Monday, May 2, 2011

लकीरे...ये मेरे हाथ की



लकीरें,
ये मेरे हाथ की
कुछ कहना चाहती है शायद...,

जानता हूँ मगर
की ज़िन्दगी ही है उनकी ज़बान..!!

भाग्य भरोसे जो शास्त्र है टिका,
वो हर दम खूब है बिका,

और क्यूँ ना हो..??

मानव मन सुरक्षा की चाह में ही तो जीता है,
सपनो के बड़े-बड़े घूँट दिन रात वो पीता है

भाता नहीं उसे " कर्मण्ये वाधिकारस्ते.." वाला श्लोक,
फल ही ना मिले तो क्या करना परलोक

हमें तो चाहिए वैभव कृष्ण सरीखा
भले ही फिर वो गीता में ना हो लिक्खा,

" वसुधैव कुटुम्बकम " का नारा भी उसे लगता है फीका,
अपने देश के आगे क्या लगे अमेरिक्का

वेद-पुराण-उपनिषद तो केवल स्वार्थ-सिद्धि के लिए है पीता,
दसों दिशाएं " उसकी " हैं क्या मुख, क्या अग्नि और क्या है चित्ता,

दसों द्वार " उसके " हैं क्या नेत्र, क्या बुद्धि और क्या रित-रीता,
करम गति को जान लो भैय्या,
भगत वही जो स्वयं को लेता है मिटटा
कहता है 'मनीष'
जो है तेरा मन-मित्ता...

No comments:

Post a Comment

Please Feel Free To Comment....please do....