"कह सके कौन की ये जल्वागिरी किसकी है
पर्दा रख-छोड़ा है कुछ यूँ उसने की उठाये ना बने"

'शबद-शबद सब करत हैं 
शबद के हाथ ना पाँव 
एक शबद औषध करत 
एक कीर है घाव' 

।। सात समंद की मथ करूँ
लेखन करूँ बनमाए
सबरी धरती कागद करूँ
गुरु गुण लिखा ना जाए ।।

    
Man is bad case.... isn't it?

Monday, January 28, 2013

आज:

आज:

आज ना रोको खुद को 
आज 
बस हो जाओ जो तुम हो . . .
आज कर लो अपनी सारी हसरतें पूरी . . .
नाप लो आज आकाश ..
चलो आज आकाश के पार अपनी उमंग की डोर थामे पतंग के साथ ...
भर दो रंगों से आज पूरा आकाश ...
चालो . . .
चलो आज अनंत की और 
जहां मन के सारे बंधन 
तुम तक ना पहुँच पाएँ ...
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा जहाँ 
अपने पंखों पर . . .
अब छोड़ दो अपने को हवाओं के सहारे ...
बस बह जाओ बहती उन्मुक्त हवा में . . . 
निर्भय . . . 
निश्छल . . . 
जैसे कोई कटी पतंग . . .

                                           - शम्मी छाबड़ा 

उड़ चला है ये वजूद किसी कटी हुई पतंग की तरह . . .
हाँ ... आज 
उड़ चला हूँ में आज हवाओं के साथ 
डोर काटी है मेरे मेह्बूबों ने मेरे 'मन इश बद केस' की 
काटा है ...काटा है ...काटा है 
काइपोचे !
फिर ख़ुशी से चीखी है, चिल्लायी है
मेरे सदगुरुओं की टोली . . .
नाच नाच के
फिर वो गाने लगी 
हाँ हम टल्ली  . . .
हाँ हम टल्ली . . .
रे तू है हमरा झल्ला . . . 
और 
हम है तेरी झल्ली . . . 

 
-- 

Saturday, January 26, 2013

मेरे सवालों का जवाब दो ...दो ना ..."Please answer me...please do...

हम ही बना सकते हैं गणतंत्र को गुणतंत्र 
पर पहले ये तो हो 
की तंत्र से निजात पाकर हम गण तो बनें 
अपने गुणों के हम स्वामी तो बनें 
फिर तंत्र तो रच ही गया है हमारी सेवा करने के लिए 
अब ये बात और की अब तक तो हम तंत्र के सेवक ही रहे 
दोष ना देना किसी और को तुम 
की हमारी मनोकामनाओं के ही मनवांछित फल हमें मिले 
महत्वाकांक्षाओं के बीज जो बोये थे समाज ने हममें 
पाला-पोसा उन्हें हमने ही 
अपनी सुखमयी सफलता की खाद से
क्या आश्चर्य फिर 
की अहंकारी फूल और अभिमानी फल 
असीमित अभिलाषाओं के बाग़ में खिले ...

ये तो हुआ आपके दैनिक भास्करी उथले-उथले सवाल का गहरा-गहरा जवाब 
अब हमारे कुछ सवालों का जवाब देने की निपुणता के रस से 
आप भी हमें भाव-विभोर कीजिये श्रीमान कल्पेश याग्निक जी 
माना के सवाल हमारे आपको लग सकते हैं बेतुके 
पर क्या करें जनाब 
की ज़िन्दगी की तंग गलियों में खेलें हैं हम  
पढ़े-लिखे हैं हम कम
तिसपर अलफ़ाज़ हमारे दे जाते हैं ग़म
गालियाँ खा-खा कर ही आया हम में दम
अब निन्दात्मक होना ही लगाता है हमें मलहम ...

