Saturday, August 18, 2012

या वारिस


जाने-अनजाने
गालिबन या बातिमन
जन्म हुआ है
तो गुनाह तो हो ही जाते हैं हमसे
अल्लाह ताला मगर मोहब्बत से अपनी
बक्श भी देते हैं उन गुनाहों को
गुनाहगार की पाक-साफ़ नीयत से
पेश की गई इल्तिजा, दुआ, नमाज सुन-सुन
पर...
लगातार
जान-बूझकर
ज़ाहिरन
गुनाह  करने वाले काफिर को
कौन बचाएगा खुदाई कहर से...
आज नहीं तो कल ही सही
उस काफिर ने बेशक मगर
खुद-बा-खुद ही चुन लिया है
अपने बदजात कर्मो से
खुद के अहंकारी सर को कटा लेना
कर ही रहा है वो 
अपने मगरुरी सर को
कटा लेने का इंतज़ाम
ले ही रहा है वो
कुदरत  की श्रद्धा-सबुरी का इम्तेहान 
और...
वो भी किसी और के हाथों नहीं
बल्कि 
स्वयंभू महा-काल के वीरभद्र रौद्र रुपी ताप के हाथों...
जारी रही अगर
उस बद्तमीज की
जान-बूझकर गुनाह में लीन रहने की तामसिक प्रवत्ति
या यूँ कहें की दोजखी तलब
तो
निश्चित रूप से क़यामत से क़यामत तक
बरसता ही रहेगा उस शैतान पर
कुदरत का कहर...
ना कुछ खोने को है यहाँ
और ना ही है यहाँ कुछ पाने को
कुदरतन दिखाई देने लगा है महबूब 
जबसे
इस दीवाने वारसी को...
दिमागी आँखों से 
सिर्फ तब ही
देखा जा सकता है
या फिर याद किया जा सकता है 
अपने महबूब को
दिल से जब पूरी तरह भुला दिया गया हो उसे
दिल-ओ-दिमाग मगर 
जब
एक हो जाएँ तेरी कुदरती रहमतों से
मेरे मौला...!!
तब
 कोई किस तरह तुझे याद कर पायेगा
या तुझे भूल पायेगा
मेरे मौला..!!
हर लम्हा बस तू ही तू
हर जगह बस तू ही तू
हर करम बस तेरा ही तेरा
हर एक में बस तेरा ही तेरा
मायावी रूप में हमें नज़र आएगा
मेरे मौला..!!
अली मौला
अली मौला
अली मौला
हक
देख लो अपने अन्दर विराजे ॐ को
अपने महबूब की तरह...
देखा करो अपनी आती-जाती साँस को
किसी माशूक की तरह...
हमारे हर एक करम को
तुम्हारा ही रहम बक्श दो मौला
तू ही सत्य
तू ही शिव
तू ही सुन्दर
मौला..!!
या वारिस
अल्लाह वारिस
हक वारिस
अल्लाह वारिस

Tuesday, August 14, 2012

स्व का तंत्र

स्व के तंत्र पर जब
हर नागरीक दिल-ओ-जान से
जपे-तपे इश्क, ईमान और ध्यान के मंत्र
तब कहीं जाकर एक राष्ट्र होता
असल मायने में स्वतंत्र

शिकायतों या अपेक्षाओं से नहीं होती
कभी भी किसी भी देश को महानता हासिल

गणों द्वारा, गणों का, गणों के लिए
होने से ही काबिल हो पाता है गणतंत्र

सिर्फ गणधिशों की जवाबदारी नहीं
स्वराज

चलो...आज से राज करें स्व के मन-राज पर
हो जाएँ मुक्त स्व के यमराज से
हो जाएँ परतंत्रता से स्वतंत्र

चलो...इस बार मन के इश होकर के
हो जाएँ हक़ीक़त में स्वतंत्र...

HAVE A SOULFUL INDEPENDENCE DAY THIS YEAR ONWARDS...

एकला चालो रे

कहत ये 'दीवाना मनीष वारसी'
जो मात्र एक यन्त्र

आमीन

Monday, August 13, 2012

The burden of being meditative

आदरणीय साधना जी,




प्रणाम..

