Wednesday, April 6, 2011

इश्क अदा




इश्क हो रहा
सुबह-ओ-शाम
आते-जाते छेड़े है वो मुझे
यूँ सर-ए-आम
कभी कोहनी
कभी चिकोटी
तो कभी गुदगुदी
उफ़..क्या अदा से पिलाते हो तुम
ये निस्बत के जाम..!!

हाए..कितना प्यार भरा
ये गुस्सा तेरा
दिल करता
फिर करूँ एक शरारत
फिर लूँ   हँस के तेरा नाम..!!

काश..आ जाए
मुझमे भी
कुछ तेरी अदा
हो हिस्सा तेरा
आ जाऊं मैं
शायद किसी के काम..!!

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