Saturday, January 19, 2013

साड्डा साड्डा हक ऐत्थे ऐत्थे रख ...

तेरी ये सिमित दृष्टी 
तेरा ये काल्पनिक दृष्टिकोण 
तेरे ही पास रख ओ दैनिक भास्करी ...
तू भास्कर नहीं सच्चा 
तेरी सत्य के प्रति झूठी निष्ठा
समझता है बच्चा-बच्चा 
तू ना दे पाएगा
इस बार हमें गफलत का गच्चा ...
तुझमे खुद को जला लेने वाली आग ही नहीं 
न तुझमें जलाल है जनहित के वास्ते 
ना तुझमें जमाल है हुस्न का 
एक भक्षक क्या ख़ाक करेगा महिलाओं की सुरक्षा !!!
तू तो बस एक चतुर चाटुकार 
बस बातें करवा लो जिस से हजार 
मंसूबे तेरे खूब जानते हैं हम
हम युवाओं की युवा क्रान्ति का 
बनना चाहता है तू 
एक वाचाल लीडर 
एक भूचाली आवाज 
पर ,
बूढ़ा गया है तू अपने ही बड़प्पन के दंभ से 
आता है अब तुझे मचाना फ़कत 
एक कल्पेषित चीत्कार 
समाधान के नाम पर तेरे पास और कुछ तो है नहीं 
दूसरों को दोषी ठहराने की कला के सिवा 
या फिर 
आता है तुझे 
खुद को बदले बिना 
दूसरों से बदल जाने की चिरस्थायी उम्मीद रखना 
और वो भी जनकल्याण हेतु नहीं 
महज खुद के फाएदे, खुद की स्वार्थपूर्ति के लिए 
चल हट !!
दूर हो जा नज़र से तेरी विसाल लेकर ...
साड्डा हक 
ऐत्थे रख 
साड्डा साड्डा हक 
ऐत्थे ऐत्थे रख ...
हम असली प्रेम के है वारिस 
आये हैं वारसी मशाल लेकर ...
हटता  है या कहूँ मुश्किलकुशा से ...

या वारिस 
Man is bad case....isnt it?

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