आज 12/08/2012 के दैनिक भास्कर समाचार पत्र में आपकी सीख का लेख "गंभीरता का बोझ" पढने के बाद आपके शब्दों और आपकी सीख को गंभीरता से ना लेते हुए आत्मा ने आपके साथ ये तथ्य बांटने का आग्रह किया की :

ये माना की विनोद या हास्य गंभीरता से अधीक सुलभ हैं पर फिर ये भी जानें की दोनों गुणों में से सिर्फ एक गुण को चुन लेना वैसा ही है जैसे;

फूलों के ही दीवाने हैं सब
हम काँटों से दिल कौन लगाये
कांटें ही लिए बैठे हैं अब
फुल तो कब के मुरझाये
चुनने की भूल की थी तब
अब तो ये रहस्य साफ़ नज़र आए
की
खुशबु बन के महके है रब्ब
रब्ब ही तो हैं काँटों में समाये
अधिकतर आदम-हव्वा अब तक मगर
सिर्फ इल्म के सेब को ही चुनते आए...

ये भी जानना चाहूँगा की क्या ओशो महाराज की भी सारी बातों को, सीखों को, ध्यानो को सिर्फ विनोद में ही लेकर हँसी-मजाक उड़ाई जाए..??

या

गंभीरता से उन्हें जहन में उतार हँसते-हँसते आनंद आमार गोत्र - उत्सव आमार जात का भावपूर्ण गीत गाया जाए..??

To read "between the lines" is an art too...isn't it?

I hope that this this book titled "between the lines", the pdf file of which i am lovingly attaching here with in this e-mail, might be able enough to provide you some help to let your conscience feel the concept of non-duality.
"अद्वैत या तौहीद का सिर्फ ज्ञान या इल्म नहीं
बल्कि अनुभूति या तस्दीक भी वाजिब या जरुरी है
इश्क का अमृत चखने या सद चित्त आनंद जीवन जीने के लिए...."

With regards,

Yours truly,
manish badkas

Saturday, August 4, 2012

9 question feedback to Mr. Kalpesh Yagnik

Dear Mr. Kalpesh Yagnik,




आशावान होना
निराशमय होने से
बेहतर अवश्य है
पर
सद्चितानंद होना नहीं है


This is a feedback regarding your today's article on front page of the one and only Dainik Bhaskar which does not find any shame in indulging in calling itself "भारत का सबसे बड़ा समाचार पत्र समूह"

This egoistic claim inspite of knowing the fact that the real Bhaskar never ever needed to claim so.

feedback:

'Calling voters बेचारा is mere कल्पना of a कलपता हुआ कल्प-ऐश who continuously burns YaYa in the अग्नि of a कल अपना है type of pathetic illusion without ever concentrating or realizing the present fact that the Dainik Bhaskari भ्रष्टाचार is पनपing within us all the time by completely ignoring the voice of conscience in NOW and HERE - आज और अभी

आमीन

सूम आमीन

मतलब,

शुभ हो, शीघ्र हो, स्वास्थवर्धक हो, शून्य्कारक हो, प्रभु मंशा से हो, वालियों की मन्नत से हो...

और

जब में ये कहता हूँ की "हो" तो तो इसका ये मतलब नहीं की की 'कभी हो, होगा या होना चाहिए'

क्यूंकि,

ऐसा समझ लेना ये मान लेना है की अभी और यहाँ जो है या जो हो रहा है उस से हम आनंदित नहीं, संतुष्ट नहीं - दुखी हैं, असंतुष्ट हैं और वो भी पूर्ण रूप से...

क्या इस दुनिया में जो भी हो रहा है वो समुचित रूप से दुखदायी है..??

क्या हम सत्कर्म, सद्कार्य, सहजता देख पाने में पूरी तरह अक्षम हैं..??

क्या हमें सिर्फ अन्धकार ही अन्धकार नज़र आ रहा है..??

क्या हमें कहीं कोई नूर, कोई रौशनी नज़र नहीं आती..??

क्या पड़, नाम, धन-दौलत, सफलता के अलावा हमें खुदा, इश्वर, god का रुतबा कहीं दिखाई नहीं पड़ता..??

क्या हम इतने अहंकारी, इतने भ्रष्टाचारी, इतने बलात्कारी हो चुके हैं की हम में से इश्क और ईमान पूरी तरह से गायब हो गए हैं..??

क्या हम कभी खुद को वाकई बदलना चाहेंगे या बदलाव की अपेक्षा सिर्फ दूसरों से ही करते रहेंगे..??

क्या हम सिर्फ राम राज्य के स्वप्न ही देखते रहेंगे या अपनी दैनिक भास्करी दिनचर्या में पल-पल राम जी को जिंदा रखने का प्रयत्न भी करेंगे..??

क्या आप कभी जवाब भी देंगे कल्पेश याग्निक जी या सिर्फ सवाल ही करते रहेंगे..??

बोलिए जनाब बोलिए
दिल के राज खोलिए