Wednesday, February 8, 2012

बेवडा इश्क का


खोल दे
खोल दे ना...
बोतल तू तेरी...
पिला दे
पिला दे ना...
वाइन तू तेरी...
लगा दे ना मुहँ से मेरे
वो स्ट्राबेरी वो चेरी...

क्या करूँ...
के  पिला-पिला कर
तुने मुझे बेवडा बना दिया
नशे का मुझे चस्का लगा दिया
कुछ ऐसे अदा से पिलाया है इश्क तुने
की सारा का सारा आलम हिला दिया...
कर ले गुस्सा
मार दे मुक्का
तोड़ दे मेरी नाक
काट ले मेरी जुबान
खींच ले मेरे कान
उधेड़ डाल मेरी चमड़ी
पर पीने दे मेरी आँखों को
तेरी हर एक अदा
की
तेरी इन्ही अदाओं ने तो
मुझ नाचीज को दीवाना बना दिया...
पीने दे मुझे हर लम्हा
मेरी आखरी साँस तक
की फिर ना दुबारा पीने की तलब लगे कभी
की फिर ना दुबारा जाग के कह सकूँ कभी
की..,
क्यूँ तुने मुझे खुद से जुदा बना दिया
क्यूँ तुने हमें दो जिस्म एक जान बना दिया
क्यूँ तुने ये दो-आलम का जहाँ बना दिया...??
क्यूँ..?
कब..?
कहाँ..
ख़त्म कर दे ये सारे सवाल
की सुना है हमने
की इश्क में कोई क्यूँ नहीं होता
होता है जो बस...इश है होता !!
देखा ना !!
मन मेरे 'मनीष' ने
आज फिर मुझे उलझा दिया
मेरे साथ तुम्हें भी
अपना सा बना दिया....!!

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