ना मैं योगी
ना मैं भोगी
ना मैं रोगी
ना मैं द्रोही
मैं तो बस एक प्रेमी रे
कृष्ण कृपा और कृष्ण इच्छा
मोहे जो चाहे वो बनाए
कभी भूखा
कभी प्यासा
कभी आशा
कभी निराशा
प्रेम अद्वैत के दर्शन कराए
प्रेम ही बनाए अद्वीतीय
प्रेम ही खोजी बनाए
प्रेम ही करे है तृप्त
प्रेम प्रेम से प्रेम को अपनाए
प्रेम ही प्रेम से प्रेम को करे संतुष्ट
प्रेम महज एक भावना नहीं
प्रेम महज एक ख्याल नहीं
प्रेम महज किताबी ज्ञान नहीं
प्रेम अवधूत प्रेम अदभुत
प्रेम प्रयोजन प्रेम संयोजन
प्रेम वर्तमान भविष्य भूत
प्रेम ही कर्म करवाए
प्रेम न माँगे फल या सबूत
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ,
पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का,
पढ़े सो पंडित होय ।।
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