अब आपके "असंभव के विरुद्ध" - अनुशासन, अभ्यास, अनुभूति और अनुभव आधारित अलख की लौ का जरा सात्विक, राजसिक और तामसिक दृष्टि से मुआएना करते हैं हम श्रीमान कल्पेश याग्निक जी ...
पूछते हैं आप राष्ट्रपति के बजाये आम जनता से की "राष्ट्रपति स्वयं क्यों नहीं त्याग देते ऐसा फांसी की सजा से माफ़ी देने का निकृष्टतम अधिकार"

इसलिए जनाब की हुजुर आपकी तरह महज एक काल्पनिक जगत के दुष्ट याग्निक नहीं हैं। वे पिता भी हैं, पति भी, पत्नी भी, बच्चे भी, बूढ़े भी, बुजुर्ग भी, संत भी, पुजारी भी - अन्यथा ना लें अगर आप तो हाँ !! वे सबकुछ के सबकुछ हैं। पर आप महज एक पुरुषार्थी होने के नाते उनका ये "अद्वितीय अर्धनारीश्वर रूप" शायद समझ ना पायें। या अगर समझ भी लें तो जान ना पायें। या शायद जान भी लें पर अनुशासित हो उसके विकराल रूप से अभ्यस्त ना हो पायें। चलो, शायद भी हो जाए पर अनुभिती तो अनुभव से ही आएगी ना जनाब और उसके लिए आपको अपने पुराने अनुभवों से संगृहीत की गई मान्यताओं और धारणाओं से होना होगा दूर और वो शायद जनाब को कतई नहीं होगा मंजूर। 

क्यों क्या ख्याल है आपका जनाब?

आपके बदलाव के लिय विचारोत्तेजक बहस जैसा तो नहीं पर एक कामोत्तेजक सवाल है हमारे पास। हो सके तो जरुर दीजियेगा जवाब की सवाल करने वाले को जवाब देने की कला में भी पारंगत होना चाहिए। नहीं डोज तो हम ये चीख-चीख कर गायेंगे की 

"मेरे रंग में रंगने वाली
परी हो तुम या परियों की रानी 
या हो मेरी प्रेम-कहानी 
मेरे सवालों का जवाब दो ...दो ना ..."
  1. आप स्वयं ही दैनिक भास्कर के राष्ट्रीय सम्पादक पद से जुडी शक्ति-सत्ता-गद्दी त्याग कर समूचे विश्व के समक्ष एक अतुल्निय उद्धरण क्यूँ नहीं प्रस्तुत कर देते श्रीमान कल्पेश याग्निक जी?
  2. क्या आप नहीं चाहते की आपकी भी जयजयकार हो?
  3. क्या आप हमारे, आपके चाहने वालों के, आपके अनुयायियों के, सामाजिक प्राणियों के, दीनिक भास्कर के दिन कर्मचारियों के सन्दर्भ में "राम" नहीं बनना चाहते?
  4. क्या आप अपने अधिकारों का दैनिक दिनचर्या में निकृष्टतम उपयोग कर लोगों को उनके किये की सजा नहीं देते?
  5. क्या जब कभी कोई व्यक्ति दिल से अपने गुनाहों को कबूल कर पश्चताप से भरकर नेकी की, दिन-ओ-ईमान की राह पर चलने का प्रायश्चित करने का ना सिर्फ निवेदन कर ररहा हो बल्कि आपको वाकई ये महसूस हो रहा हो की ये व्यक्ति अपनी अनातारात्मा की आवाज सुन जरुर इस निवेदन का अपने दैनिक जीवन में अमल भी करने की इच्छा रखता है  तो क्या आप महामहिम बनकर उसे माफ़ी देकर एक मौका और देने की कृपा नहीं करेंगे ?
  6. क्या आप चाहेहेंगे की आपके परिवार में से जब किसी से घालिबन, बातिमन या ज़ाहिरन कोई भूल-चूक हो जाए तो उसे महामहिम माफ़ कर एक मौका और ना बक्शें?
  7. क्या आप अपने पाठकों के बेबाक मशविरों को हम रायचंदियों की फुकट की राय मान हम जैसे बेकार लोगों की मुखर वाणी को bhaskarnet.com और अपने इ-मेल id से ब्लाक नहीं कर देते?
  8. किस बात की सजा देते हैं आप हमें और वो भी बिना किसी show cause, charge sheet, domestic inquiry दिए/किये बगैर?
  9. क्या यही आपकी "बड़प्पन" की परिभाषा है? 
अरे भाई, महज एक विचारोत्तेजक इ-मेल है आपके एक भाई का जो ठीक आप ही की तरह "असंभव के विरुद्ध" अपने आलेख व्यक्त करता है ...ये तो कोई बलात्कार, नृशंस हत्या, चोरी, डाका या सीनाजोरी नहीं जो आप इतने कुपित-क्रोधित हो जाएँ की हमारी आवाज को फांसी की सजा दे दें?

