Saturday, April 9, 2011

पिहू-पिहू



आज पपीहे की पिहू-पिहू क्या सुनाई नहीं पड़ी...,
सारे फूल मुरझा गए बाग़ के...
सारे पेड़ झुलस गए आग में...
क्या उनका भी पिया उनसे रूठ गया....!!

कोयल भी है आज गुमसुम...,
क्या उसका गला भी रूंध गया.....!!

सूरज तप रहा आज अपनी ही अगन में...,
क्या उसका भी सूरज डूब गया.....!!

जीवन  चल रहा आज मंथर गति से...,
क्या उसका भी समय कहीं रुक गया....!!

चिड़ियाएँ  कलरव करतीं नज़र नहीं आ रहीं आज...,
क्या उनका भी माहि चुक गया....!!

इंसानी ख्यालों में आज वो तेजी नहीं...,
क्या उन सब का भी दिल टूट गया....!!

हवाएँ मार रही आज गर्म-गर्म थपेड़े...,
क्या उनका भी बादल कहीं छुट गया....!!

नदिया बहती है आज नीरस-नीरस...,
क्या उसे भी संगीत भूल गया....!!

पहाड़ों पर आज कोई पशु-वृन्द नहीं...,
क्या उनका चरवाहा भी सूली चढ़ गया....!!

चाँद अकेला है आज अपनी चाँदनी के साथ...,
क्या उसका भी तारों से रिश्ता टूट गया....!!

अरे...!

ये किसने हौले से पिया-पिया की हुँक है उठाई...,
लगता है दिल फिर धड़क गया....!!
सावन बे-मौसम बरस गया...!!
दुल्हन सा कोई सज गया....!!
बेकार न कोई वक़्त गया....!!
एक के होने से दूजा उसमे बस गया....!!


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