Saturday, April 30, 2011

माली और गुलाब




गुलाब को
खुशबू बिखेरने से
कौन रोक सकता है भला..?
गुलाब है ही
इस कदर हसीन
के खुद को दीवाना होने से
कौन रोक सकता है भला..?
माली खुद भी तो
यही चाहता था
की गुलाब उसका
खिले, महके, मुस्कुराये..,
व्याकुल है
आज मगर वो
के अत्तारों को बाग़ में आने से
कौन रोक सकता है भला..?

तोड़ लेंगे ये व्यापारी
उसके गुलाब
मसल देंगे, कुचल देंगे,
क़ैद कर लेंगे उनकी खुशबुएँ बोतलों में
फिर बेचा करेंगे मनचाहे दामों पर
छिड़क लेंगे अपने जिस्मों पर
छिपा लेंगे चंद घंटों के लिए
अपनी महत्वाकांक्षाओं की बदबूएँ
आखिर..
आदमी को बाजारू होने से
कौन रोक सकता है भला..?

सुनी जो गुलाब ने
माली की दर्द भरी ये व्यथा
सहर्ष तैयार हो गया वो
मुरझा जाने को
पर मुरझाना भी तो
आता है एक निश्चित वक़्त के बाद
वक़्त ही तो खेंच ले आया है
इन अत्तारों को बागों में
और फिर... 
वक़्त को अपने करतब दिखाने से
कौन रोक सकता है भला..?

तब एक नन्ही सी कली ने
एक तरकीब दी सुझाई
कबीर की ये पंक्तियाँ
माली को हँसते-हँसते सुनाई

"माली आता देख कर
कलियाँ करें पुकार
फूल ही फूल चुन लिए
काल हमारी बार"

तो क्या करे माली
चुन ले वो ये फूल..??
चढ़ा दे किसी देवता के चरणों में..??
या सजा लेने दे किसी देवी को अपने जुड़े  में..??
क्या करें, क्या ना करें
के इन सवालों को
दिमागों में आने से
कौन रोक सकता है भला..?

अक्षय जवाब दिया
अमृता प्रीतम जी ने
इमरोज़ के हवाले से

" जीने लगो
तो करना
फूल ज़िन्दगी
के हवाले
जाने लगो तो करना
बीज धरती के हवाले "

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