आप ही फैसला करो भाइयों और बहनों :
की मैं झूठ बोल्याँ ?
की मैं कुफर तोल्याँ ?
की मैं ज़हर घोल्याँ ?   


Man is bad case.... isn't it?

Friday, January 25, 2013

An Open letter to Dainik Bhaskar editor- Mr Navneet Gurjar

Egoistic look
of an Egoistic mind

सन्दर्भ : महाश्वेता जी के शोभनीय, प्रेमपूर्ण, श्वेत, संवेदनशील एवं उपयुक्त कथन -"नक्सलवादियों को भी सपने देखने का हक" पर दैनिक भास्करी श्रीमान नवनीत गुर्जर जी का अशोभनीय, नफरत भरा, कालिग लगा, अहंकारी एवं अनुपयुक्त दूषित दृष्टिकोण।

खुद नवनीत दमनकारी नीतियों से 
अपनों के, परायों के, दूसरों के 
सपने छीने ये तामसिक गुर्जर तो कुछ नहीं 
देखि आपने एक चतुर मक्कार की मक्कारी 
की 
एक तरफ तो शीर्ष साहित्यकार को सही भी कहे 
और 
दूसरी तरफ लेकिन कहकर ग्खुद को गुलज़ार भी करे ये गुलजारी 
देखा आपने इस कुतर्की का तर्क गौर से 
की 
गुलज़ार साहब की मासूम पंक्तियों को 
अपने निजी हित के लिए 
महाश्वेताजी के सौम्य कथन के खिलाफ 
कैसा घिनोना उपयोग कर रहा ये नक्सल्कारि  
खुद साहित्य को निर्लज्जता से निरर्थक करे 
तो हक है ये उसका 
और
हम मांगे साड्डा हक तो हो जाते हैं भिकारी 
वाह रे रमेश!!
खूब तेरी ये मायानगरी 
जहाँ राज कर रहे ये विनाशकारी
बने बैठे हैं सरकारी चापलूस 
फिर 
आम जनता की महत्वाकांक्षी सोच का चाणक्य बन
स्वयं की अभीप्साओं को पूर्ण करने की 
खूब सीखी है (शायद तुझसे ही) ये कपटपूर्ण कलाकारी
जज बने बैठे हैं ये कल्पेषित भास्करी 
शायद जानते नहीं
की 
कल नहीं तो एक न एक दिन बा-हक़ पेश होनी ही है 
सुप्रीमो परमात्मा के समक्ष 
इनके वाक्-चातुर्य, 
इनके पाप-पुण्य के कर्मो की सिलसिलेवार पेशी 
जवाब तैयार कर लो अभी से 
की उस क़यामत के दिन नहीं ना चलेगी
एक भी तुम्हारी बिमारी या लाचारी 
ध्यानपूर्वक देखो-समझो-जानो-अमल करो 
 LIFE OK  Tv चैनल पर प्रतिदिन गूँज रही ॐकार की टंकार जगत कल्याणकारी
शायद तुम भी बक्श दिए जाओ इसमहामारी से 
जिस तरह रहमदिली से बक्शे जा रहे हैं 
हम जैसे अत्याचारी और गुनाहगारी भी 
जरुरत है तो बस उठाने की सहज एक कदम 
खुद की ही अंतरात्मा की आवाज सुनने के प्रति 
बाकी निन्न्यान्नु कदम तो उठाते हैं खुद ही 
वो परोपकारी 
आमीन, आमीन, आमीन 
सुम आमीन    

Thursday, January 24, 2013

वारी वारी वारी ..सदगुरुओं पे...मैं वारि वारि वारि...



