Saturday, November 26, 2011

मैं भी चौकसे :

सादर प्रणाम चौकसे जी...


आज नवम्बर २१, २०११ के दैनिक भास्कर में आपका आलेख पढ़ आपसे और अपने-आप से कुछ कहने का मन हुआ, सो कह रहा हूँ...

आशा है आप इसे अन्यथा ना लेंगे...

मैं भी चौकसे :


जंगली जवानी का जोबन देख चौंक गया है ये चौकसे...
जय हुआ जिस प्रकाश से उसे ही गंद मान बैठा है ये चौकसे...





Dearth से dirty हुई कामसूत्र की गर ये विद्या हमारी
तो क्या ताज्जुब की silk से आज भी smitten है ये चौकसे...




Censor बैठा कुंठित कर दिया जन-मानस के senses को
ग़ज़ब चौकसी के बाद भी मगर चाक-चौकस ना हुआ ये चौकसे...





जवानी बता गई धता सभी चौकसियों को
कभी हक़ीक़तन तो कभी fantasy में कई गुलों से गुलनार हुआ है ये चौकसे...





कस्तूरी की गंध सी नैसर्गिक है ये तलब
फिरदोस में अश्लील कहता फिर रहा है जिसे ये चौकसे...





जागतिक लीलाओं में अपनी फूहड़ नैतिकताएं घुसा-घुसा
नासिर से नासूर हुआ जा रहा है ये चौकसे...





बुढ़ापा आ गया पर तांक-झाँक की ये आदत जाती नहीं
दूसरों का लोचन कर-कर आलोचक हुआ जाता है ये चौकसे...





हाशिये से हाशिये तक का सफ़र है हर हाशमी
आदम को मगर आदिम से आदमकद बना रहा है ये चौकसे...





अनेकता में एकता की गाथा तो माशाल्लाह गाता है रोज
एक से भी कभी मगर एकात्म ना हुआ है ये चौकसे...





कभी खुद का भी तो अवलोकन कर तू ऐ 'मनीष'
की पल-पल तुझमें भी तो तुशारित है ये चौकसे...





Tuesday, November 22, 2011

मध्य-प्रदेश



पचपन साल का हुआ जाता है मेरा मध्य-प्रदेश,

बच्चे, बूढ़े, जवान सभी को देता है वो ये सन्देश,

मध्य मार्ग अपनाते हुए भी जिया जा सकता है,

अतियों में जीना बोलो कहाँ का दुरन्देश . . .

मध्यस्थ हो ध्यानस्थ भी हुआ जा सकता है,

कोई सीख-प्रवचन नहीं बस.. एक आव्हान करता है मध्य-प्रदेश . . .

क्या जरुरी की रहें हम लीन मन की अतियों में,

सर-पाँव को प्रेम-भाव से दिशा भी तो दे सकता है मध्य-प्रदेश . . .

मध्य-पान और मध्य-निषेध के फलसफे उन्हें हो मुबारिक,

"अति सर्वत्र वर्जियेते" के सिद्धांत को अपना सकता है मध्य-प्रदेश . . .

जात-पात के भेद-भाव भुला कर, मीष-सामिष को एक सा पचा कर,

उदार भाव से उदर की ही भाँती सब कुछ अपना सकता है मध्य-प्रदेश . . .

रख सबको एकजुट, कर सफल संचालन,

मध्य में होकर भी केंद्रीय हो सकता है मध्य-प्रदेश . . .

चलो हो जाओ तुम सब मिलकर चाक-चौबंद और स्वस्थ,

की बिन तुम्हारे बदले बदल न सकेगा ये मध्य-प्रदेश . . .!!



नवम्बर १, २०११ को मद्य-प्रदेश ने अपनी स्थापना के ५५ वर्ष पुरे किये


Sunday, November 20, 2011

मन मेरे कमीन ने


चुप हो जाऊं
जो मैं
तो बातें करने लगती है
तनहाइयाँ मेरी . . .,

मन मेरे कमीन ने
आज फिर
घेर रखा है मुझे . .!!

