Sunday, January 29, 2012

खंजर


दिल में
इस कदर गहरे
जाकर पैठ गया है
ये खंजर...
की
निकालना भी चाहे जो कोई
इस ना-मुराद को अपनी जोश भरी उम्मीदगी से
तो
ना-उम्मीद कर देता है कमबख्त निकालने वाले को ही...
पैदा कर लेता है
कुछ ऐसा मंज़र...
की
हरा-भरा दिल भी हो जाता है बंजर...
यकीनन.,
मेरी जान लेकर ही
दम लेगा ये खंजर...
ये खंजर इश्क का है,
ईमान का है
और है इबादत का..,
बड़ी उम्मीदों से
तराशा था मैंने इसे
तमाम नफरतों,
तमाम बेईमानियों
और तमाम नास्तिक्ताओं के चलते...
सोचता था..,
किसी ना किसी को तो बदलना ही होगा ये मंज़र
तो फिर मैं ही क्यूँ नहीं..??
नहीं जानता था..,
की
शुरुआत मुझसे ही करेगा ये खंजर...
ये मुल्क,
ये जहां,
और ये जहाँवाले तो खैर
बालिश्त भर भी ना बदलेंगे
पर.,
मुझे बदल कर रख छोड़ेगा ये खंजर...
हाँ.,
कुछ बदल जाएगा मेरे ही अन्दर...
अब.,
ना कोई आरजू है,
ना जुस्तजू है
और ना ही अब मंजिल है कोई.,
बस..एक गुफ्तगू है
जो करता रहता है मेरा मन खुद से ही
समझ खुद को जाने कहाँ का सिकंदर...
क्या सचमुच ही
मेरा "मैं" ले गया ये खंजर...??
या
ये भी महज एक ख्याल है बस...??

Friday, January 20, 2012

"तुम बहुsssत खूबसूरत हो"

"तुम बहुsssत खूबसूरत हो"

- ये बात मैं तुम्हें देखे बिना भी कह सकता हूँ...

क्योंकि.,

मैंने तुम्हारा मासूम दिल देखा है...

और.,

ऐसे दिल का मालिक खुदा होता है...

खुदा फिर खुदा है...

हर शक्ल में वो ही बसा है...

हाँ ;

वो हमारी बदशक्ली में भी बला का खूबसूरत है...

ठीक वैसे ही जैसे की तुम...

हाँ तुम...!!

"तुम बेsssहद खूबसूरत हो........"

Thursday, January 19, 2012

निर्मल तेरे दरबार में...


मंगतों की भीड़ देखी हमने आज

निर्मल तेरे दरबार में...

मल-मल के नहा रहे थे लोग

वासनाओं के संसार में...



मखमल के मल से कर रहा था तू

लोगों को मालामाल

नीर बहा रहे थे राम

निर्मल तेरे दरबार में...



निरमा से भी होवे ना साफ़

ऐसा कलुषित हो चूका है तन ये तेरा

मन मंद-मंद है मुस्काए

निर्मल तेरे दरबार में...



दर-दर भटके है ये मन

छोड़ के अपना घर-द्वार

बार जो खुला है मदहोशी का

निर्मल तेरे दरबार में...



अब भी वक़्त है जाग जा

ओ पंजाब दे पुत्तर

आ पहुंचा है काल का पंजा

निर्मल तेरे दरबार में...
 
Man is bad case....isnt it?

Wednesday, January 11, 2012

आपने ही...


आपने ही

जी हाँ !!
आपने ही खो दिया है अपना बचपन
ख्याली जहाज़ों को तैरा-तैराकर.,

अपनी ढाई सौ ग्राम अक्ल को
जरुरत से ज्यादा लगा-लगाकर.,

भूत काल के भूतों को
अपने सीने से चिपका-चिपकाकर.,

भविष्य के सुनहरे सपने
सजा-सजाकर.,

कुछ सपने पुरे भी हुए,
कुछ ख्वाब अधूरे भी रहे,

हर अधुरा ख्वाब
प्रेत बन गया
आज का,
हर पूरा स्वप्न
एक नया स्वप्न दे गया
कल का,

चक्कर ये ता-उम्र चलता रहा
यूँ ही...
अपने अलावा सबको दोष दिया
आपने बढ़ा-चढ़ाकर
यूँ ही.,

फिर रो-रोकर
आपने अपनी उम्र भी बढ़ा ली
यूँ ही...
और
अब शिकायत है आपको वक़्त से...वो भी
यूँ ही...

की..,

"बचपन की वो अमीरी
ना जाने कहाँ खो गयी..
..
..
..
जब पानी में हमारे भी
जहाज चला करते थे...!!"

वर्तमान में आइये हुजुर..!!
नैय्या आपकी तिरेगी जरुर..!!

मैं मगरूर सही
पर
करता हूँ ये निवेदन हाथ जोड़-जुड़ाकर.,

फिर ना कहना
की
चल दिए 'मनीष' हम पर हँस-हँसाकर.,

With utmost love
I request You to take up the responsibility to wake up yourself to the bliss of being in the 
Now & Here...
pleeeeeeeez...
pleeeeeez...
pleeeeez...
pleeeez...
pleeez...
pleez...
plez...
plz...
plz
pl
z


Wednesday, January 4, 2012

What's in the name..?

Many a times it has occurred to me that may be i should change the name of my blog from MAN IS BAD KASE to MANn IS BAD KASE because that is what i actually mean when i say that man is bad case.

i mean mann or mind is the culprit over here which allows not man to be what he really is. In fact, that is the way my name manish gets pronounced too but that would also mean that i am making 'mann' or 'mind' more powerful than 'man', which in reality, is not the case.

My 'mann' or mind cannot be my 'ish' or god, if i wish so. Not just by wishing so but by willing so.

i have to shoulder my responsibility towards my own life in an honest way.

i have to stop being an escapist.

i am in deeds answerable to HIM who is indeed HE in me.

Moreover, what's in the name?
This blog will be what it is.

Add an honest 'H' to the 'IS'
HIS if you prefix
ISH if you suffix
Delete an escapist 'E' from the 'KASE'
KAS is to tighten yourself in His matrix
Now,
Read it aloud
What you get to hear is my name
and,
Even if you don't i am game
No-thing in me to be proud about
Nope, i am not an ace
Yup..
MAN IS BAD KASE
Yes!!
He is under the control of mind...as of now.  

Sunday, January 1, 2012

ये साल अच्छा है...

देखिये पाते हैं कुशाक बुतों [man made gods] से क्या 'कैफ'
एक ब्राह्मण ने कहा है के ये साल अच्छा है...



सब कुछ वही होकर भी
नया-नया सा लगता है,
इश्क हुआ जबसे
हर पल नया-नया सा लगता है..

जाने कहाँ गयी
वो कल की कल-कल,
अक्स ये मेरा
नया-नया सा लगता है..

वही सूरत है
और सीरत भी वही,
शख्स ये मगर
नया-नया सा लगता है..

ना मंजिलें बदली
ना राही और ना ही रास्ता,
नक्श फिर भी
नया-नया सा लगता है..

तुम मैं हूँ
और मैं तुम,
रक्स ये हमारा
नया-नया सा लगता है..

बदले-बदले से
नज़र आते हैं 'मनीष',
नुक्स ये उनका
नया-नया सा लगता है..