Thursday, May 12, 2022

Tapti Mill; a fair enough fair

*ताप्ती मिल - एक मेला* ताप्ती नदी के तट पर एक गाँव था अलबेला वो गाँव तहसील हुआ, शहर हुआ अब ज़िला उस तट पर मुमताज़ बेगम का था एक हमाम ठंडे-गरम पानी के रेले, नक़्क़ाशीयाँ धूम-धाम सैफ़ी कॉलेज के पास पानी-पूरी का एक ठेला चटखारे ले लेकर खाते थे, मजनूँ और लैला क़िला था सो खंडहर हो चुका, बादशाही तमाम ताप्ती अब भी नज़ारे तकती है, सियासत अंजाम फूलवारा चौक से गलियाँ बढ़ती हैं शनिश्चरी शनवारे की तरफ़ चारों और एक दीवार है, जामा मस्जिद मिलन कमल की बरफ़ गांधी चौक पर वाहनों की क़तार के बीचोंबीच लगता था मेला दुपहिया जान की सीट पर कोई आशिक़ न बैठा कभी अकेला टांगा स्टैंड पर घोड़ों की टापें देतीं थी उनके आ जाने की खनक बात ये तब की है जब बात-बात पर नहीं जाते थे हम सनक अब ना वो नौंक-झौंक है ना पीठ पर पड़ने वाला धेला बस एक सरपट दौड़ है, कोई नहला है तो कोई दहला सेवा-सदन को छूता हुआ सुभाष स्कूल का वो मैदान हर रविवार क्रिकेट का सैलाब लिए बच्चे-बड़े-नादान सिंधी बस्ती होकर गुज़रता था बहादरपुर का चेला इंदिरा की तलवार का ज़ख़्म जिसने कभी नहीं झेला बाग मरिचिका में काँक्रीट का एक जहाज़ अनजान कीर साहब के बंगले में हम अल्हड़ से हुए जवान शाहपुर की और मुड़ता है बुरहानउद्दिन साहब का सिलसिला बुरहानपर की शान है इस दरगाह का अन्दाज़ और शीला नेहरु से हुआ मुतासीर ताप्ती मिल का एक मेला लालबाग में बना था कभी बुरहानपुर स्टेशन पहला ख़ूनी भंडारा बस नाम नहीं, राज था इसमें गहरा मीठे-मीठे पाक-साफ़ पानी में भूलभुलैया का पहरा समझ सको तो जान लो, अनेकता में एकता का झमेला द्वैत के देतों को वैसे भी अद्वैत का ज्ञान नहीं जाता पहला Burhanpur Tapti Mill का है secular एक चेहरा ये वो प्रांगण है जहाँ ना कुछ तेरा है ना मेरा उषा को किरणों ने घेरा बना लिया जो वहीं पर डेरा जाग उठी जो दुनिया सारी जब जागो तो तभी सवेरा

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