क्यूँ बैठे हो
तुम यूँ मुहँ लटकाए . .?

क्या किसी उदासी ने
आज फिर घेर रखा है तुम्हें . .?


क्यूँ आज फिर
हवाएँ हैं रुआँसी . .?

क्या किसी मदहोशी ने
आज फिर घेर रखा है तुम्हें . .?


कुछ तो सुराग होगा
तुम्हारी इस ख़ामोशी का . .?

क्या किसी बातूनी ने
आज फिर घेर रखा है तुम्हें . .?


दर्द है ये
या इम्तेहान किसी बेकसी का . .?

क्या किसी तमन्ना इंसानी ने
आज फिर घेर रखा है तुम्हें . .?


इलाज क्यूँ हो जिस्मानी
जब तकलीफ है मनमानी . .?

क्या किसी फितरत अनजानी ने
आज फिर घेर रखा है तुम्हें . .?


जवाब नहीं तुम्हारा
और
सवाली ठहराए जाते हैं 'मनीष' . .?

क्या किसी मक़सूद बेईमानी ने
आज फिर घेर रखा है तुम्हें . .?

मन मेरे कमीन ने आज फिर घेर रखा है मुझे . . .

Monday, November 14, 2011

असुरक्षा की भावना


नास्तिकता सदैव असुरक्षा की भावना से ग्रसित हो 
मर-मर कर अपना जीवन काटती है...
बेहतर हो की हम आस्तिकता से जी-जी कर अपना जीवन बिताएँ
अभी...

जी-जी कर छोड़ दे जो साथ ज़िन्दगी का
हो सकती उसकी कभी मौत नहीं
मर-मर कर छूटे जो हाथ ज़िन्दगी का
ज़िन्दगी उसकी कभी जिंदा थी ही नहीं

बर्बाद तो होना ही है एक दिन
फिर ये डर कैसा..?
क्यूँ न बर्बादी का जश्न मन फना हो जाएँ हम
क्या पता ये बर्बादी फिर आबाद हो न कभी

हर पल अवाक हुआ हूँ मैं ये देख
के ये नाकुछ सबकुछ हुआ तो हुआ कैसे..?
जाने क्या ढूंढता हूँ मैं..?
कहीं ये सबकुछ के नाकुछ हो जाने की तैय्यारी तो नहीं

क्या मिलेगा वो जो कभी खोया ही नहीं
क्या सोयेगा वो जो कभी जागा ही नहीं
खेल-तमाशे हैं ये सारे मन के
क्या मिटेगा वो जो कभी था ही नहीं

बस, के अब मैं अपनी ख्वाहिशों का गुलाम ना बनूँगा
करम करूँगा मोहब्बत से और खुलूस से
पे उनके हासिल पर ना कभी दम भरूँगा
रहूँगा ऐसे जैसे कभी था ही नहीं

सकल ध्यानी को नक्षत्रों से, तारों से, सितारों से
क्या लेना-देना हो सकता है अभी..?
वो सद्चितानंद
चाहे गुरु शुक्र हो या हो शनि रवि

वाह...क्या मजा है यूँ तेरे दिल का टुकड़ा होने में
नहीं जानता था क्या लुत्फ़ है छिपा यूँ खुद को खोने में
हमारी इस दीवानगी पर अल्लाह करे किसी की नज़र ना लगे
तदबीर हमारी तकदीर ना होने पाए कभी

है जैसा वैसा रहे
अंदाज़ ना बदले वो अपना कभी

जीवन असुरक्षित है...और सदा रहेगा
जन्म, स्कूल, कॉलेज, शादी, बच्चे...उफ़..

मृत्यु में घनी सुरक्षा है...और सदा रहेगी
नो लाइफ - नो टेंशन...आह..

..और फिर भी लोग टूटे पड़े हैं लाइफ इंश्योर करने में
ये पालिसी, वो इन्वेस्टमेंट
वो प्लान, ये एडजस्टमेंट...ओह्ह..

