Thursday, July 28, 2011

साईं की हूँक


अफ़सोस..
ये नहीं,
की तुम मुझे समझ न पाईं...
अफ़सोस..
ये भी नहीं,
की तुम मुझे जान ना पाईं...
अफ़सोस..
ये,
की मेरी जान भी मेरी हो ना पाई...
बेशक..
कसूर मेरा ही है...
अफ़सोस..
के आज फिर मैंने अपनी जान है गवाई...
बस कर भाई..
बस कर..
कब तक तू
दूसरों से ही इश्क फरमाएगा...?
कब तक तू
यूँ ही अपनी जग-हँसाई करवाएगा...?
कभी तो.,
दिल-ओ-जान से इश्क लड़ा
तू
अपनी जान-ए-जाँ के साथ...!!
कभी तो.,
एक हो जा
तू
अपनी जानशीं के साथ...!!
चल अकेला-चल अकेला
की आज फिर साईं ने हूँक है उठाई...
बड़े दिनों के बाद.,
आज फिर मुझे अपनी ही याद आई...

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