24/01/2013
गुरूवार,23 जनवरी,2013
आज गुरुवार है 
तो सोचा कुछ मीठा हो जाए 

हलवाई मिठाई नहीं चखता-चखाता रहता 
शराबी शराब नहीं पीता-पिलाता रहता 
 खुशियाँ रेवड़ियाँ नहीं जो बाटी-बटोरी जा सकें
सर्दियाँ सदियाँ नहीं जो खिसकाई-सरकाई जा सकें 
गुरपरसाद खरीद सको जो खुद को पूर्णता भी बेचकर तुम 
तो बेशक-बेहिचक चूका देना ये मोल 
की 
प्रेम अनमोल, प्रेम अनमोल, प्रेम अनमोल

हो जाओ सदगुरु पे वारी वारी वारी
गुरु बलहारी, गुरु बलहारी, गुरु बलहारी

या वारिस 
करम वारिस, रहम वारिस , दाता वारिस 
अल्लाह वारिस, हक
मैंने पुछा : तेरा पता ?
उसने कहा : हर दिल में हूँ 
मैंने कहा : दीखता नहीं 
उसने कहा : किस्मत तेरी !!

उसने पुछा : क्या खाएगा ?
मैंने कहा : तीर-ए-नज़र 
उसने कहा : मर जाएगा 
मैंने कहा : झगड़ा ही मिट जाएगा

 
ना था जब कुछ तो खुदा था, कुछ ना होता तो खुद होता  
डुबोया मुझको होने ने, ना होता "मैं" तो क्या होता ?

हुआ जब ग़म से यूँ बेहिस, तो ग़म क्या सर के कटने का
ना होता गर जुदा तन से, तो ज़ानो पर धरा होता

  हुई मुद्दत के ग़ालिब मर गया पर याद आता है 
वो हर एक बात पर कहना, की यूँ होता तो क्या होता ?


 

Man is bad case....isnt it?

Monday, January 21, 2013

इश्क वाला लव


पता है 
दूर ...यहाँ से बहुत दूर 
सही और गलत के पार ...
एक मैदान है ...
मैं वहाँ मिलूँगा तुझे ...

जानते हो 
तेरा छूना मुझे सुकून पहुंचाता है 
तुझसे मिलना मुझे रास आता है
पर ...
कोई और मुझे छुए तो मैं तड़प जाती हूँ 
कोई और मुझसे मिलना चाहे तो मैं डर जाती हूँ ...

बस यूँ समझ
की तू मेरी है और मैं तेरा हूँ 
मेरे अलावा तुझे और तेरे अलावा मुझे 
कोई चाहकर भी छू नहीं सकेगा - मिल नहीं सकेगा 
तब तक नहीं 
जब तक के वो तेरे दिल में 
रब्ब नि धड़कन बन धड़कने नहीं लगता ...

यूँ तो कहते है ना 
की हर इंसान में रब्ब बसता है
पर तुझमें ही मुझे मेरा रब्ब दीखता है
यारा मैं क्या करूँ ..

वो इसलिए मेरी जान 
की तेरा इश्क वाला लव 
रब्ब दी मेहर बन 
मेरे दिल में पल-पल धड़कता है 
जगाया है जिसे तूने ही 
मिर्ज़ा ग़ालिब के आग के दरिया में* 
उबारा है जिसे तूने ही
डूबा कर खुसरो के प्रेम के दरिया में** ...

*ये इश्क नहीं आसान 
बस इतना समझ लीजिये 
की एक आग का दरिया है 
और डूब कर जाना है 
इश्क वो आतिश है ग़ालिब 
जो लगाए ना लगे 
और बुझाये ना बूझे ...