मर-मर कर जीने की ये कोई नई कला है शायद..
सीखा रहे टीवी पर आ-आ कर सचिन, अमिताभ और धनि

वो ये देगा, वो वो देगा
इंसान हर शक्ल में बस भिखारी ही रेगा
माँगेगा भी तो टिन-पत्थर ही
खुदा माँग खुदाई से खुद के लिए मुसीबत भला कोई लेगा कभी

काश...के हम सूरज से सीख पाते
सब के लिए एक बराबर रोशन होना
काश...के हम देख पाते अपने-परायों की सीमाओं के परे
जान लेते की ज़िन्दगी में कोई काश था ही नहीं कभी

या तो लौ लग गयी या अँधेरा है अभी
या तो होश आ गया या बेहोशी है अभी
आधा-अधुरा यहाँ कुछ भी नहीं ए दोस्त
हकीकत नज़र आ गयी या सपना है अभी

सपने आँखें नहीं मन देखता है
अपने बोझ वो दूजों पर फेंकता है
मानव लेकिन रजामंद है मन की गुलामी में
इसीलिए तो 'मनीष' मैन को बैड केस कहता है अभी...

Sunday, November 13, 2011

क्रमशः

यहाँ...
प्यार तो है
पर
पैसा नहीं है...

वहाँ...
पैसा तो है
पर
प्यार नहीं है...

याने के

जो है...
जैसा है...
जितना है...

वो हमें
स्वीकार नहीं है...

ठीक भी है.,

की
अधूरेपन में आती कभी
संतुष्टि की डकार नहीं है...

जाने क्यूँ पूरा करता
हमें हमारा यार नहीं है...

सम्पूर्णता होती अद्वैत 'मनीष'
दो कर देखने से होता बेड़ा पार नहीं है...

दोनों को ही पाने की
तेरे दिल में जो लगी है अगन

तो ये भी देख की
तुझमें ही हो रहा हर द्वैत का मिलन...

या फिर
दुखी रह तू ये मान

की
प्यार तो है
पर
पैसा नहीं है...

करता रह तू ये उन्मान

की
पैसा तो है
पर
प्यार नहीं है...

जैसे.,

खुशबु तो है
पर
यार नहीं है...

क्रमशः ये भी जान लेकिन

की
शुक्र होता है रोज
होता रोज मगर शुक्रवार नहीं है...

Tuesday, November 1, 2011

खुशबु तो है पर यार नहीं है..



...and ever has it been known that love knows not its own depth until the hour of separation.

    Khalil Gibran

कुछ कहने को नहीं है
सच सुनने सा नहीं है
महसूस करता हूँ मैं क्या, रात और दिन
देखन वाला आज दिलदार नहीं है...
खुशबु तो है 
पर 
यार नहीं है...

पीने को पी रहा हूँ मैं तुझे हर पल हर क्षण  
जीने में मगर तेरी वो आह, तेरी वो सिसकार नहीं है...
खुशबु तो है 
पर 
यार नहीं है...

करने को कर रहा हूँ मैं सबकुछ
होता कुछ भी मगर अब मुझसे असरदार नहीं है...
खुशबु तो है
पर
यार नहीं है...

तू भी तो तड़पता है मेरे लिए, मुझसा ही
क्यूँ मुझमें मगर तेरा वो सुकून, तेरा वो क़रार नहीं है...
खुशबु तो है
पर
यार नहीं है...

रख रखा है मैंने भी तुम्हे अपने दिल में, तुम्हारी ही तरह
बस जाएँ जहाँ जाकर हम, ऐसा कोई संसार नहीं है...
खुशबु तो है
पर
यार नहीं है...

मर कर भी तो जल न पाएंगी रूहें हमारी
जल जाने को जिस्म इसलिए ही बेक़रार नहीं है...
खुशबु तो है
पर
यार नहीं है...