Wednesday, May 4, 2011

प्रतिष्ठा की भूख




बस..
यही तो चाहते हैं
ये ज़माने वाले
की
ना कोई उनसे नाराज हो
ना किसी से उनको कोई नाराजी रहे..,
राजी हुए जो आप उनसे,
उनकी नासमझियों से
तो
बिठा लिए जाओगे सर पर
वर्ना
सूली तैयार है...
अब..
आप तो हमारी नादानियों से
इस कदर
राजी न होईये सरकार..!!
सुना है
आपके अंजुमन में
ग़लतफ़हमियों की कोई जगह नहीं होती
और..
जो होती हैं बला की खुशफहमियाँ
आपके चमन में
तो
सावधान हो जाईये सरकार..!!
की
ज़िन्दगी की शमशीर तैयार है...
ये..
इश्क-ओ-रसूल की बातें
बातें हैं बस
खुद को बचाने की
या..
यूँ कहिये की
खुद को रसूखदार बनाने के लिए
सच ही
गर सच की तलाश है
तो
जिलाना होगा हिम्मत को
चलने को अपनी ही राह
दिखाना होगा ग़ज़ब साहस
तोड़ने को प्रतिष्ठा की चाह
जीना होगा अदम्य
गिराने को भीड़ द्वारा अपनाए गए
पुरातन विश्वास
गलाना होगा सच की आग में
ज़माने के थोपे हुए संस्कार
और..
प्रतिष्ठित करना होगा सत्य को
व्यक्तियों से ऊपर रख
चाहे फिर झूठ
कितना ही बड़ा क्यों ना हो
कहना होगा उसे
ठीक वैसा ही
जैसा वो है
वर्ना
राजनीति का हार
आपके गले पड़ने को तैयार है...



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