**खुसरो दरिया प्रेम का 
जाकी उल्टी धार 
जो उबरा सो डूब गया
जो डूबा सो पार 

Man is bad case.... isn't it?

Saturday, January 19, 2013

साड्डा साड्डा हक ऐत्थे ऐत्थे रख ...

तेरी ये सिमित दृष्टी 
तेरा ये काल्पनिक दृष्टिकोण 
तेरे ही पास रख ओ दैनिक भास्करी ...
तू भास्कर नहीं सच्चा 
तेरी सत्य के प्रति झूठी निष्ठा
समझता है बच्चा-बच्चा 
तू ना दे पाएगा
इस बार हमें गफलत का गच्चा ...
तुझमे खुद को जला लेने वाली आग ही नहीं 
न तुझमें जलाल है जनहित के वास्ते 
ना तुझमें जमाल है हुस्न का 
एक भक्षक क्या ख़ाक करेगा महिलाओं की सुरक्षा !!!
तू तो बस एक चतुर चाटुकार 
बस बातें करवा लो जिस से हजार 
मंसूबे तेरे खूब जानते हैं हम
हम युवाओं की युवा क्रान्ति का 
बनना चाहता है तू 
एक वाचाल लीडर 
एक भूचाली आवाज 
पर ,
बूढ़ा गया है तू अपने ही बड़प्पन के दंभ से 
आता है अब तुझे मचाना फ़कत 
एक कल्पेषित चीत्कार 
समाधान के नाम पर तेरे पास और कुछ तो है नहीं 
दूसरों को दोषी ठहराने की कला के सिवा 
या फिर 
आता है तुझे 
खुद को बदले बिना 
दूसरों से बदल जाने की चिरस्थायी उम्मीद रखना 
और वो भी जनकल्याण हेतु नहीं 
महज खुद के फाएदे, खुद की स्वार्थपूर्ति के लिए 
चल हट !!
दूर हो जा नज़र से तेरी विसाल लेकर ...
साड्डा हक 
ऐत्थे रख 
साड्डा साड्डा हक 
ऐत्थे ऐत्थे रख ...
हम असली प्रेम के है वारिस 
आये हैं वारसी मशाल लेकर ...
हटता  है या कहूँ मुश्किलकुशा से ...

या वारिस 
Man is bad case....isnt it?

Wednesday, January 16, 2013

परियों की परीभाषा

परियों की परी भाषा :

प्रिय परी मृणाल पण्डे जी,

बहुत 'समय' बाद, आज आपके बदलते समाज को लेकर की गई दैनिक भास्करी अभिव्यक्ति में हमें फिर एक बार महज एक एकतरफा पक्ष देखने वाली एक स्त्री महसूस हुई। चूँकि ये'समय' को दोष देने की भयावह चुक आप जैसी एक संवेदनशील, जागरूक, नामचीन एवं सर्वगुण संपन्न लेखिका के मुखाग्र मनन से हुई है इसलिए हम अपनी अनचाही सोच एवं व्याकुल विचार आप तक फिर एक बार आप तक पहुंचाने के लिए विवश हो उठे हैं।

आशा है आप हमारी तत्पर सभ्यता को हमारी बर्बरता ना समझ हमारे प्रेम तल की गहराई को महसूस कर सकेंगी।

ये टिप्पणिया आपकी रूहानी नज़र के समक्ष प्रस्तुत हैं। कृपया गौर फरमाइएगा :

