Sunday, November 1, 2009

MUSIC


तरह - तरह के गीत हैं,
तरह - तरह के राग,
बस उतना ही संगीत है,
जितनी तुझमे "आग"...


...और ये आग ऐसी है जनाब के जो लगाये न लगे और बुझाए न बुझे I इस आग को जिंदा रखना कितना मुश्किल है...ये आप जनाब इशरत आफरीन से पूछें तो वो आपको बताएँगे की अपनी आग को जिंदा रखना उतना ही मुश्किल है जैसे पत्थर बीच आईना रखना I ये आग है सच्चे, बेशर्त, बेइन्तेहाँ इश्क की आग और इस वक़्त में इसे जिलाए रखना ऐसा ही है जैसे तेज़ हवाओं में किसी दिए को जलाये रखना...


एक लौ है ज़िन्दगी मेरी,
बुझती जाती है हर पल,
जला लूँ जो खुद को
तो शायद आ जाए सुकून...


अब मौसिकी को ही लीजिये हुजुर...कानों से संगीत सुनने वाले तो यहाँ बेशुमार हैं पर दिल से संगीत सुनने वाले बिरले ही हैं I इनकी पहचान करना बहुत आसन है मालिक..!! बस ज़रा दिल से देखने वाला चाहिए I यूँ समझिये के ये कानों से सुनने वाले सिर्फ दिखाने भर के लिए सुनते हैं I इन्हें संगीत खरीद कर सुनने में बहुत ही दिक्कत होती है I ये लोग बस मुफ्त के संगीत की जुगाड़ में रहते हैं I बहुत हिम्मत अगर आ भी गयी तो बस नकली ही खरीद पाते हैं I इन् लोगो को बस एक ही झलक सुन कर पता लग जाता है की ये संगीत इनके काम का है या नहीं I ये लोग गाने की कीमत तो बखूबी जानते हैं पर मूल्य नहीं...ये यह भी बखूबी जानते हैं के कौनसा संगीतकार अच्छा है और कौन बुरा...फिर भले ही खुद इन्होने आज तक कोई धुन या खुद की कोई सिटी ना रची हो I किसी कमनसीब मौसिकार की इजाद पर टिका-टिप्पणी या मज़म्मत करना इनका शौक़ होता है I बहुत डरे हुए होते हैं ये लोग इस बात से की कहीं इनकी ना-पसंदगी का संगीत इनके कानों पर पड़ गया तो शायद इनके कान ही ना फट जाएँ I संगीत साधको को ये अपने ही तई लूटेरा समझते हैं और इन् सब खयालो की तह में होती है दुसरो का शोषण करने और अपना पैसा बचा लेने की इंसानी प्रवृत्ति..


इंसान हूँ तो इंसान से ही तो मोहब्बत करूँगा,
अब ये बात और के नफरत भी साथ चली आती है....
डूबने से डरता भी हूँ और रखता हूँ तैरने का शौक़ भी,
भला हो नाखुदा का...ना डूबा, ना तैर ही सका और फिर भी लाश हूँ.....


ये लोग आपकी इस दुनिया में बहुतायात में मिलेंगे I ये लोग आपको अपने मोबाइल में गाने डाउनलोड करवाते हुए या अपने कंप्यूटर में किलो के हिसाब से गाने भरते हुए मिल जायेंगे I संगीत का रस लेने की इच्छा तो इनमे मौलिक ही होती है और संगीत सुनने-सुनाने में इन्हें मजा भी बहुत आता है और अपने मजे को दुगुना करने के लिए ये अन्याय करने में भी ज़रा कोताही नहीं बरतते I उल्टे मुफ्त का संगीत सुनने को ये अपना जन्म-सिद्ध अधिकार समझते हैं I इनका मानना होता है की किसी की रचना सुनकर और उस रचना की तारीफ़ कर ये असल में रचनाकार पर एक बहुत ही बड़ा एहसान कर रहे हैं...वर्ना कौन सुनता है आजकल ?


कहूँ किसे और सुनता कौन है...???
लिखूं किसे और पढता कौन है...???
मदहोश हैं जो कल की कल्पनाओं में..!!!
आज और अब से उनका रिश्ता कब है...???


