Sunday, November 20, 2022

वक्त ने किया क्या है..??

https://youtu.be/mg2svnhYeEE


धैर्य से सुनता तो हूं मैं उसकी हर बात पर समझ नहीं पाता मैं उसके नकारात्मकता से भरे ख्यालात। यकीन ही नहीं कर पाता मैं उसके नास्तिक विचारों पर। सम्मान उसकी रूह का करता हूं मैं दिल-ओ-जान से हर दम पर उसकी सोच-समझ से उसके तादात्म्य का मैं कतई सम्मान नहीं कर पाता। 
लगता है जैसे उसका मन रूपी पुजारी उसी के बदन रूपी मंदिर में रचे-बसे उसके ही आत्मा रूपी परमात्मा पर सदियों से राज करता रहा है। ये शासन जैसे अब शोषण करने लगा है उसके मनमंदिर पर। जाने किस कुपोषण का शिकार हुई होगी उसकी रूह की अपने ही पुजारी की गुलाम बन के रहना उसने स्वयं ही कुबूल कर लिया और मानने लगी वो सब बातें जो उसकी खुद की कभी थी ही नहीं। पता नही चुनाव गलत था, विचार गलत था या विश्वास गलत था पर दोष तो बेचारे समय को ही दिया गया की *समय गलत था*। 
क्या वाकई समय कभी सही या गलत होता है?
समय तो समय ही है और समय ही होता है
समय अनुसार तो मनमंदिर अपने रंग-रूप बदलता है
रूह तो वही रहती है जो वो थी और जैसी हमें मिली थी फिर भी ना जाने क्यों मानव मन वक्त को सीतमगर मान दिन-रात घड़ियाली आंसू बहाता है और रोता फिरता है यहां-वहां।
गुनहगार खुद है और दोषारोपण वक्त पर !! 
वाह रे, ओह मेरे अपने धूर्त और चालाक पुजारी!
क्या खूब लीला रची है तूने अपने मनमंदिर के स्वामित्व को बचाने के लिए..!!
अपनी ही रूह का स्वयंभू स्वामी बन जाने के लिए..!!

जय हो 😜😄😜

Man is Bad Case, isn't it?

यही तो तुम्हारे मन की तकलीफ है की मैं वो नहीं समझता जो वो चाहता है के मैं उसकी सोच-समझ के अनुसार सोचूँ-समझूं। तुम्हारा मन तुम्हें तो अपना गुलाम बना ही चुका है ( या यूं कहूं की तुमने ही उसे अपनी रूह पर राज करने का अधिकार दिया है) और अब मुझे भी अपना कायल करना चाहता है (कभी हुस्न के जलवे दिखा कर तो कभी मेरी ही इच्छाओं के उन्मादी कलेवे खिला कर)। इसी को तो मायाजाल कहते हैं मेरे प्रियतम 😄

तुम्हारा रिश्ता तुम्हारे अपने मन से इतना गहरा है की तुम्हें लगने लगा है की तुम्हारे मन-मस्तिष्क की सोच तुम्हें अब अपनी ही सोच-समझ लगने लगी है। एक ऐसा अनोखा तादात्म्य स्थापित कर लिया है की उसपर किए गए कटाक्ष अब तुम्हें तुम पर किए गए वार लगते हैं। हद ये की तुम्हारे अपने मन-मस्तिष्क से इतने पुराने और गहरे रिश्ते के आगे अब सदियों पुराना तुम्हारी आत्मा का प्रेम का रिश्ता भी फीका पड़ने लगा है। 

प्रेम जिंदा है दिल में पर मन-मस्तिष्क की कैद में है
परिंदा उड़ना तो चाहता है पर उड़ना भूल सा गया है

Blog पर भी उसी वजह से पोस्ट करता हूं जिस प्रेम और करुणा की वजह से तुम्हें post करता हूं। 

हम सभी मन के मारे हुए परिंदे हैं जो दोष समय या जीवन या जीवनसाथी या लोगों को या किस्मत को देते फिरते हैं और अपने करम या चुनाव या सोच या मन के स्वामित्व की तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं देते।

खुद को ही नही जानते हम और चाहते हैं की दुनिया हमें समझे। 
क्या गजब का self-centred बचपना है..!! 
क्या अहंकार है..!!

तीन ही तरीके आते हैं हमारे मन को अपनी चाल चलने के:
पहला, जो हमारे मन ने कभी अपनाया था (Ignore या नजरंदाज करने का)
दूसरा, जो हमारा मन अक्सर अपनाता है (मजाक या माखौल उड़ाने का - to Laugh or to ridicule)
तीसरा, जो हमारा मन जल्द ही अपनाएगा (रूठने का या लड़ने का - to create tantrum or to fight)
अंत में अंततः हम अपने ही मन पर विजय प्राप्त कर लेते हैं ।
सतत ध्यानास्थ रहिए..
अपने मन को आपकी चेतना को दिग्भ्रमित करने का अधिकार न दीजिए
सदैव चौकन्ने रहिए..
चर्चा कीजिए उस विषय वस्तु की जिस पर हम मित्रवत चर्चारत हैं
अभी और यहीं में रहिए...

सद्चिदानंद भव:
ॐ नमः शिवाय ॐ 

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