  1. जिसे आप स्त्रीयों के बीच उभरा नया आत्मविश्वास समझ रही हैं क्या वो वाकई में पवित्र आत्मविश्वास है या महज एक दिखावटी नाटकीयता? क्या वजह है की हम इसे पावन आत्मविश्वास ना मानते हुए अगर महत्वाकांक्षा का चिरस्थायी बीज मान बैठें? 
  2. आप जिसे आत्मगौरव मानकर गौरवान्वित हो उठी हैं, क्या वो केवल एक दूषित घमंड नहीं हो सकता? 
  3. अपना वर्चस्व साबित करने की ये कैसी अजब सी जिद है जो स्त्रीयों को स्त्री रूप, स्त्री सादगी, स्त्रैन चरित्र, स्त्रैन व्यक्तित्व छोड़ पुरुषार्थी बनने का मजबूर कर रही है?
  4. बाल कटा कर, जीन्स-t शर्ट, कशमकश फैलाते कसे हुए दुपट्टे रहित टॉप्स, वस्त्र, वेशभूषा, मिनी स्कर्ट, पहन-पहना कर आप और आजकल की युवतियाँ, औरतें, माताएँ-बहने अगर इतराती फिरें और वो भी इस बहुमुखी, रुढ़िवादी, संस्कारविहीन एवं परम्परागत भारतीय समाज में तो आप चाहती हैं की हम उसे आपकी इस युग की जरुरत माने बजाए उसे आपकी अंतर्मुखी सोच, आपकी मॉडर्न व्यावहारिकता, आपकी अमर्यादित संस्कारहीनता की अपाराम्पारिक गतन। क्यों?
  5. आप खुद की भी अपवित्र सोच बदलने के बजाए केवल पुरुषों को अपनी सोच बदलने का बेतुकी मांग कैसे कर सकती हैं?
  6. क्या आपको पूर्णतः ज्ञात है की उस दिल्ली की सर्द रात में bus में बलात्कार के ठीक पूर्व में ऐसी क्या अव्यवहारिक, असामाजिक, अमर्यादित घटना घटित हुई हो सकती है जिसने उन गटर के कीड़ों को ना केवल अमानवीय व्यवहार अपनाने के लिए मजबूर कर दिया अपितु अतुलनीय दानव, नर-पिशाच, हत्यारा भी बन्ने के लिए और उत्तेजित कर दिया?
  7. क्या आपने कभी उन 5 बलात्कारियों का पक्ष सुनने-जानने-समझने-बूझने की अद्वितीय पहल की?
  8.  क्या आप जानती हैं की 'दामिनी' या 'निर्भय' अंतिम साँस तक अपनी माता से किस बात के लिए माफ़ी मांगती रही?
  9. क्या आपको पता है लड़की के परिवार वालों को और खासतौर पर लड़की की माँ को उन पाँचों बर्बर व्यक्तियों का बयान सुनने के बाद कितना लज्जित होना पड़ा? इतना की वो लोग आगे कुछ सुन पाने की हालत में ही नहीं थे।
अब इन सवालों का लोकतांत्रिक जवाब निस्वार्थ भाव से स्वयं को देकर आप ही तय कीजिये की घटिया, अर्ध-नग्न, अर्ध-सत्य, भोथरी एवं स्वार्थपरक सोच किस किस की है और किसकी नहीं। अल्लाह आपकी मदद जरुर करेंगे। परमात्मा आपको आशीर्वाद जरुर देंगे। God will definitely bestow you with eternal harmony of love, peace, masculine-feminine power & bliss. प्रभजी का सिमरन बड़ा ही फलदायक होगा आपके एवेम जगत के कल्याण हेतु।

आमीन

 

Man is bad case....isnt it?

Tuesday, January 15, 2013

i M cocktail...ये facebook है मेरे भाई !!


तुम ही हो मम्मा - पापा तुम्ही हो 
तुम ही हो बंधू - सखा तुम्ही हो 
खोजो खुद को खुद के ही भीतर 
तुम ही हो पूजा - पुजारी/पूजारन तुम्ही हो

i aM Cocktail !!

सब फिक्रमंद है यहाँ अपने-आप को सही साबित करने के लिए 
गोया,
"ज़िन्दगी" नहीं ...कोई "इलज़ाम" है सर पे ..

ये facebook है मेरे भाई !! 

प्रेम से मीठा कोई समाधान ही नहीं 
ना कोई झूठा डर है इसमें 
ना कोई इनकार - ना कोई करार 
और
ना ही कोई सचमुच की लड़ाई ...
बस ...
एक एहसास है सुकूनतारी का,
दे पाटा हूँ जिसे में कोई नाम नहीं ...

