Sunday, November 20, 2011

मन मेरे कमीन ने


चुप हो जाऊं
जो मैं
तो बातें करने लगती है
तनहाइयाँ मेरी . . .,

मन मेरे कमीन ने
आज फिर
घेर रखा है मुझे . .!!

क्यूँ बैठे हो
तुम यूँ मुहँ लटकाए . .?

क्या किसी उदासी ने
आज फिर घेर रखा है तुम्हें . .?


क्यूँ आज फिर
हवाएँ हैं रुआँसी . .?

क्या किसी मदहोशी ने
आज फिर घेर रखा है तुम्हें . .?


कुछ तो सुराग होगा
तुम्हारी इस ख़ामोशी का . .?

क्या किसी बातूनी ने
आज फिर घेर रखा है तुम्हें . .?


दर्द है ये
या इम्तेहान किसी बेकसी का . .?

क्या किसी तमन्ना इंसानी ने
आज फिर घेर रखा है तुम्हें . .?


इलाज क्यूँ हो जिस्मानी
जब तकलीफ है मनमानी . .?

क्या किसी फितरत अनजानी ने
आज फिर घेर रखा है तुम्हें . .?


जवाब नहीं तुम्हारा
और
सवाली ठहराए जाते हैं 'मनीष' . .?

क्या किसी मक़सूद बेईमानी ने
आज फिर घेर रखा है तुम्हें . .?

मन मेरे कमीन ने आज फिर घेर रखा है मुझे . . .

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