तुम्हारी समझदारी में वो समझ नहीं
जो दीवानगी मेरे दीवानेपन में है
कामयाबी तुम्हारी उस तरह नहीं दमकती
चमकती जिस अदा से मेरी मुफलिसी है...
तुम्हारी ज़िन्दगी ज़िन्दगी
और हमारी ज़िन्दगी दोज़ख..!!
सोचता हूँ दर्द से
मेरी कोई अय्यारी तो नहीं..??
तुम करो तो मोहब्बत
हम करें तो हवस..!!
जिस्म तुम पर कुछ
जियादा ही भारी तो नहीं..??
तुम्हारी मन्नतें लाज़मी
और हमारी दुआएं खाली..!!
मांगने से ही
अल्लाह को कोई दुश्वारी तो नहीं..??
जमा किये जाते हो
जो यूँ तुम सारी दौलतें..!!
मौत को दगा दे जाने की
बाखुदा कोई तैय्यारी तो नहीं..??
गाफ़िल हैं दिन-रात
जो तरक्की के ख्यालों में..!!
तसल्ली ये हमारी
कोई बिमारी तो नहीं..??
सब कुछ हासिल करके
कैसा ये सूनापन..!!
ज़िन्दगी कमबख्त
कर गई कोई गद्दारी तो नहीं..??
देख अपना जनाज़ा
कल बोल उठे 'मनीष'..!!
बाकी रह गई दिल में
तमन्नाओं की कोई गुनाहगारी तो नहीं..??
Saturday, May 8, 2010
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तुम्हारी समझदारी में वो समझ नहीं
ReplyDeleteजो दीवानगी मेरे दीवानेपन में है
कामयाबी तुम्हारी उस तरह नहीं दमकती
चमकती जिस अदा से मेरी मुफलिसी है...
gr8