खुदा से खुदा को ही माँग लिया करते हैं हम सजदे में ...,
फिर .,
खुदाई बा-हक साथ चली आये तो हम क्या करें ..!!

नहा लिया जबसे इश्क के जलवों से मैं
तबसे हकीक़तें भी बन गई है फ़साना 
अपने बेगाने से लगने लगे हैं और बेगाने अपने 
नया पुराना हो चला है और पुराना नया

हमसे ना कीजिये इस मायावी जगत की 
दोतुकी-दोमुही बातें ...
हम वहाँ रहते हैं 
जहाँ ना दिन होता है - ना होती हैं वहाँ रातें   

फर्ज मर्ज बन गया है और मर्ज फर्ज 
 दिल से निभाते हैं हम जिसके फर्ज 

नहीं ... नहीं ..ये नहीं है कोई कर्ज 

ये फकत इक 'दीवाने' की जाहिल सी अर्ज है  
बक्श दें इसे फिर आप जो चाहें तर्ज 

।। मोरी लगन ऐसी 
की मोसे रूठा ना जाए 
रूठूँ जो पिया से 
तो पि भरी दोपहरी दरस दे जाएँ ।।  

Man is bad case.... isn't it?

Monday, January 14, 2013

Now, that is what i call True Leadership Journalism...

Hearty Thanks my dear Tony Joseph ji,

This gratitude letter is for your eye-opening, mind-blowing, unbiased, factual, figurative, open-minded, opinion free, non-autocratic and yet authorized article regarding Indo-Pak relations on editorial page of today's Dainik Bhaskar newspaper titled "पाकिस्तान के क्या हैं मंसूबे?".

Now, that is what i call True Bhaskar Leadership Journalism of a dainik bhaskri journalist on an auspicious day of Makar Sankranti. 

The real, true & only DAINIK BHASKAR of this world must be surely feeling very happy with this offering.  

May Sun God bless all of us with His divine light to see things as clearly as they are without the undue interference, cunningness or projection of the God of our 5 senses called MIND or INDRADEV.
Warm Regards,

manish badkas

Friday, January 11, 2013

BEAUTY


BEAUTY:
"AND a poet said, Speak to us of Beauty.
And he answered :
Where shall you seek beauty, and how shall you find her unless she herself be your way and your guide?
And how shall you speak of her except she be the weaver of your speech?"

"The aggrieved and the injured say, " Beauty is kind and gentle.
Like a young mother half-shy of her own glory, she walks among us."
And the passionate say," Nay, beauty is a thing of might and dread.
Like the tempest she shakes the earth beneath us and the sky above us."

"The tired and the weary say, "Beauty is of soft whispering. She speaks in our spirit.
Her voice yields to our silences like a faint light that quivers in the fear of the shadow."
But the restless say," We have heard her shouting among the mountains,
And with her cries came the sound of hoofs, and the beating of wings and the roaring of lions."
At night the watchmen of the city say," Beauty shall rise with the dawn from the east."
And at noontide the toilers and the wayfarers say," We have seen her leaning over the earth from the windows of the sunset."

"In winter say the snow-bound, “She shall come with the spring leaping upon the hills."
And in the summer heat the reapers say," We have seen her dancing with the autumn leaves, and we saw a drift of snow in her hair."
All these things have you said of beauty,

Yet in truth you spoke not of her but of needs unsatisfied,
And beauty is not a need but an ecstasy.
It is not a mouth thirsting nor an empty hand stretched forth,
But rather a heart inflamed and a soul enchanted.
It is not the image you would see nor the song you would hear,
But rather an image you see though you close your eyes and a song you hear though you shut your ears.
It is not a sap within the furrowed bark, nor a wing attached to a claw,
But rather a garden for ever in bloom and a flock of angels for ever in flight.
People of Orphalese, beauty is life when life unveils her holy face.
But you are life and you are the veil.
Beauty is eternity gazing itself in a mirror.
But you are eternity and you are the mirror."

---KAHLIL GIBRAN



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Man is bad case....isnt it?