Wednesday, January 30, 2013

"Unsolicited Invitation/advice to all & sundry" आप सादर निमंत्रित है


आदरणीय मृणाल पांडे जी,

आपके आज के दैनिक भास्करीय, भ्रष्ट्राचार और समाज संभंधित अभिव्यक्ति को ध्यानपूर्वक पढ़कर ये सहज रूप से प्रतीत होता है की आपको अपने भीतर जन्मे आत्मिक प्रश्नों के मनवांछित जवाब नहीं मिल रहे हैं और शायद इसीलिए आपके आज के अनुभवी आलेख का शीर्षक "जयपुर क्यों बना नंदी ग्राम?" नामक सवाल है।

महसूस हो रहा है की आप जैसी वयस्क, सफल एवं नामचीन लेखिका भी आज के इस वैश्वीकरण युग में वैष्णवीकरण से अत्याधिक प्रभावित हो हम जैसे तुच्छ पाठकों के लेखों को ध्यानपूर्वक ना पढ़ना तो खैर मुनासिब है पर लगता है की आप तक तो शायद स्वयं विष्णु देव के कथन नहीं पहुँच पा रहे हैं। क्या पता आप स्वामी नारायण के  इस कथन के मर्म तक पहुँच पाएंगी या नहीं पर फिर भी कोशिश कीजियेगा। " हर परस्थिति में प्रसन्न रहने की कला अगर सीखनी हो तो महादेव से बेहतर कोई गुरु नहीं। " जी हाँ ! मैं लाइफ ok  tv चैनल पर आ रहे 'देवों के देव - महादेव' की ही बात कर रहा हूँ। ये unsolicited advice नहीं अपितू एक अदना से महादेव भक्त का निवेदन है। कृपया इसे इसी तारतम्य में स्वीकार कर अनुग्रहित कीजियेगा। मेरा ये पत्र भी आपका अस्वीकार नहीं अपितु आपके मन के नकारात्मक, एकपक्षीय, अहंकारी सोच को जागृत करने का एक अतिसंवेदनशील प्रयास ही है। इस आशा के साथ की आप स्वयं गृहस्थ होते हुए भी ध्यानस्थ हो अपनी कुण्डलिनी को जागृत करने का समुचित प्रयास करेंगी।

सार्थक जवाब या तर्कसंगत मार्गदर्शन तो आज तक आपने भी हमारे उन 9 प्रश्नों के नहीं दिए हैं पण्डे जी। शायद इसलिए की हम जैसे भावनात्मक उफान की घड़ियों में बेतुक ढंग से बहे जा रहे अवयस्क नौजवान आपके भारी-भरकम जवाब क्या ख़ाक समझ सकेंगे। ठीक है, यही सोच है आपकी अगर तो अल्लाह निगेहबान आपको मुबारक हो।

हकीकत आपको फुरसती टिपण्णी ही लगेंगी महोदया जब तक आप समाज की ना सिर्फ शाखाओं से, फलों से, फूलों से, तनों से अपितु धरती माँ की गोद में समायी जड़ों से भी भली-भाँती वाकिफ नहीं हो जातीं। जी हाँ ! इसी परिहासपूर्ण प्रवृत्ति में ये उपहासपूर्ण सत्य की झलक छिपी हुई है की भ्रष्टाचारी होकर ही ऐसे विकृत समाज में लक्ष्मीनारायण का वरदहस्त प्राप्त किया जा सकता है। दिल पर हाथ रखकर बोलिए की क्या और कोई वैदिक, सामजिक, ब्रह्म आचारी तरीका छोड़ा है आप सफलता के पुजारियों ने हमें सहजता से, सहिष्णुता से अपने पारम्पारिक पिछड़ेपन और गरीबी के तमगे से मुक्त होने के लिए? 

कड़वेपन से बोया गया कड़वा बीज कड़वी करुणा का पुट नहीं तो क्या आम रस लिए रहेगा मनमोहिनी जी?

जी हाँ ...इस सोच, इस दोयम दर्जे की मानसिकता का कोई धर्म नहीं, जात-पात नहीं, वर्ण नहीं, लिंग नहीं। हाँ ... ये देशव्यापी है और ये ख्याल हमारी नकारात्मकता का सूचक नहीं अपितु दर्द है एक घायल दिल का। जानते हैं की सम्पूर्ण तंत्र को बुलडोज करने की कोई आवशयकता कमस्कम अभी तो नहीं है पर ये भी सत्य है की इस तंत्र के अधिकतम अंग बेइमान हैं और भरोसे के लायक नहीं। हम अराजक या तानाशाह तरीका कतई अख्तियार नहीं करना चाहते पर साथ ही साथ हम ये भी जता देना चाहते हैं दुराचारी समाज के ठेकेदारों को, कार्यकर्ताओं को, पेशेवर दलालों को, वाक् चातुर्य पंडितों को, फतवा देने वाले मुल्लाओं को की हम डरपोक, कायर या नपुंसक भी नहीं की उनके दुराचारी प्रवृत्ति से जन्मे समाज की विकृतियों को ताउम्र सहता ही चले जायेंगे।

आप अगर इस आन्दोलन को सड़ते-गलते हुए वाकई नहीं देख सकतीं है तो खुले आम आइये आप भी इस आन्दोलन का हिस्सा बनिए। आप सादर निमंत्रित है हमें समानांतर मुहीम के सहज मार्ग पर अपनी रोशनी के नूर से प्रशस्त करने के लिए। हम आपका स्वागत करते हैं और विनंती करते हैं की आप आएँ और ना केवल हमारी भाषा को नाटकीय के बजाय सहज समावेशी व संयत, ज्यादा व्यापक, ज्यादा तर्कसंगत बनाने में बाकाएदा नेतृत्व करें। बदले में हम कोई पारिश्रमिक नहीं दे पायेंगे हम गरीब आपको। मिलेगा तो सिर्फ और सिर्फ धिक्कार ही धिक्कार आपको अपने ही पूर्वाग्रह से ग्रसित पूर्व असंख्य सहयोगियों से और आशीर्वाद गिने-चुने कर्मयोगियों से। हाँ, इतना जरुर होगा की नवाजेंगे आपको फिर ख्वाजा गरीब नवाज़।

बोलिए, सिर्फ बातूनी ही रहेंगी आप या ये संघर्षपूर्ण जीवन का निमंत्रण सहर्ष स्वीकार है?

जहाँ अक्ल की सोच ख़त्म होती है 
वहीँ से इश्क शुरू होता है

अक्ल के मदरसे से उठ 
इश्क के मयक़दे में आ 
जाम-ए -फना-ओ-बेखुदी 
अब जो पिया जो हो सो हो 

इश्क में तेरे कोहेगम 
सर पे लिया जो हो सो हो 

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