ऐसे लोगों के अन्दर की आग इश्क की ना होकर हवस की, स्वार्थ की, कपट की अंधी लपट बन जाती है जो आज नहीं तो कल इन्हें ही जला कर राख कर देती है I ज़रा गौर से झांकियेगा इनके जीवन में और निश्चित रूप से आप पाएंगे.. दौलत को ही खुदा माने हुए, गहरे अवसाद, दुःख और अकेलेपन की छाया से घिरा हुआ एक खौफज़दा मन...


कहते हैं वो क्यां सुने हम तुम्हारी,
शगल तुम्हारा और आफत हमारी..!!
कौन है ये जिसे सुनने तक में दुश्वारी..??
मन इश हो तो दुःख है लाचारी...


फिर कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें संगीत से इश्क है, जिन्हें इस काएनात में हर जगह हर सूं बस संगीत ही सुनाई देता है....क्यों..?? क्योकि ये कानों से नहीं दिल से संगीत को सुनते हैं या यूँ कहें की अपनी आत्मा में बसा लेते हैं I ऐसे लोग आपको कोयल की कुक हो या चिड़ियों का चहचहाना, नदी का कल-कल बहना हो या बारिश की बूंदों की टप-टप, झींगुर की चिकि-मिकी हो या रात में सन्नाटे की गूँज, बच्चों का तुतलाना हो या ग़ालिब का कलाम, बिल्ली की म्याऊँ हो या शेर की दहाड़, बर्तनों की टन-टन हो या पायलों की छम-छम, बादलों का गर्जन हो या चुडियो की खन-खन.........हर जगह हर इन्हें बस संगीत ही सुनाई पड़ता है I इन् लोगों के लिए संगीत एक अमूल्य धरोहर होता है, ये लोग संगीत के सृजन करने वाले को खुदा का करिश्मा मानते हैं और ऊसके प्रति अगाध श्रद्धा से भरे होते हैं I


जानता हूँ...है जरुरत के मुताबिक,
रईस हूँ...
गरीब की अमीरी है दिल से मुतालिक,
पोशीदा है ख्वाहिशों की समझ में,
आप ही कहिये जनाब...
ज़माना या के मैं नासमझ हूँ...!!
जानता हूँ... है जरुरत के मुताबिक,
रईस हूँ...



जब कोई रचना इन्हें रास नहीं आती है तो ये लोग अपने-आपको या अपनी समझ को ही दोषी या छोटा मानते हैं I ये लोग हर नए तजुर्बे के प्रति स्वागत से और हर पुराने आविष्कार के प्रति अहो भाव से भरे होते हैं I अपने शौक़ के लिए ये दूसरो के शोषण का ख्याल तक इनके ज़हन में नहीं आता I ये दिल के अमीर लोग दुनियावी तौर से गरीब भी हुए तो भी चोरी नहीं कर सकते....हाँ ये हो सकता है की ये लोग आपके दौलतखाने पर तशरीफ़ लाकर आपसे कुछ असल संगीत सुनने की मांग कर बैठें I उस वक़्त जानियेगा की कोई बहुत ही गहरी मज़बूरी के तहत ये आपके यहाँ पधारे हैं और पेश कीजियेगा वो ही जो सच में ही आपका है I ऐसे लोग संगीत को खुदा जानते हैं और सच्चे इश्क की सच्ची आग को महसूस करना हो तो कुछ वक़्त इनके साथ जरुर बिताईएगा और आप पायेंगे एक ऐसा साधू, एक ऐसा फ़कीर जो जीवन रुपी साधना में दिन-रात-सुबह-शाम मस्ती से लीन है....इस सहज मगर अटूट विश्वास और सबुरी के साथ की एक ओमकार, एक अनाहत नाद, एक स्वयम्भू टंकार ही इस जीवन ऊर्जा का अमूल्य स्रोत है.........


बचा है बस आखिरी ये सवाल के में कौन हूँ..??
पि लूँ कुछ कड़वे घूंट तो जी लूँ..!!
जान लूँ..
के मैं ये भी हूँ और वो भी हूँ ...

No comments:

Post a Comment

Please Feel Free To Comment....please do....